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Thursday 11 January 2018

भैया के बॉस को अपने चूत देकर खुश किया नौकरी के लिए


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ये चुदाई की कहानियाँ तब की है जब में ग्रॅजुयेशन पास करके नौकरी ढूँढ रही थी.. मेरा फिगर 33-32-34 है और में दिखने में बहुत सुंदर और सेक्सी लगती हूँ और मेरे बूब्स बहुत सेक्सी और बड़े बड़े है। वैसे मेरे दोस्त कहते है कि में एक आईटम हूँ। अब में आपको स्टोरी सुनाती हूँ जो मेरे साथ घटी एक घटना है। दोस्तों मैंने अपनी पूरी पढ़ाई एक अच्छे कॉलेज से पास की और घर में पैसों की प्रॉब्लम्स की वजह से में आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई और मैंने एक अच्छी नौकरी ढूँढनी शुरू कर दी। फिर उन दिनों मेरा कज़िन अजीत हमारे घर आया। वो मुझसे उम्र में 2 साल बड़े है और उन्होंने अपना MBA पूरा किया है और उन्हें नयी नयी एक अच्छी सी नौकरी मिली थी और वो दिल्ली जा रहे थे। तभी मेरे घरवालों ने कहा कि वो मुझे भी अपने साथ ले जाए ताकि में एक बड़े शहर में अपने लिए एक अच्छी नौकरी ढूँढ सकूँ।
फिर में भी उनके साथ दिल्ली आ गयी और मैंने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.. लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी मुझे नौकरी नहीं मिली.. क्योंकि मेरी पड़ाई ज़्यादा अच्छी नहीं थी। फिर एक दिन में अपने भैया के घर पर बैठ कर सोच रही थी कि अब मुझे अपने घर चले जाना चाहिए उसी वक़्त डोर बेल बजी और मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि भैया आए थे और साथ में उनका बॉस भी था.. उनकी उम्र कोई 35-40 साल के बीच की होगी और दिखने में ठीक था। भैया ने अंदर आते ही बोला कि ये मेरी छोटी बहन है और ये एक नौकरी ढूँढ रही है.. उनका बॉस मुझे घूर घूर कर देख रहा था। उसकी नज़र मेरे बूब्स पर ही अटकी थी। तभी मैंने देखा कि वो बार बार मुझे देखकर अपनी पेंट पर हाथ लगा रहा था और भैया अंदर अपने कंप्यूटर से कुछ प्रिंट आउट्स ले रहे थे। उन्होंने अंदर से ही आवाज़ दी और कहा कि हमारे लिए दो कप चाय बना दो। तभी में चाय बनाने किचन में चली गयी तभी उनका बॉस मेरे पीछे किचन में आ गया और उसने मेरी गांड को हल्के से छू दिया मैंने पीछे मुड़कर उसे घूर दिया वो घबरा कर बोले कि मुझे एक ग्लास पानी चाहिए.. मैंने उसे पानी दे दिया। फिर वो बाहर चला गया में अंदर किचन में ये सोच रही थी कि शायद ये मुझे कोई नौकरी दे दे और अगर ऐसा है तो उनको खुश करने में मेरा क्या जाता है? फिर मैंने चाय बनाकर बाहर जाने से पहले अपने टॉप के दो बटन खोल दिया ताकि जब में चाय देने के लिए नीचे झुकूं तो उसे मेरे बूब्स आसानी से साफ साफ नज़र आए और मैंने वैसा ही किया। जब मैंने चाय दी तो उसे मेरे बूब्स दिखे और में हल्का सा मुस्कुरा दी.. ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। जिससे उसे ग्रीन सिग्नल मिल गया उसने बैठकर चाय पी। फिर मेरे भैया भी अपना काम खत्म करके आ गये। फिर वो दोनों बाहर निकल गये लेकिन जाते जाते मैंने फिर से उन्हे एक हल्की सी स्माईल दे दी। फिर दूसरे दिन सुबह सुबह भैया के ऑफीस जाने के एक घंटे के बाद भैया का फोन आया कि उन्हें कुछ काम से बाहर जाना होगा और आज मुझे इंटरव्यू के लिए अकेले ही जाना होगा और वो ऑफीस से गाड़ी भेज देंगे। तभी मैंने कहा कि आप कब तक वापस आओगे? तो उन्होंने कहा कि अगर काम जल्दी ही खत्म हो गया तो आज ही आ जाऊंगा। फिर मैंने इंटरव्यू के लिए एक सुंदर सी साड़ी निकाली और नहाकर पहन ली। इतने में डोर बेल बजी तभी मुझे लगा कि ड्राइवर होगा इसलिए मैंने दरवाज़ा खोला और मैंने देखा कि सामने भैया के बॉस खड़े है और उनके हाथ में एक पॅकेट था.. जिसमे शायद खाने की कोई चीज़ होगी। तभी मैंने उनसे पूछा कि आप यहाँ कैसे? भैया तो आज बाहर गये हुए है।

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बॉस : में इसलिए ही तो आया हूँ। में : क्या मतलब में समझी नहीं? बॉस : तुम अकेले इंटरव्यू देने जाओगी इसलिए मैंने सोचा कि में तुम्हे छोड़ दूँ और फिर मुझे कल से ही बहुत भूख लगी है इसलिए खाने को कुछ चीज़े ले ली आओ हम साथ में खाते है फिर इंटरव्यू देने चलेंगे। वैसे तुम्हे कैसा नौकरी चाहिए? में : कोई भी अभी मुझे नौकरी की बहुत ज़रूरत है। बॉस : अगर तुम चाहो तो में तुम्हे नौकरी दे सकता हूँ लेकिन पहले तुम्हे मुझे इंटरव्यू देना होगा। में : कौन सी नौकरी है? बॉस : में बहुत दिनों से एक पर्सनल सेक्रेटरी ढूँढ रहा हूँ और तुम तो बहुत होशियार, समझदार और सुंदर भी हो काश कि मेरी बीवी तुम्हारी तरह सुंदर होती। में : (मुस्कुराते हुए) क्या मुझे नौकरी मिल सकती है? बॉस : लेकिन तुम्हे पहले इंटरव्यू पास करना होगा.. क्या तुम तैयार हो? में : हाँ में तैयार हूँ लेकिन सेलेरी क्या होगी? बॉस : अगर तुम पास हो गयी तो बहुत अच्छी सेलेरी मिलेगी। में : हाँ में तैयार हूँ। बॉस : तो तुम यहाँ पर आकर सोफे पर बैठो। फिर वो मेरे पास में आकर बैठ गये और मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोले कि तुम अपने बारे में कुछ बताओ। फिर में अपने बारे में बताने लगी तो वो बोले कि ये सब नहीं में जो पूछ रहा हूँ वो बताओ। ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। मैंने उनसे पूछा क्या? बॉस : तुम ये बताओ कि तुम्हारा साईज़ क्या है? तभी में हैरान हो गयी.. लेकिन तब तक में समझ गयी थी कि वो मुझसे क्या चाहता है? में भी सोचने लगी कि अगर इन सब के बदले वो मुझे एक अच्छी सी सेलेरी वाली नौकरी दे दे तो मुझे क्या प्रॉब्लम है? और मैंने शरमाते हुए कह दिया कि 32. बॉस : वाउ अगला सवाल क्या तुम इस नौकरी के लिए कुछ भी कर सकती हो? में : हाँ सर में सब कुछ कर सकती हूँ। बॉस : तो फिर तुम जाओ और दरवाजा बंद कर दो। तभी मैंने उठकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अंदर आ कर उसके सामने बैठ गयी। वो मेरे पास आ गया और पीछे से उसने मेरी पीठ पर एक किस कर दिया मैंने कहा कि ये क्या कर रहे हो? बॉस : वही कर रहा हूँ जो एक आदमी और एक औरत के बीच होता है और ये मत कहना की तुम ऐसा कुछ करना नहीं चाहती हो.. तुझे भी तो खुजली हो रही है। में : ये ग़लत है हम ऐसा नहीं कर सकते। बॉस : सही और ग़लत का फ़ैसला हम क्यों करे.. अभी तो वो करो जो हमे आज करना चाहिए।

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में : लेकिन सर कोई आ गया तो? और कहीं भैया को पता चल गया तो? बॉस : अरे तेरा भैया मेरा एक नौकर है ज़्यादा बोलेगा तो प्रमोशन देकर चुप करवा दूँगा। साला खुद लेकर आएगा तुझे चुदवाने के लिए। तू तो बस अब मेरी प्यास बुझा दे मेरी जान। साली में तो पहले दिन से ही तड़प रहा हूँ तुझे चोदने के लिए.. चल आज मेरी रांड बन जा। में : लेकिन सर ये सब कुछ बिल्कुल ग़लत है। फिर ये सब कहते कहते उसने मेरे होंठो पर अपने होंट रख दिया और वो पागलो की तरह मुझे चूमने लगा और पागलो की तरह मेरे कपड़े खुलवाने लगा। में और भी उसका साथ देने लगी। फिर मैंने धीरे से पूछा कि सर मेरी सेलेरी कितनी होगी? वो हंस कर बोला अगर आज में खुश हो गया तो 20-25 हजार रूपय तो दे ही दूँगा। लेकिन फिर तुझे हमेशा मेरी रांड बनकर रहना होगा.. बोलो मंजूर है? में : हाँ सर मुझे मंजूर है। बॉस : अब और मत तड़पा.. आ जाओ मेरी प्यास भुझा दो मेरी रानी और उन्होंने मुझे गोद में उठाकर बेड पर लेटा दिया। वो मेरे पूरे शरीर को चूम रहे थे और में उनका साथ पूरा पूरा दे रही थी.. धीरे धीरे उन्होंने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए और मुझे पूरा नंगा कर दिया। में बिल्कुल नंगी उनके नीचे लेटी हुई थी और मैंने अपने दोनों हाथो से अपने बूब्स छुपा लिए। फिर उन्होंने मेरे दोनों हाथ हटाकर मेरे बूब्स जोर ज़ोर से चूसने लगे। ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। फिर उसने मेरी चूत पर अपना हाथ रखा और उसे मसलने लगा और थोड़ी देर बाद उन्होंने अपना अंडरवियर उतार कर मुझे अपना लंड दिखाया जो पहले से ही खड़ा था तभी मेरे तो होश ही उड़ गये। फिर उन्होंने अपना लंड मेरे मुहं में डाल दिया और खुद मेरी चूत चाटने लगा। में आह्ह्ह आह्ह्ह ओह्ह्ह की आवाजे निकाल रही थी। मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि में बता नहीं सकती। तभी थोड़ी देर बाद में झड़ गयी और उन्होंने पूरा रस पी लिया। तभी उन्होंने कहा कि मेरी जान अभी तो तेरी चुदाई बाकी है चल तैयार हो जा अपनी चुदाई के लिए साली रांड आज तुझे मज़ा चखाता हूँ। आज तेरी सारी गर्मी निकालता हूँ और हाँ तुझे कभी कभी हमारे ग्राहकों के साथ भी सोना पड़ेगा। उनको भी अपनी चूत का रस पिलाना होगा.. साली तेरे बूब्स तो बड़े मस्त है। तू तो असली माल है कहाँ छुपकर बैठी थी और फिर वो मेरे ऊपर चड़ गये और मेरी चूत पर अपना लंड रख दिया और एक झटके से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया। तभी में ज़ोर से चिल्लाई और उन्होंने मेरा मुहं बंद कर दिया और थोड़ी देर बाद मुझे भी मज़ा आने लगा। में ज़ोर और ज़ोर और ज़ोर चिल्लाने लगी.. बॉस ने कहा कि साली तू तो बहुत बड़ी वाली रांड

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फिर उन्होंने स्पीड बढ़ाकर मेरी चुदाई शुरू की और उधर मेरी चूत चुदाई में व्यस्त थी.. लेकिन मुझे बहुत दर्द भी हो रहा था और वो बस चुदाई पर ध्यान दे रहे थे। उनकी स्पीड कम होने का नाम नहीं ले रही थी और वो आज मेरी चूत को फाड़ देना चाहते थे। फिर करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद हम लोग एक साथ झड़ गये। फिर उन्होंने मुझे कई बार चोदा और मेरी चूत को पूरा फाड़कर भोसड़ा बना दिया और फिर अपने एक फ्रेंड की कंपनी में नौकरी दिलाई और वहाँ पर उस फ्रेंड ने भी मेरा पूरा मज़ा लिया और वो दोनों मिलकर बारी बारी से मेरी चुदाई करते रहे और फिर ऐसे ही मेरी चुदाई के साथ साथ मेरी नौकरी भी चलती रही ।
पड़ोस वाला आदमी ने कुतिया बना के चोदा

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Sunday 7 January 2018

मुसलमान लड़के के साथ मेरी बहन की चुदाई कहानी


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मेरी दीदी राधिका उसे जीजाजी कहा करती थी. गर्मी के दिन मेरी दीदी राधिका और मेरी माँ घर के आँगन मे रात को चारपाई पर साथ मे सोये हुये थे. रात को करीब 1 या 2 बजे सरदार जी रात को मेरी दीदी की चारपाई के पास बेठ गया. सरदार जी मेरी दीदी को धीरे धीरे सहलाने लगा. मेरी दीदी राधिका चुपचाप पड़ी रही. थोड़ी देर के बाद सरदार जी ने मेरी दीदी का फ्रॉक ऊँचा करके उसके स्तन (बूब्स) को दोनो हाथो मे पकड़ कर मसलने लगा और दबाने लगा. मेरी दीदी राधिका भी उतेज़ित होकर मजा लेने लगी.
थोड़ी देर बाद मे सरदार जी मेरी बहन को खींच कर बाथरूम की तरफ ले जाकर चुदाई करने ही वाला था की मेरी माँ जाग गयी. सरदार जी डर कर भाग गया. मेरी दीदी राधिका शरीफजादी बनकर अपनी सफाई देने लगी की मुझे खबर नही थी की सरदार जी मेरी चारपाई पर आकर उसे कब से दबोच कर उसके स्तन को मसल कर सहला रहा है. मेरी दीदी राधिका का हमारे पड़ोस मे रहने वाला मुसलमान के लड़के के साथ नाजायज़ सेक्स सम्बन्ध थे. उस समय उसकी उम्र 18 साल थी. एक रात को जब मेरी माँ ने देखा की मेरी दीदी राधिका घर मे पलंग पर सोई हुई नही है. उसने मुझे जगाया. मैने आस पास जाकर देखा और उसको ढूँढने लगे. रात के 2 बजे मेरी दीदी मियाँ के पास जाकर चुदवा रही थी. मियाँ का नाम कल्लू था. कल्लू ने मेरी दीदी को पूरा नंगा करके उसकी कुँवारी चूत मे अपना मोटा 9 इंच का लंड डाल दिया.मेरी दीदी राधिका की चूत की झिल्ली फट गयी थी और चूत भी फट गयी थी. दीदी की चूत में से खून निकल रहा था. मेरी दीदी राधिका ठीक तरह से चल भी नही पा रही थी और लंगड़ी लंगड़ी चल रही थी. मेरी दीदी ने अंदर चड्डी भी नही पहनी थी सिर्फ़ फ्रॉक पहना था. मेरी दीदी की चूत चुदाई की वजह से सूजकर (फूलकर) लाल टमाटर की तरह हो गयी थी. उसकी योनि (चूत ) भी फट गयी थी. दीदी की चूत में से कल्लू मियाँ का वीर्य और पहली चुदाई का खून निकल कर मेरी दीदी की चूत से धीरे धीरे निकल कर जाँघ पर से टपक टपक कर बह रहा था और पैर में भी खून के दाग दिखाई दे रहे थे. मेरी दीदी की चूत पर बाल भी नही थे क्योकी दीदी ने अपनी चूत के बाल ब्लेड से काटे थे. इसलिये दीदी की चूत बिल्कुल साफ दिख रही थी.

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दीदी की चूत एकदम लाल लाल टमाटर की तरह दिख रही थी और चूत का अन्दर भाग एकदम लाल कलर का था. मेरी माँ ने घर ले जाकर उसे पलंग पर सुला कर उसका फ्रॉक उतार कर दीदी को नंगी करके दीदी की चूत देखी. दीदी की चूत फटी हुई थी और चुदाई की वजह से लाल हो गयी थी. दीदी की चूत में से वीर्य और पहली चुदाई का खून निकल कर उसकी जाघो और फ्रॉक पर गिरा था. फ्रॉक पर भी कही जगह खून के लाल दाग की वजह से खराब हो गये थे. दीदी रो रही थी और सिसकारिया मार रही थी. मेरी दीदी की चुदाई की वजह से बुरा हाल हो गया था. मेरी माँ ने उसे खूब पिटा और कहने लगी रंडी चुदाई के मज़े लेकर आ गयी.मियाँ ने तो तेरी चूत की बराबर की चुदाई की है, तेरी चूत तो फट गयी है और खून के साथ मियाँ का पानी भी तेरी चूत से निकल कर जाँघो पर बह रहा है. रंडी मियाँ से काला मुँह करवा लिया. उसने तुझे चोदते समय निरोध लगाये थे की नही? मेरी दीदी ने रोते हुये कहा उसने निरोध लगाये बिना ही मुझे चोदा है. मियाँ ने मुझे कहा था की निरोध लगाकर चोदने से चुदाई का मज़ा नही आता है, ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। इसलिये उसने मुझे निरोध लगाये बिना ही चोदा है. मेरी माँ ने पूछा रंडी जब तुझे लंड डाला तब चिल्लाई नही और अब रो रही है, मियाँ ने दिल खोल कर चूत की चुदाई करके मज़े लिये है. रांड़ चड्डी कहाँ पर डाल कर आई है? मेरी दीदी कुछ भी नही बोली.मेरी माँ ने उसे बाथरूम में ले जाकर दीदी को नहलाया और दीदी की चूत में अपनी उंगली डाल डाल कर रग़ड रग़ड कर दीदी की चूत पानी से साफ की. माँ को डर था की कही मियाँ का वीर्य राधिका के गर्भाशय में चला गया हो तो शायद उसकी बेटी गर्भवती (प्रेग्नेंट) हो सकती है मियाँ के नज़ायज़ बच्चे की माँ बन कर. मेरी दीदी खूब ही चिल्लाती थी और झटपटाती रहती थी. वो कराह रही थी और सिसकारिया मार मार कर रो रही थी. मेरी दीदी अपनी पहली चुदाई की वजह से दूसरे दिन बिस्तर पर से उठ भी नही पा रही थी. मेरी दीदी को पलंग पर पूरा नंगी देखकर और उसकी गोरी गोरी लाल लाल टमाटर की तरह सूजी हुई चूत देखकर मुझे भी इच्छा हुई और मेरी भी कामुकता भड़काने लगी की अपनी रंडी दीदी को चोद दूँ. लेकिन उतनी हिम्मत नही की उसकी चुदाई करूँ.

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मेरी माँ ने उसे लेडी डॉक्टर के पास ले जाकर गर्भ निरोधक गोलिया खिलाई, वरना वह भी अपने कुंवारेपन में ही गर्भवती (प्रेग्नेंट) हो जाती, और मियाँ के नज़ायज़ बच्चे की माँ बन जाती. उसके बाद जब भी मेरी दीदी को मोका मिलता चुपचाप घर से निकल कर मियाँ के पास जाकर अपनी मस्त चुदाई करवा के आती. जब भी वह चुदवा के आती, दीदी ठीक तरह से चल नही पाती थी, अपनी गांड और कूल्हे फेला फेला कर चलती थी. क्योकी मियाँ अपना 9 इंच के कड़क लंड से मेरी दीदी की चूत की बहुत बुरी तरह से चुदाई करता था. मुझे यह इसलिये मालूम है की मियाँ मेरे पड़ोस में रहता था और मुझसे बड़ा था लेकिन हम सब से उसकी दोस्ती थी.वह अपना लंड निकाल कर सब को दिखाता था. उसका लंड मोटा काले रंग का था. और झाट के बाल भी उसके बहुत सारे थे. मियाँ मुझसे कहता था की तेरी दीदी की तो में मस्त चुदाई करता हूँ, ज़रा अपनी दीदी की चूत तो देख कर आ. में क्रोध से तिलमिला उठता था लेकिन में कुछ नही कर सकता था क्योकी जब दीदी ही अपनी मर्जी से उसके पास जाकर चुदवाती है. एक दिन सुबह मैं अंदर के रूम में अचानक गया. ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। हमारे अंदर के रूम मे ही नहाने धोने के लिये बाथरुम है. अंदर जाते ही मैने देखा की मेरी दीदी पूरी नंगी खड़ी है. उसके बदन पर एक भी कपड़ा नही था. उसकी चूत पर खूब सारे झांट के बाल थे.उसके स्तन भी बड़े बडे गोलाई लिये हुये सुडोल और भरावदार थे, अभी भी दीदी के स्तन पहले से ज़्यादा बड़े बड़े साइज़ के और मस्त है. मैं अपनी दीदी को पूरा नंगी देख कर बोखला गया. मेरी दीदी राधिका भी शर्मा गयी, और शर्म से लाल लाल होकर अपना मुँह नीचे करके अपनी आँखे नीचे की तरफ झुका ली. मेरे दिलो-दिमाग मे कामुकता का भूत सवार हो गया. मैं अपनी दीदी से ही संभोग करने के लिये मानो उतावला होकर पागल सा गया और अपनी ही दीदी की चुदाई करने के लिये तड़पने लगा. लेकिन मजबूर था, क्योकी बाहर के किचन मे से मेरी माँ चिल्लाने लगी की तेरी दीदी नहा रही हे. मुझे मजबुर होकर वापस लोटना पड़ा. उसका मुझे आज भी बहुत ही खेद और दुख है

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Thursday 4 January 2018

पड़ोस वाला आदमी ने दीदी को कुतिया बना के चोदा - Pados wale admin ne didi ko kutiya bana ke choda


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हिंदी चुदाई की कहानियाँ,मेरी दीदी है और दूसरा मेरे पड़ोस मे रहने वाला एक ठेकेदार है. उसका नाम नदीम है मेरी दीदी एक सुंदर और जवान लड़की है. दीदी को देख कर सबके लंड खड़े हो जाते है।अब में अपनी कहानी की तरफ चलता हूँ. मैने दीदी से कहा कि में शहर जाने वाला हूँ. दीदी ने कहा आज नदीम पैसे मांगने आएगा तो में पैसे कहाँ से दूँगी… मैने दीदी को बोला की नदीम को परसो आने के लिए बोलना… में उस दिन अपने किसी काम से शहर मे जाने वाला था. मुझे किसी के साथ अपने काम से जाना था. जब में उसके घर गया तो वो उस वक्त घर मे नही था. तो में वापस अपने घर आ गया। में जब वापस रूम पर आने लगा. जैसे ही में रूम पर पहुचा तो मैने अपने रूम के अंदर से कुछ आवाज़ सुनी. मुझे कुछ अजीब सा लगा।
मैने धीरे से जब रूम मे देखा तो पाया की दीदी किचन की तरफ जा रही थी. और नदीम मेरे रूम मे बैठा हुआ था. नदीम एक काला 40साल का मुस्लिम है. उसे देखकर लगता था की वो अभी अभी आया था. वो अपने पैसे की बात कर रहा था. दीदी से पूछा की बताओ कैसे अपने पैसे वसूल करू… तो दीदी ने बोला की अब आप बताइए की कैसे होगा… अब उसने बताया की मेरे पास तो एक उपाय है जिसके द्वारा इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है… दीदी बोली क्या है… तो वो वहा से उठा और दीदी के पास चला गया और दीदी की गांड पर अपने हाथ को फेरते हुए बोला की इसके द्वारा… तो दीदी बोली किसी ने देख लिया तो प्रोब्लम हो जाएगी… उसने बोला तुम्हारा भाई तो शहर गया है कोई प्रोब्लम नही होगी… ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। अब उसने दीदी के सलवार के नाडे को खोल दिया और उसे नीचे उतार दिया। अब वो अपने आप को दीदी के पीछे खड़ा कर लिया. दीदी ने अपनी गोरी गांड का रास्ता दिखाया उसका काला लंड लगबग 10इंच लंबा और 3 इंच मोटा था. मुझे डर लग रहा था क्योंकि दीदी की गांड फटने वाली थी. फिर उसने दीदी के कमर को पकड़ के अपने लंड को निकाल के दीदी के गांड मे सटा के एक ज़ोर से झटका मारा तो दीदी पूरी तरह से कांप गयी. में समझ गया की दीदी के गांड मे उसका टोपा चला गया था. अब दीदी उसके लिए चाय बनाने लगी और वो अपने कमर को हिलाने लगा. दीदी के मुहं से उफफफफ्फ़ की आज निकल रही थी. दीदी के मुहं से कभी कभी ज़ोर ज़ोर से सिसकी निकल रही थी. अब मैने देखा की दीदी जब चीनी लेने के लिए थोड़ा सा घूमी तो मैने देखा की उसका मोटा लंड दीदी के गांड मे अंदर बाहर अंदर बाहर हो रहा था

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कुछ देर के बाद उसने दीदी के अंदर अपने लंड को पूरी तरह से डालने के लिए जब ज़ोर का झटका मारा तो दीदी ज़ोर से चिल्ला उठी और पूछा कि और है क्या तो बोला की नही… और दीदी के गांड को इस तरह से तब तक मारता रहा जब तक की दीदी ने चाय नही बना ली. थोड़ी देर बाद हाफने लगा में समझ गया की उसका बीज दीदी की गांड मे गिरने वाला है. जैसे ही दीदी ने चाय बनाने के बाद गेस को बंद किया तो वो अपने सर को दीदी के कंधे पर रख के चुप चाप खड़ा हो गया।ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। में समझ गया की दीदी के गांड मे उसका वीर्य गिर गया था. अब दीदी ने अपने कमर को खींच के उसके लंड को निकाला और उसे चाय पीने के लिए देते हुए बाथरूम के लिए चली गयी. वो चाय पीते हुए मेरे रूम मे चला गया. जब दीदी पेशाब करके बाथरूम से बाहर आई. अब वो बाथरूम मे गया और जब वापस बाहर आया तो उसने अपने लंड को दीदी के मुहं मे दे दिया. दीदी उसका लंड चूसने लगी. उसके लंड को चूस कर दीदी ने और बड़ा कर दिया।फिर उसने दीदी के हाथ को पकड़ के दीदी को वापस उसी कमरे मे ले जाने लगा दीदी ने पूछा अब क्या है… तो वो बोला की अभी तो वो सूत था. अभी ब्याज तो बाकी है… अब वो दीदी को लेकर कमरे मे जाने के बाद दीदी को बेड पर लेटने के लिए कहा तो दीदी बेड पर लेट गयी. अब उसने दीदी के सारे कपड़े एक एक करके उतार दिया. दीदी के सारे कपड़े उतारने के बाद उसने दीदी को कुछ देर तक देखता रहा. अब उसने अपने कपड़े उतारने लगा तो दीदी उसके 10 इंच लंबे काले लंड को देखने लगी।
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जब उसने अपने कपड़े उतार दिये तो अब वो दीदी के जांग पर बैठ गया और दीदी की चूत को फैलाकर देखने लगा. फिर उसने दीदी की चूत की पप्पी ली दीदी ने अपने आखे बंद कर ली. में यह देख कर जोश मे आ गया क्योंकि मेरे दीदी की गोरी चूत एक काले लंड से फटने वाली थी. अब वो दीदी के चूत मे तेल लगाने के लिए पास पड़े डिब्बे से तेल निकाला और दीदी के चूत मे लगाने लगा तो दीदी के मुहं से आवाज़ निकली और सिसकी निकलने लगी।  दीदी के चूत मे तेल लगाने के बाद उसने अपने लंड मे जो की 10 इंच लंबा और काफ़ी मोटा था उसको तेल को डिब्बे मे डाल दिया और अब जब उसने दीदी के चूत के उपर अपना लंड रखा तो दीदी ने अपने दोनो हाथो से अपने चूत को फैला दिया और अपने चूत मे उसके लंड को डालने का इंतजार करने लगी. उसने अपने लंड को दीदी के चूत मे डालने के लिए एक ज़ोर का झटका मारा तो दीदी की ज़ोर से सिसकी निकल उठी. दीदी पूरी तरह से कांप उठी।फिर उसने दीदी से पूछा अंदर गया क्या… दीदी ने हाँ कहा. दीदी की चूत मे उसका टोपा जा चुका था. अब वो दीदी के चूत के अंदर अपने लंड को ले जाने के लिए ज़ोर ज़ोर से झटके मारने लगा ,ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। कुछ देर के बाद मैने देखा की दीदी की चूत मे उसका आधा लंड चला गया था. दीदी ने उससे पूछा की कितना बाहर है तो वो मुस्कुराया और बोला की बस दो इंच बाहर है. फिर उसने एक जोर से झटका मारा. दीदी की मुहं से आवाज़ निकली हा…उफफफ्फ़… दीदी की चूत मे उसका पूरा लंड जा चुका था दीदी अपने पैसे का ब्याज अपनी चूत से दे रही थी।दीदी की चुदाई को देख के मेरे मन भी अजीब सा होने लगा. अब वो दीदी की दोनो चुचियो को मसलने लगा. दीदी मस्ती मे आ गई और उस से धीरे धीरे से झटके लगाने के लिए बोली. वो दीदी को बुरी तरह से चोद रहा था. दीदी दो तीन बार झड़ चुकी थी लेकिन वो 30 मिनिट के बाद भी झड़ने का नाम नही ले रहा था. दीदी सोच रही होगी की किस जानवर से पाला पड़ा है. दीदी ने नदीम से बोला अब बर्दास्त नही होता… अब जल्दी से गिरा दीजिए कुछ देर तक दीदी की चूत मे इसी तरह से झटके मारने के बाद वो दीदी के होंठो को चूसने लगा तो में समझ गया की अब उसका पानी दीदी के चूत मे गिरने वाला था. दीदी ने उससे बोला की अपना पानी चूत के अंदर मत गिराना में प्रेग्नेंट हो जाउंगी… उसने कहा कुछ नही होगा… कुछ देर के बाद मैने देखा की दीदी भी उसका साथ देने लगी।
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कुछ देर के बाद उसने अपना पानी दीदी की चूत मे गिरा दिया कुछ देर तक वो दीदी के उपर लेटा रहा. कुछ देर के बाद उसने अपने लंड को दीदी के चूत से निकाल दिया और दीदी के उपर से हट गया. उसने दीदी से पूछा मजा आया क्या… दीदी शरमा गयी और दीदी ने दोनो हाथो से शर्म के मारे अपने मुहं को ढक लिया. अब उसने अपने कपड़े को ठीक किया।मैने जब दीदी के चूत को देखा तो लगा की दीदी के चूत को किसी ने मूसल से रौंदा है. अब दीदी भी कुछ देर के बाद उठ कर अपने कपड़े को पहना. दीदी ठीक से चल नही पा रही थी.. अब जब वो जाने के लिए तैयार हुआ तो में वहा से हट गया. और में कर भी क्या सकता था।मेरी कहानी कैसी है कृपया इसे साझा करें

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Monday 1 January 2018

दीदी की जेठानी की चुदाई desi xxx hindi kahani


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उनका नाम अंजू है  बड़ी सेक्सी फिगर है उनका. ३४-३०-३२, जोकि मुझे बाद में पता चला. हलाकि की वो हमेशा साड़ी पहनी रहती थी, पर यारो बड़ी कट्टो पीस थी. जो भी देख ले, उसका लंड खड़ा हो जाये.मैं उन्हें दीदी कहके ही पुकारता था. सो अब स्टोरी पर आता हु. मेरी उनके साथ बहुत पटती थी और हम दोनों हमेशा ही आपस में मजाक करते थे. जब भी मैं गाँव जाता था. तो वो मुझसे मेरी गर्ल फ्रेंड के बारे में पूछती थी और मैं उनको मनगडथ कहानी सुना देता था. मेरी कोई गर्ल फ्रेंड तो थी नहीं. फिर भी उनको मेरी कहानी सुनने में मज़ा आता था. एक दिन तो उन्होंने मेरे गाल पर किस कर दिया. मैं शॉक रह गया था. फिर उन्होंने हंसी में बात को टाल दिया. तब से मुझे उनपर शक होने लगा, कि साली रंडी के दिमाग में कुछ चल रहा है.
पर मैं उस वक्त कुछ नहीं कर सकता था. बस समय की प्रतीक्षा में था, जोकी मुझे अब मिलने वाला था. जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी. तो मुझे घर आये ११ दिन के ऊपर हो चुके थे. इस बीच मैंने खूब छेड़ा उन्हें. इधर-उधर हाथ मारता, वो कुछ भी नहीं बोलती थी, उल्टा मुझे चिड़ा देती थी. १२ दिन के बाद, दादी जी का सब क्रियाकर्म ख़तम हुआ और फिर आई वाज अलाउड तो स्लीप ओं बेड, अब तक मैं नीचे जमीन पर ही सो रहा था.हमारे घर में दो बेडरूम और एक गेस्टरूम है. मैं अपने रूम में सोता था और उसी रात को माँ ने अंजू से कहा की वो मेरे कमरे में सो जाए. बारिश का मौसम था, थोड़ी ठण्ड भी थी. तो माँ ने एक बड़ा मोटा चादर हमको दे दिया और बोला – रात को अगर ठण्ड लगे. मैं तो बहुत ही एक्साइट था. जिस कारण मेरे लंड महाराज ख़ुशी से फुला और खड़ा था. ऐसी फीलिंग मुझे पहले कभी नहीं हुई थी. सभी दरवाजे बंद करके वो कमरे में आई और मेरे साइड लेट गये.वो मेरे साइड में लेटी थी और सोने की कोशिश कर रही थी. ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। लेकिन मेरे आँखों में नीद नहीं थी. मैं तो बस उनको पेलने की फ़िराक में था. मैं उन्हें जकड़ लिया और मेरी ओर खीच लिया, मानो कामदेव ने कृपा की हो. वो मना करने लगी, कि माँ जाग जायेगी. ये सब ठीक नहीं है, पर ज्यादा फोरस नहीं कर रही थी. मैंने थोड़ा जोर दिया, कि कुछ नहीं होगा, कोई नहीं जानेगा. मैं तो बस तुम्हे पकड़कर सोना चाहता हु. वो मना कर रही थी और मैं उसको पकड़कर सोने की जिद कर रहा था. थोड़ी सी जिद के बाद उसने भी प्रोटेस्ट करना बंद कर दिया.हाथ के ऊपर हाथ को रखने सोने की एक्टिंग करने लगा. मैंने सोचा, अच्छा मौका है हाथ साफ़ करने का और मैंने अपना हाथ खीच के उसके साड़ी के अन्दर उसके पेट पर रख दिया और कसके जकड़ लिया. वो थोड़ी सी मेरे बदन से चिपक गयी और कहने लगी, कोई जाग जाएगा. माँ उठ जायेगी. तो मैंने थोडा कन्वेंस किया, तो वो मान गयी और मैं अपना हाथ थोडा-थोडा ऊपर लेता गया और फाइनली उसके रसीले आम को मैंने पकड़ लिया. एक अजीब सी करंट मेरे शरीर में दौड़ गयी.

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मेरे बदन का रोम-रोम सिहर उठा. शायद फर्स्ट टाइम ऐसा ही होता होगा, ये मैंने मन ही सोच लिया. वो मन करने लगी, पर मैं कहाँ मानने वाला था. मैंने वैसे ही उसके चूची को पकड़ा और थोड़ी देर के बाद एक-एक करके उसकी ब्लाउज के ऊपर के दो हुक खोल दिए. अब मैंने अपना हाथ ब्लाउज के अन्दर घुसा दिया. वह मानो जन्नत की कोई हसीन चीज़ मेरे हाथ लग गयी हो. इसके पहले मैंने बहुत साड़ी ब्लू फिल्म देखी और मुझे पता था, कि इसके आगे क्या करना है. सो मैंने अंजू के दूध को मसलना शुरू कर दिया.वो अपनी आँखे बंद किये हुए कुछ बडबडा रही थी. शायद वो मोअनिंग कर रही थी. मैं उस तरफ ध्यान ना देते हुए, बाकि के बचे हुक को भी खोलने लगा. मैंने उसके ब्लाउज को उतार फेंका. वो यार क्या नज़ारा था. ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। आज तक मैंने जो चीज़ ब्लू फिल्म में ही देखी थी वो आज मेरे सामने थी. मैं खुद पर कण्ट्रोल नहीं कर सका और टूट पड़ा उन प्यारे कप साइज़ दूध के ब्राउन निप्पल पर. वो एकदम इरेक्ट हो चुके थे. अंजू ने मुझे हटाया और मेरे लिप्स पर अपने लिप्स रख दिए.मैं मान ही मान खुश हुआ, कि चलो आखिर में साली माँ की लौड़ी जो इतने दिनों से मुझे परेशान किये हुई थी, आज मेरे सामने अर्ध नंगी हो के लेटी है. खूब जोर से हमारी किस चल रही थी. मैं उसकी जीभ चूस रहा था और वो मेरी. मैंने उसे नीचे बेड पर गिरा दिया और उसको सर से लेकर पेट तक चूमने लगा. अंजू बस मोअन किये जा रही थी. आहाहाहः हहहहः आआआआआआ ऊऊऊ बस करो विराज आहाहाह….मर जाउंगी …. बस करो … और मैं भी कहाँ रुकने वाला था. एक हाथ से उसके दूध को दबाता रहा. मैंने अपनी जीभ से उसकी नाभि चाटे जा रहा था. मुझे उसकी नाभि चाटने में बड़ा मज़ा आ रहा था, वो मानो मछली की तरह उछल रही थी. फिर मैंने उसके निप्पल को मुह में भरा और जोर से चूसने लगा.अंजू – खा जा इसे. चबा डाल. बहुत हैरान किये हुए है और तेरे लिए ही बचाकर रखे है. सक इट हार्डर. मोर हार्डर हहहहः ऊऊऊऊऊ म्मम्मम्मम एस बेबी. सक इट.. अहहः हहहः एस मोर मोर एस एस डार्लिंग … एस ..ऊऊऊ … ऊऊऊओ उसकी आवाज़े तेज होने लगी थी. अब मुझे डर लगने लगा था, कि ये आवाज़े माँ ना सुन ले. इसलिए, मैंने उसके मुह में एक कपड़ा ठूस दिया और उसके मुह को बंद कर दिया. लेकिन मैंने अपने काम को जारी रखा और उसके चूचो को चूस-चूसकर लाल कर दिया और अपने दांत भी गडा दिए. उसके चूचो पर मेरे दांत के निशान आ गये.

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उसने मेरे पेंट के ऊपर से मेरे लंड को पकड़ लिया और दबाने लगी. मैंने उसे पेंट उतारने को कहा और उसने झट से मेरी पेंट को नीचे कर दिया. उसने मेरे लंड को मेरे अंडरवियर से बाहर निकाल लिया और उसको देखने लगी. मेरा लंड एवरेज ६” का है और अच्छा मोटा भी है. कोई भी चूत को संतुष्ट करने के लिए ठीक है. तो उसे देखते ही उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी. उसे पता था, कि ये मेरा पहली बार है. इसलिए उसने जल्दी ना करते हुए, धीरे – धीरे लंड को ऊपर नीचे करना शुरू किया. काफू सीखी हुई खिलाडी थी. मैं अपने पर कण्ट्रोल नहीं रख पा रहा था और मैंने उसे जड़ से तेज हिलाने को कहा. तो उसने तेजी से हिलाना शुरू कर दिया और ४-५ मिनट में ही मैं झड़ गया. ये जो लम्हा था, क्या बताऊ स्वर्ग था, ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। बड़ा सुख मिला मुझे. मुझे पता था, कि ये तो शुरुवात थी. फिर उसने सारा माल अपने हाथो से साफ़ किया. इतना सारा कम आज पहले कभी नहीं निकली थी. उसके बाद उसने मुझे फिर से किस करना शुरू किया.मैं भी धीरे-धीरे मूड में आने लगा था और लंड फिर खड़ा होने लगा. इस बार लंड कुछ ज्यादा बड़ा और फुला हुआ था. अंजू की आँखों में चमक आने लगी थी और वो अपने होठो पर अपनी जीभ फेर रही थी. मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी और मुझे समझ आ गया था, कि मुझे क्या करना है? मैंने उसे झट से सुलाया और उसके सुंदर ब्राउन चुचियो को मसलने लगा. वो मोअन कर रही थी अहहहः हहहः विराज ..कुछ करो ना …अब सहन नहीं हो रहा .. जल्दी करो ना … और नहीं सहा नहीं जा रहा. अब मैं उसे चुमते हुए, धीरे-धीरे उसके पैरो तक पहुच गया और वहां उसको किस करने लगा. फिर धीरे-धीरे उसकी साड़ी को उठाने लगा और किस करता रहा.देर ना करते हुए, मैंने साड़ी को उसकी कमर तक उठा दिया और पेटीकोट साड़ी को निकाल फेंका. क्या गजब लग रही थी वो. आँखों पर यकीं नहीं हो रहा था. उसकी पेंटी भीगी हुई थी. शायद उसने पानी छोड़ दिया था. वो शर्मा रही थी और अपने हाथो से उसकी पेंटी को छुपा रही थी. मैंने उसके हाथो को चूमा और हटा दिया और फिर साइड से थाई को खूब चाटा और चूमा. फिर उसकी पेंटी को भी निकाल फेंका.

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चूत पर हलके ब्राउन बाल थे, शायद १-२ दिन पहले ही काटे होंगे. मैंने उसके ऊपर लगे हुए जूस को साफ़ किया. मैं उसकी चूत के ऊपर किस कर रहा था. उसने मुझे कहा, कि ये गन्दा है. पर मैंने कहा – कि मैं इसे टेस्ट करना चाहता हु. वो मना कर रही थी और मेरी बड़ी जिद करने पर मुश्किल से मानी. फिर क्या था, मैं तो टूट ही पड़ा उसकी चूत पर. मैंने उसकी चूत पर किस कर रहा था और धीरे से मैंने अपनी ऊँगली उसकी चूत में डाल दी. क्या गरम थी उसकी चूत ….अहहहः … म्मम्मम्मम … हहहहहः ….. आआआआ …भट्टी जैसी …. चूत को मैं चूमता गया और फिंगर से फक करता रहा. मर गयी …ओगोगोगो …मर गयी.अंजू – धीरे करो अहहहः हहहहः हहहहः … प्लीज धीरे करो ना …ऊऊऊओ .. म्मम्मम और मेरे सिर को उसकी चूत पर दबा रही थी. शायद उसे मज़ा आने लगा था. मुझे भी उसके जूस का टेस्ट एकदम मलाई के जैसा लग रहा था, ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। लकिन थोडा नमकीन था. उसके बाद मैंने अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर डाल दिया. तो वो सिस्कार उठी और अपना अपनी मेरे मुह पर छोड़ दिया. फिर मुझे खीच के मेरे मुह पर लगा जूस चाटने लगी और देर ना करते हुए, उसने मेरे लंड को पकड़ा और अपने चूत के पास ले आई.और धक्का लगाने को कहा. मैंने एक ही बार में आधे से ज्यादा लंड घुसा दिया. तो वो चिल्ला उठी .. ऊऊऊऊउईईईईईइ माँआआआआआअ … मार डाला. आहाहहहः आहाहहहः ऊऊऊओ. मार डाला कमीने, बहनचोद …. बहुत टाइट पुसी थी उसकी. बहुत दिनों से चूत में शायद कोई लंड नहीं डलवाया था उसने, इसलिए उसकी चूत बहुत टाइट थी. फिर, मैंने एक और जोर का धक्का मारा और मेरा पूरा लंड का पूरा लंड उसकी चूत में घुस गया.

अंजू – चोद साले … चोद … जान. चोदो ना अहहः हहहः हहहहः म्मम्मम

मैं – हाँ जान ये लो मेरा लंड .. और मैं और भी जोर से धक्के लगाने लगा.

अंजू – फाड़ डाल, इसे फाड़ डाल. हहहः म्मम्मम अहहहहः. … बहुत दिनों से परेशान किया हुआ था इसने. इऐऐऐअ इसिसिसिसिस म्मम्मम्मम आज इसे फाड़ डाल.

मैं – अपनी जितनी ताकत थी. सभी को मिला के उसे चोदने पर तुला हुआ था. दोनों का शरीर पसीने में मानो डूबा हुआ था. उसके बाद मैंने उसको पैरो को अपने कंधे पर लेके चोदना शुरू किया. अंजू भी अच्छा कोआपरेट कर रही थी. करीबन आधे घंटे की चुदाई के बाद, मेरा निकलने वाला था. इस बीच उसने जाने कितनी बार अपना पानी मुझपर छोड़ दिया होगा. मैंने उसे पूछा, कि कहाँ छोडू? ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। तो उसने अन्दर ही छोड़ने को कहा. तो १ मं के बाद, मैंने अपना सारा माल उसकी चूत के अन्दर डाल दिया.अंजू – अहहहहः म्मम्मम्म मरे राजा. मुझे बना ले अपनी रंडी. मुझे आज से अपनी बना ले. अब से तू जब भी चाहे, तब मुझे चोदना. ये कहकर उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया. १ घंटे बाद हम उठे और बाथरूम में साफ़ होने के लिए चले गये. बाथरूम से आकर हम दोनों नंगे ही एकदूसरे से चिपक कर सो गये. उसने मेरा लंड पकड़ा हुआ था और मैंने उसकी चुचियो को पकड़ा हुआ था. अगले तीन-चार दिन तक मैंने उसे काफी चोदा. दिन और रात में, जब भी मौका मिला और हर पोज में

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Sunday 24 December 2017

Behen ke mast nange badan se bistar garam kiyaa - Behen ki chudai -


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ये चुदाई कहानी मेरी और मेरी छोटी बहन की है. मैं एक मिडिल क्लास फॅमिली से हु और मेरा घर ज्यादा बड़ा नहीं है. मेरी फॅमिली में मेरे मम्मी पापा और मेरी बहन सोनी है. सोनी बहुत ही सुंदर है और उसकी हाइट ५’३” है और उसका रंग गोरा है. उसकी बॉडी स्लिम है और उसका फिगर ३४-३०-३४ का होगा. बात कुछ साल पहले की है. जब मेरी प्यारी बहन जवानी में कदम रख रही थी. और उसे नंगी देख के मेरे दिल में कसक जगी थी. चलिए आप को बताऊँ नंगी बहन का यह किस्सा.

उसका बदन इतना अच्छा है, कि भी देखता रह जाए. पर मेरे मन में कभी ऐसा कोई बुरा ख्याल उसके लिए नहीं आया था. फिर एकदिन, घर वो अकेली थी और मम्मी बाजु वाली आंटी के घर गयी हुई थी और वो नहाने जा रही थी. मेरा घर छोटा होने के कारण बाथरूम अटैच्ड है. तो मैं बिना नोंक करे अचानक से बाथरूम में घुस गया. जैसे ही मैने बाथरूम का दरवाजा खोला, तो मेरी आँखे खुली रह गयी. मेरी प्यारी बहन बिलकुल नंगी मेरे सामने खड़ी थी और मैं उलटे कदमो से वापस निकल गया. उसने भी अब दरवाजे को अन्दर से बंद कर लिया.मेरा सामान मेरी बहन के मस्त नंगे बदन को देखकर फुंकारने लगा था और मैने बाहर आके तुरंत मुठ मारी, तब जाके मुझे कुछ सुकून मिला. फिर वो जब भी मेरे सामने आती, तो उसे बहुत शर्म आती और एक दिन मेरे घर में बुआ रहने आ गयी. तो मम्मी ने सोनी को कहा – कि तुम भैया के रूम में सो जाओ. वो मेरे रूम में आकार लेट गयी. मुझे रात में चाय पीने की आदत है. ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। मैने उसे बोला – मेरे लिए चाय बना दो. वो चली गयी और फिर जब चाय लेकर लौटी, तो उसका पैर फर्श पर फिसल गया और वो स्लिप होकर गिर पड़ी और गरम चाय उसके शरीर पर गिर गयी. उसको काफी पेन हो रहा था.रात होने के कारण, मैने किसी को भी जगाना बेहतर नहीं समझा. मैने जल्दी से उसे उठाकर बेड की तरफ ले गया और बिठा दिया. मैने जल्दी से बर्नोल ट्यूब ले आया और उसको दे दी और बोला – ये लगा लो, दर्द कम हो जायेगा. उसने दवाई मुझसे ले ली और अपने हाथो और पैरो पर लगाने लगी. चाय गिरने की वजह से उसकी छीटे उसके पुरे बदन पर आई थी. वो अपनी पूरी बॉडी पर दवाई लगाने की कोशिश कर रही थी. पर वो अपनी पीठ पर हाथ नहीं लगा पा रही थी. उसने मुझे बोला – प्लीज यहाँ पर लगा दो. मैं हिम्मत करके उसके पास गया और उसको उल्टा लेटने को कहा. मैने ट्यूब हाथ में ले ली और जैसे ही मैने उसके बदन को छुआ, मेरे शरीर में करंट दौड़ गया. मैने फर्स्ट टाइम किसी को छुआ था और वो भी अपनी सगी



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बहन की इतनी सॉफ्ट पीठ थी, मैं आपको बता नहीं सकता. उसने जीन्स और टॉप पहनी हुई थी और टॉप लूज़ होने के कारण, मैने उसके अन्दर अपना हाथ डाल दिया. पर मैं दवाई सही से लगा नहीं पा रहा था, तो उसने कहा – भैया टॉप थोडा सा ऊपर कर दो और लगा दो. मैने उससे कहा – मेरा हाथ इससे ऊपर नहीं जा पा रहा है, तो उसने मुझे अपना टॉप थोडा और ऊपर करने को बोला. मैने उसकी टॉप को ऊपर कर दिया और अब मुझे उसकी ब्रा की बेल्ट दिखने लगी थी. मैं तो पागल हुआ जा रहा था, उसे देखकर. वो बोली – भैया लाइट बंद कर दो, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.तो मैने कहा – अंधेरे में सही से नहीं लग पायेगा. जब ब्रा बीच में होने की वजह से मेरा हाथ बार-बार फस रहा था, ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। तो मैने कहा – और कहीं लगाना है. वो बोली – भैया, थोड़ी देर और मालिश कर दो. जलन ख़तम हो जाएगी. मैने कहा – ये टॉप उतार दू. वो बोली – ठीक है और मैने पीछे से उसका टॉप उतार दिया. अब वो सिर्फ पिंक ब्रा में थी. क्या लग रही थी, मैं आपको बता नहीं सकता. लेकिन फिर भी उसकी ब्रा मेरे हाथ हाथ में फस रही थी. जिसके कारण, मैं ट्यूब उसकी पीठ पर सही से लगा नहीं पा रहा था. मैने कहा – इसको थोड़ी देर के लिए खोल दू? वो बोली ठीक है और मैने उसकी ब्रा खोल दी और ट्यूब लगाने लगा. कभी-कभी मेरा हाथ उसकी चुचियो पर छु जाता, तो वो अजीब सी आवाज़ निकालती. मैने ट्यूब लगाने के बाद, वापस ब्रा बंद की. वो बोली – भाई थोडा और नीचे भी लगा दो. मैंने कहा – कहाँ. तो उसने कहा – कमर के नीचे.मैने उसको कहा – तुमने तो जीन्स पहनी हुई है. वो बोली – इसको थोडा नीचे कर दो. फिर मैने उसको सीधा किया और उसकी जीन्स का बटन खोल कर उसकी जीन्स को नीचे करने लगा. जैसे ही मैने उसकी जीन्स नीचे की, मैं तो पागल हो गया.

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उसने जीन्स के नीचे पेंटी नहीं पहनी थी. मैं तो पागल हुए जा रहा था उसकी झांटो से भरी हुई चूत देखकर. मैने कहा – अब कहाँ पर लगाना है? उसने कहा – जहाँ भी आपका मन करे. फिर उसने बोला – भैया गर्मी बहुत लग रही है और ये कहकर उसने अपनी ब्रा भी उतार दी. अब वो मेरे सामने बिलकुल नंगी खड़ी थी और मैं उसको देखे ही जा रहा था. वो बोली – ऐसे क्या देख रहे हो, भैया. फिर मैं उसके पास गया और उसको अपनी बाहों में भर लिया और किस करने लगा. वो भी कहराने लगी. मैने कहा – तुम कितनी हॉट हो. वो बोली – अगर हॉट होती, तो आप इतनी देर ना लगाते.मुझे ही सब कुछ उतारना पड़ा. मैंने कहा – मैं तुमको चोदना चाहता हु. वो बोली – पर ये किसी को पता नहीं चलना चाहिए. ये चुदाई कहानियाँ,रियल हिंदी सेक्स स्टोरिज़ डॉट कॉम पर पड़ रहे है। मैने कहा – ओके और मैं पागलो की तरह उसकी चुचियो को दबाने और पीने लगा. वो भी मस्त हो गयी और खूब मोअनींग करने लगी. फिर मैने भी अपने कपड़े उतार दिए और अपना लंड उससे चूसने को कहा. वो मना करने लगी. फिर मेरे फ़ोर्स करने पर मान गयी और उसने मेरे लंड को मुह में लेकर खूब मज़े से चूसा. फिर मैं भी ६९ पोजीशन में हो गया और उसकी चूत में मुह लगा दिया. उसकी वर्जिन चूत थी. जिसकी खुशबु तो आप सब जानते ही है. हम दोनों ने एक दुसरे का मुह में झडवा लिया.फिर वो मेरा लंड खड़ा करने लगी और मैने उसे बेड पर लिटाकर बहन की गांड के नीचे तकिया लगाया और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा.फिर धीरे से टोपा उसकी चूत के मुह पर रखकर झटका दिया, जिससे मेरा आधा लंड उसके अन्दर चले गया. वो दर्द के कारण रोने लगी और फिर मैने उसके होठो पर किस करना चालू कर दिया. थोड़ी देर बाद, जब उसका दर्द कम हुआ तो वो अपनी गांड उठाने लगी, तो मैने दूसरा झटका मारा और अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया और फिर उसको चोदने लगा. १५ मिनट चोदने के बाद, फिर मैंने इंग्लिश स्टाइल में चोदना चालू किया.

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मैने उसे खूब चोदा और वो भी बड़े मज़े लेकर चुदती रही. और कहने लगी – भैया आप मेरी चूत फाड़कर मुझे रंडी बना दो.. और चोदो भैया … और वो अहहः अहहहः करने लगी. मैं २ या ३ बार झड़ चूका था और वो भी. उस रात हम लोगो ने पूरी रात सिर्फ चुदाई की. बस मेरी और उसकी कहानी हर रात में होती है और मैं उसे हर रात को चोदता हु. मैं उसकी गांड भी मारता हु. ये मैं आपको फिर कभी बताऊंगा.

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Thursday 21 December 2017

Birthday Me Gift me Mili Behen Ki Gulabi Choot - Indian Sex Story

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Us din meri birthday thi.  Birday se ek din pehlay us ne pucha tumein kya gift chaiye? Mein ne kaha tha bta dun ga baad mein. Birthday aai sab frens aye or sab ne gift diye us ne muj se kaha sab ne gift diye or muje sharmindagi hui k mein ne apnay bhai ko koi gift nahi dia. Mein ne kaha raat ko btaun ga abhi ja raha hun bahir. Raat ghar aya hum ne sath khana khaya Hum ek hi room mein tv dekhtay or phir apnay apnay room mein so jatay thay. Hum dono tv dekh rahey thay jab us ne pucha tum ne btaya nahi tumein kya gift chaiye. Mein ne nazar tv pe rakhi or kaha pehlay promise kro tum mind nhi kro gi. Us ne kaha promise ki kya baat ha mera ek hi bhai ha mein usay zrur gift dun gi.

Mein ne kaha nhi mein asay nhi btaun ga tum pehlay promise kro. Us ne kaha ok promise.Mein kuch der khamosh raha or tv ko dekhtay huay kaha mein tumharay boobs dekhna chahta hun. Vo ek dam gussay mein aa gai. Us ne kaha shut up tumein sharam nhi ati apni behan se asi bat krtay huay. Mein ne kaha i m sorry muje pta tha isi liye nahi bta raha tha. Us ne kaha agr mein papa ko fon kar dun to? Mein ne kaha to mein ghar chor k chala jaun ga.Lekin aap ne promise kia tha aap mind nhi kro gi.Us ne kaha lekin hum behan bhai hain is liye muje nhi pta tha tum asi bat kro gay. Us ne kaha ye bhi koi gift ha then i said mein bacha nhi raha jo khilonay mangta. Gift vohi hota ha jis se khushi milay muje sab gifts se ziada is gift se khushi milay gi. Mein ne kaha hum friends bhi to hain meri birthday ha muje tum achi lgti ho is liye keh dia and itz just excitement nd nothing. Vo khamosh rahi or tv dekhti rahi jab mein ne 3 dafa plzz kaha to us ne kaha ok tumhari birthday ha lekin meri ek shart ha. Tum sirf dur se dekho gay or touch nahi kro gay. behan ki chut chudai realhindisexstories.com pe padh rahe hai.Mein khush ho gaya mein ne kaha ok.Us ka face red ho raha tha sharm se. Us ne ankhein band ki hui thi mein ne dekha or dekhta hi reh gaya mein ne kaha tum boht sundar ho us ne kaha ok ab dekh lia bas? Mein ne kaha mein ne pehlay kabi kisi larki k boobs real mein touch nahi kiye. Plz ek dafa touch krnay do. Us ne kaha nahi tum ne promise kia tha. Mein ne kaha han kia tha lekin tum itni khubsurat ho plz only ek dafa ainda kabi nahi kahun ga. Us ne apni kamez nechay ki or khamosh rahi. Mein ne kaha jab dekh lia to ek dafa touch kar k dekhne se kia bigar jaye ga? Vo muje dekhti rahi mein ne ankhein nechay kar li.Us ne kaha sirf tumhari birthday ha is liye sirf ek dafa. Mein dil mein khush ho gaya or kaha ok. Bas jab touch kia to us ne apni ankhein band ka li sharam se. Mein ne faida uthaya or boobs ko kiss kar lia. Us ne ankhein kholi or kaha plz na kro. Mein ne kaha mein kon sa sex kar raha hun. Plz kuch min se kuch nhi hoga muje g bhar k dekhnay do. Tum muje bohut achi lgti ho. Mein ne itnay pyaray boobs kabi nhi dekhay or ye keh k boobs ko suck krnay lga vo ankhein band kar k khamosh rahi. Mein ne us ki body ko neck se kiss krna shuru kia or hands us k hips pe le gaya. Us ki panty mein hath dalnay lga to us ne rok dia or kaha ye galat ha. Sirf uper se hi.

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Mein cloths k uper se us ki pussy ko sehlanay lga or us ki neck boobs or body pe kiss krta raha. Tab mein ne apni shirt bhi utar di or us ka hath apni kamar pe rakh lia. Ab vo ziada insist nahi kar rahi thi. Mein itnay pyar se suck kar raha tha shayad usay bhi maza aanay lga tha shayad isi liye khamosh rahi. Phir mein ne us ki lastic wali shalwar utari to us ne ek dum uper khenchi shalwar. Mein ne kaha mein panty nahi utarun ga sirf legs pe kiss karnay k liye utar raha hun. Us ne hath dhelay kar diye. Ab vo sirf apni panty mein mere samnay thi. Mein kiss karta hua us ki pussy ko us ki panty k uper se kiss kar raha tha. Ab us ki panty utarnay lga tab bhi us ne rok dia.Mein ne kaha muje ek dafa dekhna ha or plz ek dafa andar se kiss krnay do mein sex nhi karun ga. Us ne kaha nahi. Mein ne kaha ok. Mein ne us ko ulta kia or us ki back pe kiss karnay lga. Vo ankhein band kar k ulti leti thi. Mein kiss kartay huay us ka hath apnay dick pe le gaya. Apna dick underwear k uper se us k hath mein dia.Us ne hath dick se hata lia. Mein ne apna underwear bhi nikal dia mera land tight tha or bekarar bhi. Mein ne us ka hath doabara apnay dick pe rakha. Us ne pakar lia lekin move nhi kar rahi thi. Mein ne apna hath us k hath pe rakha or move krnay lga. Phir usay sedha kia to vo dekhti hi reh gai. Us ne kaha tum jawan ho gaye ho itna hard or itna bada ha ye. Mein ne kaha isay hilao or us k boobs suck karnay lga. Us ne kaha q hilaun or ye itna garam q ha. Mein ne kaha tumein dekh k garam ha tum hilao gi to muje maza aye ga.Vo boht slowly hilanay lgi. Mein us k boobs suck krta hua us ki pussy pe aya or us ki panty tezi se utarnay lga. Us ne roka lekin adhi utar chuki thi. Mein ne kaha this iz not fair k tum ne muje dekh lia or muje nhi dekhnay de rahi. Plz dekhnay do na kuch nhi ho ga mein bhi to nude hun. Vo sedhi ho k let gai. Mein ne us ki panty nikal di. Ab vo total nude mere samnay thi. Mein ne kaha wow kya khubsurat shape ha or hath lga k kaha ye to boht mulaim ha. behan ne sharma ke apni pussy pe hath rakh lia. Mmein us ki thigh se kiss krta hua us k hands pe kiss krnay lga. Us k hands hata k us ki pussy ko touch kia to gili ho rhi thi. Mein us ko slowly rub krnay lga. Us ne muje khench k glay lga lia or mein apnay lips us k lips pe rakh k zordar kiss krnay lga.

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Mein samaj gaya ye hot ho chuki ha. Mein ab us k lips pe kiss kar raha tha or mera dick us ki gili pussy ko touch kar raha tha. Mein ne ek hath le ja k us ki direction sahi ki or zor lganay lga uski aaahh nikli or ek dum chonk gai. Usne kaha nhi bas ab stop! Muje pta tha vo hot ho chuki ha lekin darti ha kahin pregnant na ho jae. Mein ne kaha boht maza aa raha ha ek bar andar krnay do na plz us ne kaha nhi tumharay pas condom nhi ha or ye sahi nahi. Mein samaj gaya k is ka bhi dil kar raha ha land dalwane ko. Mein ne kaha mein bahir discharge krun ga promise. Usne kaha tum se galati ho gai to mein barbad ho jaun gi. behan ki chut chudai realhindisexstories.com pe padh rahe hai.Mein ne kaha muje tumhari izat ka khyal ha. Hum behan bhai hain kisi ko kabi shak nahi ho ga and i promise mein bahir discharge krun ga.Hum dono ghar mein sex k mazay lein gay or jab dil chahey jesay chahay ek dusray k sath enjoy kar sakein gay vo kafi convince ho chuki thi. Mein ne usay baho mein lia or kiss krna shuru kia. Ab vo mera sath de rahi thi shayad us ka bhi dil kar raha tha is liye sath dene per majbur thi or mein ne usay guarantee bhi di thi k kuch nahi ho ga or mein sab sambhal lun ga. Then i put cream on my dick and her pussy. Wo boht tight thi.Mein ne zor lgaya to us ki chekh nikal gai lekin mein ne apni speed ahista ki then jab us ka dard kam hua to zor se usay fuck krnay lga. Wow kya maza aa raha tha. Phir kuch der baad hum dono discharge ho gaye. Discharge k waqt mein ne bahir nikal lia us waqt vo doggy style mein thi or sara virya us ki gand pe gira dia. Jis se ek us ne sukh ka sans lia.Phir hum dono ne sath bath lia. Ab vo khush thi. Usne kaha tum boht stronge or smart ho. I like u too.Us k baad ye silsila chalta raha. Phir us ki shadi ho gai. Ab jab bhi vo milnay ati ha hum enjoy kartay hain or ab vo nhi darti balkay hum dono mein ye decide ha k hum kisi ko no nhi krein gay.Sirf ek dafa jab us ki gand mari thi tab usay boht dard hua tha jo usne bardash kia. Lekin baad mein us ne kuch nahi kaha.Ab to shadi k baad us ka jism bhar gaya ha. Muje us k boobs dabanay mein or bhi maza ata ha



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Saturday 18 November 2017

Ek Behan ki atamktha pehli chudayi ki khani (sisters sex story) - gandi khania | Hindi Sex Story

My name is seema and i m from indore. Wese to hamara parmanent ghar indore se 75 km door hain lekin main aur mere dono bhai indore me ek kamre ka room rent par lekar rehte hain. I m 25 year old ham 2 bhai aur 1 sister haien mera 1 bhai mujh se 2 saal bada hai and 1 bhai mujh se chota hai 2 years.yeh baat jo mein app ko batlane ja rahiey hoon yeh aaj se 5 sall pele ki hai. Os waqat mery age 20 saal thi mera rang gora hain aur smart hoon. Meri boobs ka size us waqt b 30 tha jo ab 34 hai and my bade bhai ki age 22 thi. mein bcom 1st year mien thi. Aur bahi ne pmt ke paper deiy hove thiey. Woh dekhney mein boot bara lagta tha. Kuch aur bataney se pehley mien yeh bata doon k its true story hain. Mery bahi ka name rahul hai hamarey ghar mien total five person rehtey haien merey dad aik mnc mien haien aur mery mammy aik company main job karti hain.
Baat un dino ki hain jab main. Jab main abne bade bhai se chudwa chuki thi. Lekin apne chote bhai ke aa jane ke karan hamari chudai band ho gayi thi. Mere bade hain. Chote bhai se dar rahe the. Ki kahi wo ghar par mummy papa ko batla na de. Is karan wo sex nahi kar pa rahe the. Bade bhai ne mujh se kaha ki wo kisi tarha se chote bhai ko tayyar kar le to wo aasani se sex kar sakte hain. Main chote bhai se chudwane ki plan banane lagi ek din moka mill gaya mera chota bhai jab computer chala raha tha to meine nahane chali gai mujhe pata tha ki mera bha jaroor mujhe dekhega main naha kar kewal towel main hi bahar aa gai aur chote bhai ki pith ki taraf ki kapde badalne lagi chota bhai mujhe glass main se dekh raha tha. Uska lund khada ho gaya we bathroom me gaya aur meri bra aur panty ko hath me lekar muth marne laga. Main ne dekha ki ye sahi samay main main ne use aawaj di ki mujhe toilet jaana hain. Usne kaha ki wo naha raha hain. To maine kaha ki main toilet kar lon bas do min. Lagele. Us ne darwaza kholdiya
maine dekhan ki us ne towel lappet rakha hain. Lekin uska lund khada hain. Main uske samne hi camode par paint utar kar baith gai wo mujhe badi gor se dekhne laga bathroom karne ke baad main us ke paas aayi wo dono hathon se apne lund ko chupa raha tha. Mainne us se kaha ki tum kya chupa rahe ho. To us ne kaha ki khuch nahi, aap yeh kahani facebook desi kahaniyan page par padh rahe hain. maine uska towel pakad kar hata diya. Uska lund khada tha. Maine kaha ki ye kya chote tumhara lund to khada hain. Wo mujh se towel lene ki koshish karne laga. Tabhi maine towel bathroom ke bahar phek diya. We towel uthane ke liya doda to maine piche se jakar us se lipat gayi. Aur apne hathon main bhai ka lund pakad liya. Wo sidhe kada ho. Gaya maine uske lund ko pakad kar hilane lagi.
Ke muh se aaaaaahhaaa aaaaaahhaaa ki awaaze aane lagi. Phir main niche baith gayi aur bhai ka lund apne muhn main lekar chusne lagi. Uska lund bahut bada tha. Uske lund ka topa gulabi tha. Lund ka size karib 7'5 inch ka tha. Main mast hone lagi thi. Ab bhai. Ne mera t-shirt aur paint utar di. Main pur tarha se naggin thi. Bhai ne apna lund meri chut par laga kar ragadne laga. Mere muh se aaaaaahhaaa aaaaaahhaaa aaaaaaaaaaaaaaaa ,oooooooo wwwoooo ki awaz aa rahe thi. Bahut der tak ragadne ke baad ab main aaaahhhhhhhhh aaaaaaaaahhhhh karne lagi phir mera bhai commode par baith gaya aur mujh se bola ki main uske lund par aa
kar baith jaun. Main ne uska lund apni chut par lagaya itne main bathroom main pade pani ki wajah se mera pair fisal gaya aur bhai ka lund sedhe meri chut phadta huwa andar chala gaya. Mere muh se cheekh aaaaaaaaaaaaaaaa ,oooooooo nikal gayi. Main uthne ke koshish karne lagi to bhai ne meri kamar pakad kar phir se mujhe niche dabadiya main isi tarha se bhai ke lund ki sawari karne lagi. Mere muh se aaaaahhhhhhhhhh aaaaaaahhhhhhhhhhh aaaaaaahhhhhhhhhhh ooooohhhhhhhhhhh aaaaaahhhhhhhhhhhh uuuuuuuuuuummmmmmmm uuuuuuuuummm ki awaj nikalne lagi. Bhai ne meri dono pair pakad kar mujhe apne hathon main utha liya. Us ne apna lund bahar nahi nikala mera pura bhar bhai ke lund par tha. Bhai mujhe upar niche karne laga mujhe bada maza aa raha tha. Main bhi masti me aaaaahhhhhhhhhh
aaaaaaahhhhhhhhhhh aaaaaaahhhhhhhhhhh ooooohhhhhhhhhhh aaaaaahhhhhhhhhhhh uuuuuuuuuuummmmmmmm uuuuuuuuummm aaaaahhhhhhhhhh aaaaaaahhhhhhhhhhh aaaaaaahhhhhhhhhhh ooooohhhhhhhhhhh aaaaaahhhhhhhhhhhh uuuuuuuuuuummmmmmmm uuuuuuuuummm ki ajib hi awaj nikal rahi thi. Phir bhai ne mujhe niche utara aur mujhe washbasin se hath tika kar khade hone ko kaha main ghdi ban kar khadi ho gayi. Bhai ne apna lund meri chut par tikaya aur ek jhatke ke sath meri chut main daal diya. Main bhi masti me aaaaahhhhhhhhhh
aaaaaaahhhhhhhhhhh aaaaaaahhhhhhhhhhh ki awaz nikal gayi. Tabhi bhai ne kaha ki "dard kar raha hai kya?" to main ne ek ajib awaj me kaharte huye jabab diya " nahiiiiiiiiiiiiiiii aaaaahhhhhhhhhhhh ohhhhhhhhhhhh". Ab mein bhi masti main bhai ka saath dene lagi. Dhire dhire hamari speed badne lagi aur ek ek kar ke hamari choot ho gayi. Bhai ne apna sara maal meri choot main daal diya. Aur mujhe se lipat gaya. Main puri tarha se santusht ho chuki thi. Phir ham dono bhai behan ne snaan karne ke baad baith kar baatein karne lage..
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Tuesday 14 November 2017

बहन की सील तोड़ी और गांड मारी खेत मे - Gandi Kahaniya | Hindi Sex Story


ये चुदाई कहानी,मेरी बहन की चुत और गांड की चुदाई की हैं । बहन को घोड़ी बना के चोदा, 8 इंच का लण्ड से बहन की चूत मारी, बहन की कुंवारी चूत को ठोका ।बहन की मोटे-मोटे चुतड और नारीयल के जैसे स्तन थे। जो की ऐसे लगते थे, जैसे की ब्लाउस को फाड के नीकल जायेन्गे और भाले की तरह से नुकिले थे। उसके चुतड भी कम सेक्षी नही थे। और जब वो चलती थी तो ऐसे मटकते थे की देखने वाले, उसकी हिलती गांड को देख कर हिल जाते थे। पर उस वक्त मुझे इन बातो का कम ही ग्यान था। फिर भी थोडा बहुत तो गांव के लडको के साथ रहने के कारण पता चल ही गया था। और जब भी मैं और बहिन कपडे धोने जाते तो मैं बडी खुशी के साथ कपडे धोने उसके साथ जाता था।जब  राखी , कपडे को नदी के किनारे धोने के लिये बैठती थी, तब वो अपनी साडी और पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा लेती थी और फिर पिछे एक पत्थर पर बैठ कर आराम से दोनो टांगे फैला कर जैसा की औरते पेशाब करते वक्त करति है, कपडो को साफ करती थी। मैं भी अपनी लुन्गी को जांघ तक उठा कर कपडे साफ करता रहता था।


इस स्थिति मे  राखी  की गोरी-गोरी टांगे, मुझे देखने को मिल जाती थी और उसकी साडी भी सिमट कर उसके ब्लाउस के बीच मे आ जाती थी और उसके मोटे-मोटे चुंचो के, ब्लाउस के पर से दर्शन होते रहते थे। कई बार उसकी साडी जांघो के उपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय, मे उसकी गोरी-गोरी, मोटी-मोटी केले के तने जैसी चिकनी जांघो को देख कर मेरा लंड खडा हो जाता था। मेरे मन मे कई सवाल उठने लगते। फिर मैं अपना सिर झटक कर काम करने लगता था। मैं और बहिन कपडो की सफाई के साथ-साथ तरह-तरह की गांव भर की बाते भी करते जाते। कई बार हमे उस सुम-सान जगह पर ऐसा कुछ् दीख जाता था जीसको देख के हम दोनो एक दुसरे से अपना मुंह छुपाने लगते थे। कपडे धोने के बाद हम वहीं पर नहाते थे, और फिर साथ लाया हुआ खाना खा, नदी के किनारे सुखाये हुए कपडे को इकट्ठा कर के घर वापस लौट जाते थे। मैं तो खैर लुन्गी पहन कर नदी के अंदर कमर तक पानी में नहाता था, मगर राखी  नदी के किनारे ही बैठ कर नहाती थी। नहाने के लिये राखी  सबसे पहले अपनी साडी उतारती थी फिर अपने पेटिकोट के नाडे को खोल कर, पेटिकोट उपर को सरका कर अपने दांत से पकड लेती थी। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउस पुरा ढक जाता था। फिर वो पेटिकोट को दांत से पकडे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउस को खोल कर उतारती थी और फिर पेटिकोट को छाती के उपर बांध देती थी। जीससे उसके चुंचे पुरी तरह से पेटिकोट से ढक जाते थे, कुछ भी नजर नही आता था, और घुटनो तक पुरा बदन ढक जाता था। फिर वो वहीं पर नदी के किनारे बैठ कर, एक बडे से जग से पानी भर-भर के पहले अपने पुरे बदन को रगड-रगड कर साफ करती थी और साबुन लगाती थी, फिर नदी में उतर कर नहाती थी।  राखी  की देखा-देखी, मैने भी पहले नदी के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना सुरु कर दीया, फिर मैं नदी में डुबकी लगा के नहाने लगा। मैं जब साबुन लगाता तो अपने हाथो को अपनी लुन्गी में घुसा के पुरे लंड और गांड पर चारो तरफ घुमा-घुमा के साबुन लगा के सफाई करता था। क्योंकि मैं भी  राखी  की तरह बहुत सफाई पसंद था।
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जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैने कई बार देखा की  राखी  बडे गौर से मुझे देखती रहती थी, और अपने पैर की एडीयां पत्थर पर धीरे-धीरे रगड के साफ करती होती। मैं सोचता था वो शायद इसलिये देखती है की, मैं ठीक से सफाई करता हुं या नही। इसलिये मैं भी बडे आराम से खूब दीखा-दीखा के साबुन लगाता था की कहीं डांट ना सुनने को मिल जाये की, ठीक से साफ-सफाई का ध्यान नही रखता हुं मैं। मैं अपनी लुन्गी के भितर पुरा हाथ डाल के अपने लौडे को अच्छे तरीके से साफ करता था। इस काम में मैने नोटिस किया की, कई बार मेरी लुन्गी भी इधर-उधर हो जाती थी। जीस से  राखी  को मेरे लंड की एक-आध झलक भी दीख जाती थी। जब पहली बार ऐसा हुआ, तो मुझे लगा की शायद  राखी  डांटेगी, मगर ऐसा कुछ नही हुआ। तब निश्चींत हो गया, और मजे से अपना पुरा ध्यान साफ सफाई पर लगाने लगा। राखी  की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था। और मैं भी चाहता था की मैं उसे सफाई करते हुए देखुं। पर वो ज्यादा कुछ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी, और फिर बडी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर अपनी छाती की सफाई करती। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो, वो अपना हाथ छाती में से निकाल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती थी। इसलिये मैं कुछ नही देख पाता था और चुंकि वो घुटनो को मोड के अपनी छाती से सटाये हुए होती थी, इसलिये पेटिकोट के उपर से छाती की झलक मिलनी चाहीए, वो भी नही मिल पाती थी। इसी तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपनी जांघो और उसके बीच की सफाई करती थी। ये ध्यान रखती की मैं उसे देख रहा हुं या नही। जैसे ही मैं उसकी ओर घुमता, वो झट से अपना हाथ नीकाल लेती थी, और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी। मैं मन-मसोस के रह जाता था। एक दिन सफाई करते-करते  राखी  का ध्यान शायद मेरी तरफ से हट गया था। और बडे आराम से अपने पेटिकोट को अपने जांघो तक उठा के सफाई कर रही थी। उसकी गोरी, चीकनी जांघो को देख कर मेरा लंड खडा होने लगा और मैं, जो की इस वक्त अपनी लुन्गी को ढीला कर के अपने हाथो को लुन्गी के अंदर डाल कर अपने लंड की सफाई कर रहा था, धीरे-धीरे अपने लंड को मसलने लगा। तभी अचानक  राखी  की नजर मेरे उपर गई, और उसने अपना हाथ नीकाल लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुइ बोली,
" क्या कर रहा है ? जल्दी से नहा के काम खतम कर। "

मेरे तो होश ही उड गये, और मैं जल्दी से नदी में जाने के लिये उठ कर खडा हो गया, पर मुझे इस बात का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लुन्गी तो खुली हुइ है, और मेरी लुन्गी सरसराते हुए नीचे गीर गई। मेरा पुरा बदन नन्गा हो गया और मेरा ८।५ ईंच का लंड जो की पुरी तरह से खडा था, धूप की रोशनी में नजर आने लगा। मैने देखा की राखी  एक पल के लिये चकित हो कर मेरे पुरे बदन और नन्गे लंड की ओर देखती रह गई। मैने जल्दी से अपनी लुन्गी उठाइ और चुप-चाप पानी में घुस गया। मुझे बडा डार लग रहा था की अब क्या होगा। अब तो पक्की डांट पडेगी। मैने कनखियों से  आभा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को नीचे कीये हल्के-हल्के मुस्कुरा रही है। और अपने पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है। मैने राहत की सांस ली। और चुप-चाप नहाने लगा। उस दिन हम ज्यादातर चुप-चाप ही रहे। घर वापस लौटते वक्त भी राखी  ज्यादा नही बोली। दुसरे दिन से मैने देखा की  राखी , मेरे साथ कुछ ज्यादा ही खुल कर हंसी मजाक करती रहती थी, और हमारे बीच डबल मीनींग (दोहरे अर्थो) में भी बाते होने लगी थी। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। पता नही  राखी  को पता था या नही पर मुझे बडा मजा आ रहा था। मैने जब भी किसी के घर से कपडे ले कर वापस लौटता तो  राखी  बोलती,
"क्यों, रधिया के कपडे भी लाया है धोने के लिये, क्या ?"
तो मैं बोलता, "हां ।",
इस पर वो बोलती,
"ठीक है, तु धोना उसके कपडे बडा गन्दा करती है। उसकी सलवार तो मुझसे धोई नही जाती।"
फिर् पुछती थी,
"अंदर के कपडे भी धोने के लिये दिये है, क्या ?"
अंदर के कपडो से उसका मतलब पेन्टी और ब्रा या फिर अंगिया से होता था। मैं कहता, " नही. ", तो इस पर हसने लगती और कहती,
"तु लडका है ना, शायद इसलिये तुझे नही दिये होन्गे, देख अगली बार जब मैं मांगने जाउन्गी, तो जरुर देगी।"
फिर, अगली बार जब वो कपडे लाने जाती तो सच-मुच में, वो उसकी पेन्टी और अंगिया ले के आती थी और बोलती,
"देख, मैं ना कहती थी की, वो तुझे नही देगी और मुझे दे देगी, तु लडका है ना, तेरे को देने में शरमाती होगी, फिर तु तो अब जवान भी हो गया है।"
मैं अन्जान बना पुछता की क्या देने में शरमाती है रधिया, तो मुझे उसकी पेन्टी और ब्रा या अंगिया फैला कर दिखाती और मुस्कुराते हुए बोलती,
"ले, खुद ही देख ले।"
इस पर मैं शरमा जाता और कनखियों से देख कर मुंह घुमा लेता तो, वो बोलती,
"अरे, शरमाता क्यों है ?, ये भी तेरे को ही धोना पडेगा।",
कह के हसने लगती।

हालांकि, सच में ऐसा कुछ नही होता और ज्यादातर मर्दो के कपडे मैं और औरतों के  आभा ही धोया करती थी। क्योंकि, उस में ज्यादा मेहनत लगती थी। पर पता नहीं क्यों  राखी , अब कुछ दिनो से इस तरह की बातों में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगी थी। मैं भी चुप-चाप उसकी बातें सुनता रहता और मजे से जवाब देता रहता था। जब हम नदी पर कपडे धोने जाते तब भी मैं देखता था की, मां, अब पहले से थोडी ज्यादा खुले तौर पर पेश आती थी। पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी, और पेटिकोट को अपनी छाती पर बांधने के बाद ही मेरी तरफ घुमती थी। पर अब वो इस पर ध्यान नही देती, और मेरी तरफ घुम कर अपने ब्लाउस को खोलती और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती। जबकि पहले वो मेरे नहाने तक इन्तेजार करती थी और जब मैं थोडा दूर जा के बैठ जाता, तब पुरा नहाती थी। मेरे नहाते वक्त उसका मुझे घुरना बा-दस्तूर जारी था। मुझ में भी अब हिम्मत आ गई थी और मैं भी, जब वो अपनी छातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घुर कर देखता रहता।  आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। राखी  भी मजे से अपने पेटिकोट को जांघो तक उठा कर, एक पत्थर पर बैठ जाती, और साबुन लगाती, और ऐसे एक्टींग करती जैसे मुझे देख ही नही रही है। उसके दोनो घुटने मुडे हुए होते थे, और एक पैर थोडा पहले आगे पसारती और उस पर पुरा जांघो तक साबुन लगाती थी। फिर पहले पैर को मोडे कर, दुसरे पैर को फैला कर साबुन लगाती। पुरा अंदर तक साबुन लगाने के लिये, वो अपने घुटने मोडे रखती और अपने बांये हाथ से अपने पेटिकोट को थोडा उठा के, या अलग कर के दाहिने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती। मैं चुंकि थोडी दुर पर उसके बगल में बैठा होता, इसलिये मुझे पेटिकोट के अंदर का नजारा तो नही मिलता था। जीसके कारण से मैं मन-मसोस के रह जाता था कि, काश मैं सामने होता। पर इतने में ही मुझे गजब का मजा आ जाता था। उसकी नन्गी, चीकनी-चीकनी जांघे उपर तक दीख जाती थी। राखी  अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद बडे मग को उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटिकोट के अंदर डाल देती और दुसरे हाथ से साथ ही साथ रगडती भी रहती थी। ये इतना जबरदस्त सीन होता था की मेरा तो लंड खडा हो के फुफकारने लगता और मैं वहीं नहाते-नहाते अपने लंड को मसलने लगता। जब मेरे से बरदास्त नही होता तो मैं सीधा नदी में, कमर तक पानी में उतर जाता और पानी के अंदर हाथ से अपने लंड को पकड कर खडा हो जाता, और  राखी  की तरफ घुम जाता। जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घुम कर नहाते देखती तो मुस्कुरा के मेरी तरफ् देखती हुई बोलती,

"ज्यादा दुर मत जाना, किनारे पर ही नहा ले। आगे पानी बहुत गहरा है।"मैं कुछ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसलते हुए नहाने की एक्टींग करता रहता। इधर राखी  मेरी तरफ देखती हुइ, अपने हाथो को उपर उठा-उठा के अपनी कांख की सफाई करती। कभी अपने हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के छाती को साफ करती, कभी जांघो के बीच हाथ घुसा के खुब तेजी से हाथ चलाने लगती, दुर से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मुठ मार रही है, और शायद मारती भी होगी। कभी-कभी, वो भी खडे हो नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटिकोट, जो की उसके बदन से चीपका हुआ होता था, गीला होने के कारण मेरी हालत और ज्यादा खराब कर देता था। पेटिकोट चीपकने के कारण उसकी बडी-बडी चुचियां नुमायां हो जाती थी। कपडे के उपर से उसके बडे-बडे, मोटे-मोटे निप्पल तक दीखने लगते थे। पेटिकोट उसके चुतडों से चीपक कर उसकी गांड की दरार में फसा हुआ होता था, और उसके बडे-बडे चुतड साफ-साफ दीखाई देते रहते थे। वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खडी हो के डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नजारा करवाती जाती। मैं तो वहीं नदी में ही लंड मसल के मुठ मार लेता था। हालांकि मुठ मारना मेरी आदत नही थी। घर पर मैं ये काम कभी नही करता था, पर जब से  राखी  के स्वभाव में परिवर्तन आया था, नदी पर मेरी हालत ऐसी हो जाती थी की, मैं मजबुर हो जाता था। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। अब तो घर पर मैं जब भी ईस्त्री करने बैठता, तो मुझे बोलती,देख, ध्यान से ईस्त्री करियो। पिछली बार श्यामा बोल रही थी की, उसके ब्लाउस ठीक से ईस्त्री नही थे।"मैं भी बोल पडता,ठीक है, कर दुन्गा। इतना छोटा-सा ब्लाउस तो पहनती है, ढंग से ईस्त्री भी नही हो पाती। पता नही कैसे काम चलाती है, इतने छोटे-से ब्लाउस में ?"
तो  राखी  बोलती,अरे, उसकी छातियां ज्यादा बडी थोडे ही है, जो वो बडा ब्लाउस पहनेगी, हां उसकी सांस के ब्लाउस बहुत बडे-बडे है। बुढीया की छाती पहाड जैसी है।"

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कह कर  आभा हसने लगती। फिर मेरे से बोलती,
"तु सबके ब्लाउस की लंबाई-चौडाई देखता रहता है, क्या ? या फिर ईस्त्री करता है।"
मैं क्या बोलता, चुप-चाप सिर झुका कर ईस्त्री करते हुए धीरे से बोलता,
"अरे, देखता कौन है ?, नजर चली जाती है, बस।"
ईस्त्री करते-करते मेरा पुरा बदन पसीने से नहा जाता था। मैं केवल लुन्गी पहने ईस्त्री कर रहा होता था।  राखी  मुझे पसीने से नहाये हुए देख कर बोलती,
"छोड अब तु कुछ आराम कर ले, तब तक मैं ईस्त्री करती हुं."
  राखी ये काम करने लगती। थोडी ही देर में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी साडी खोल कर एक ओर फेंक देती और बोलती,
"बडी गरमी है रे, पता नही तु कैसे कर लेता है, इतने कपडो की ईस्त्री,,? मेरे से तो ये गरमी बरदास्त नही होती।"
इस पर मैं वहीं पास बैठा उसके नन्गे पेट, गहरी नाभी और मोटे चुंचो को देखता हुआ बोलता,
"ठंडी कर दुं, तुझे ?"
"कैसे करेगा ठंडी ?"
"डण्डेवाले पंखे से। मैं तुझे पंखा झाल देता हुं, फेन चलाने पर तो ईस्त्री ही ठंडी पड जायेगी।"
"रहने दे, तेरे डण्डेवाले पंखे से भी कुछ नही होगा, छोटा-सा तो पंखा है तेरा।",
कह कर अपने हाथ उपर उठा कर, माथे पर छलक आये पसीने को पोंछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पुरी भीग गई है, और उसकी गरदन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउस के अंदर, उसकी दोनो चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर, उसके ब्लाउस को भीगा रहा होता।आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। घर के अंदर, वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी। इस कारण से उसके पतले ब्लाउस को पसिना पुरी तरह से भीगा देता था और, उसकी चुचियां उसके ब्लाउस के उपर से नजर आती थी। कई बार जब वो हल्के रंग का ब्लाउस पहनी होती तो उसके मोटे-मोटे भुरे रंग के निप्पल नजर आने लगते। ये देख कर मेरा लंड खडा होने लगता था। कभी-कभी वो ईस्त्री को एक तरफ रख के, अपने पेटिकोट को उठा के पसीना पोंछने के लिये अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके के इन्तेजार में बैठा रहता था। क्योंकि इस वक्त उसकी आंखे तो पेटिकोट से ढक जाती थी, पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसकी टांगे पुरी जांघ तक नन्गी हो जाती थी, और मैं बिना अपनी नजरों को चुराये उसकी गोरी-चीट्टी, मखमली जांघो को तो जी भर के देखता था। राखी , अपने चेहरे का पसीना अपनी आंखे बंध कर के पुरे आराम से पोंछती थी, और मुझे उसके मोटे कन्दली के खम्भे जैसी जांघो का पुरा नजारा दिखाती थी। गांव में औरते साधारणतया पेन्टी नही पहनती है। कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झांठो की हलकी-सी झलक देखने को मिल जाती। जब वो पसीना पोंछ के अपना पेटिकोट नीचे करती, तब तक मेरा काम हो चुका होता और मेरे से बरदास्त करना संभव नही हो पाता। मैं जल्दी से घर के पिछवाडे की तरफ भाग जाता, अपने लंड के खडेपन को थोडा ठंडा करने के लिये। जब मेरा लंड डाउन हो जाता, तब मैं वापस आ जाता।  राखी  पुछती,
"कहां गया था ?"
तो मैं बोलता,
"थोडी ठंडी हवा खाने, बडी गरमी लग रही थी।"
"ठीक किया। बदन को हवा लगाते रहना चाहिये, फिर तु तो अभी बडा हो रहा है। तुझे और ज्यादा गरमी लगती होगी।"
"हां, तुझे भी तो गरमी लग रही होगी  राखी  ? जा तु भी बाहर घुम कर आ जा। थोडी गरमी शांत हो जायेगी।"
और उसके हाथ से ईस्त्री ले लेता। पर वो बाहर नही जाती और वहीं पर एक तरफ मोढे पर बैठ जाती। अपने पैर घुटनो के पास से मोड कर और अपने पेटिकोट को घुटनो तक उठा के बीच में समेट लेती।  राखी  जब भी इस तरीके से बैठती थी तो मेरा ईस्त्री करना मुश्कील हो जाता था। उसके इस तरह बैठने से उसकी, घुटनो से उपर तक की जांघे और दीखने लगती थी।
"अरे नही रे, रहने दे मेरी तो आदत पड गई है गरमी बरदाश्त करने की।"
"क्यों बरदाश्त करती है ?, गरमी दिमाग पर चढ जायेगी। जा बाहर घुम के आ जा। ठीक हो जायेगा।"
"जाने दे तु अपना काम कर। ये गरमी ऐसे नही शान्त होने वाली"अब मैं तुझे कैसे समझाउं, कि उसकी क्या गलती है ? काश, तु थोडा समझदार होता।"
कह कर  राखी  उठ कर खाना बनाने चल देती। मैं भी सोच में पडा हुआ रह जाता कि, आखिर  राखी  चाहती क्या है ?
रात में जब खाना खाने का टाईम आता, तो मैं नहा-धो कर किचन में आ जाता, खाना खाने के लिये।  राखी  भी वहीं बैठ के मुझे गरम-गरम रोटियां शेक देती। और हम खाते रहते। इस समय भी वो पेटिकोट और ब्लाउस में ही होती थी। क्योंकि किचन में गरमी होती थी और उसने एक छोटा-सा पल्लु अपने कंधो पर डाल रखा होता। उसी से अपने माथे का पसीना पोंछती रहती और खाना खिलाती जाती थी मुझे। हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते। मैने मजाक करते हुए बोलता,
"सच में  राखी , तुम तो गरम ईस्त्री (वुमन) हो।"
वो पहले तो कुछ समझ नही पाती, फिर जब उसकी समझ में आता की मैं आयरन- ईस्त्री न कह के, उसे ईस्त्री कह रहा हुं तो वो हंसने लगती और कहती,
"हां, मैं गरम ईस्त्री हुं।",
और अपना चेहरा आगे करके बोलती,
"देख कितना पसीना आ रहा है, मेरी गरमी दुर कर दे।"
"मैं तुझे एक बात बोलुं, तु गरम चीज मत खाया कर, ठंडी चीजे खाया कर।"
"अच्छा, कौन सी ठंडी चीजे मैं खांउ, कि मेरी गरमी दुर हो जायेगी ?"
"केले और बैगन की सब्जियां खाया कर।"
इस पर राखी  का चेहरा लाल हो जाता था, और वो सिर झुका लेती और धीरे से बोलती,
"अरे केले और बैगन की सब्जी तो मुझे भी अच्छी लगती है, पर कोइ लाने वाला भी तो हो, तेरा जीजा तो ये सब्जियां लाने से रहा, ना तो उसे केले पसंद ,है ना ही उसे बैगन।"
"तु फिकर मत कर। मैं ला दुन्गा तेरे लिये।"
"हाये, बडा अच्छा भाई  है, बहिन   का कितना ध्यान रखता है।"
मैं खाना खतम करते हुए बोलता,
"चल, अब खाना तो हो गया खतम. तु भी जा के नहा ले और खाना खा ले।"
"अरे नही, अभी तो तेरा जीजा देशी चढा के आता होगा। उसको खिला दुन्गी, तब खाउन्गी, तब तक नहा लेती हुं। तु जा और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है।"
मुझे भी ध्यान आ गया कि हां, कल तो नदी पर भी जाना है। मैं छत पर चला गया। गरमियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे। ठंडी ठंडी हवा बह रही थी, मैं बिस्तर पर लेट गया और अपने हाथों से लंड मसलते हुए, राखी  के खूबसुरत बदन के खयालो में खोया हुआ, सप्ने देखने लगा और कल कैसे उसके बदन को ज्यादा से ज्यादा निहारुन्गा, ये सोचता हुआ कब सो गया मुझे पता ही नही लगा। सुबह सुरज की पहली किरण के साथ जब मेरी नींद खुली तो देखा, एक तरफ  जीजा अभी भी लुढका हुआ है, और  राखी  शायद पहले ही उठ कर जा चुकी थी। मैं भी जल्दी से नीचे पहुंचा तो देखा की  राखी  बाथरुम से आ के हेन्डपम्प पर अपने हाथ-पैर धो रही थी। मुझे देखते ही बोली,आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। चल, जल्दी से तैयार हो जा, मैं खाना बना लेती हुं। फिर जल्दी से नदी पर नीकल जायेन्गे, तेरे जीजा को भी आज शहर जाना है बीज लाने, मैं उसको भी उठा देती हुं।"थोडी देर में, जब मैं वापस आया तो देखा की जीजा भी उठ चुका था और वो बाथरुम जाने की तैयारी में था। मैं भी अपने काम में लग गया और सारे कपडों के गठर बना के तैयार कर दीया। थोडी देर में हम सब लोग तैयार हो गये। घर को ताला लगाने के बाद जीजा बस पकडने के लिये चल दीया और हम दोनो नदी की ओर। मैने राखी   से पुछा की  जीजा कब तक आयेन्गे तो वो बोली,"क्या पता, कब आयेगा? मुझे तो बोला है की कल आ जाउन्गा पर कोइ भरोसा है, तेरे जीजा का ?, चार दिन भी लगा देगा।"

हम लोग नदी पर पहुंच गये और फिर अपने काम में लग गये, कपडों की सफाई के बाद मैने उन्हे, एक तरफ सुखने के लिये डाल दीये और फिर हम दोनो ने नहाने की तैयारी शुरु कर दी। राखी  ने भी अपनी साडी उतार के पहले उसको साफ किया फिर हर बार की तरह अपने पेटिकोट को उपर चढा के अपना ब्लाउस निकला, फिर उसको साफ किया और फिर अपने बदन को रगड-रगड के नहाने लगी। मैं भी बगल में बैठा उसको निहारते हुए नहाता रहा। बे-खयाली में एक-दो बार तो मेरी लुन्गी भी, मेरे बदन पर से हट गई थी। पर अब तो ये बहुत बार हो चुका था। इसलिये मैने इस पर कोइ ध्यान नही दीया। हर बार की तरह आभा ने भी अपने हाथों को पेटिकोट के अन्दर डाल के खुब रगड-रगड के नहाना चालु रखा। थोडी देर बाद मैं नदी में उतर गया। राखी  ने भी नदी में उतर के एक-दो डुबकियां लगाई, और फिर हम दोनो बाहर आ गये। मैने अपने कपडे चेन्ज कर लीये और पजामा और कुर्ता पहन लिया।राखी  ने भी पहले अपने बदन को टोवेल से सुखाया, फिर अपने पेटिकोट के इजरबंध को जिसको कि, वो छाती पर बांध के रखती थी, पर से खोल लिया और अपने दांतो से पेटिकोट को पकड लिया, ये उसका हंमेशा का काम था, मैं उसको पत्थर पर बैठ के, एक-टक देखे जा रहा था। इस प्रकार उसके दोनो हाथ फ्री हो गये थे। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। अब सुखे ब्लाउस को पहनने के लीये पहले उसने अपना बांया हाथ उस में घुसाया, फिर जैसे ही वो अपना दाहिना हाथ ब्लाउस में घुसाने जा रही थी कि, पता नही क्या हुआ उसके दांतो से उसका पेटिकोट छुट गया और सीधे सरसराते हुए नीचे गीर गया। और उसका पुरा का पुरा नन्गा बदन एक पल के लीये मेरी आंखो के सामने दिखने लगा। उसकी बडी-बडी चुचियां, जिन्हे मैने अब तक कपडों के उपर से ही देखा था, उसके भारी-भारी चुतड, उसकी मोटी-मोटी जांघे और झांठ के बाल, सब एक पल के लीये मेरी आंखो के सामने नन्गे हो गये। पेटिकोट के नीचे गीरते ही, उसके साथ ही आभा भी, हाये करते हुए तेजी के साथ नीचे बैठ गई। मैं आंखे फाड-फाड के देखते हुए, गुंगे की तरह वहीं पर खडा रह गया। राखी  नीचे बैठ कर अपने पेटिकोट को फिर से समेटती हुई बोली,

"ध्यान ही नही रहा। मैं, तुझे कुछ बोलना चाहती थी और ये पेटिकोट दांतो से छुट गया।"मैं कुछ नही बोला। राखी  फिर से खडी हो गई और अपने ब्लाउस को पहनने लगी। फिर उसने अपने पेटिकोट को नीचे किया और बांध लिया। फिर साडी पहन कर वो वहीं बैठ के अपने भीगे पेटिकोट को साफ कर के तैयार हो गई। फिर हम दोनो खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद हम वहीं पेड की छांव में बैठ कर आराम करने लगे। जगह सुम-सान थी। ठंडी हवा बह रही थी। मैं पेड के नीचे लेटे हुए, आभा की तरफ घुमा तो वो भी मेरी तरफ घुमी। इस वक्त उसके चेहरे पर एक हलकी-सी मुस्कुराहट पसरी हुई थी। मैने पुछा,
"राखी , क्यों हस रही हो ?"
तो वो बोली,
"मैं कहां हस रही हुं ?"
"झुठ मत बोलो, तुम मुस्कुरा रही हो।"
"क्या करुं ? अब हंसने पर भी कोइ रोक है, क्या ?"
"नही, मैं तो ऐसे ही पुछा रहा था। नही बताना है तो मत बताओ।"
"अरे, इतनी अच्छी ठंडी हवा बह रही है, चेहरे पर तो मुस्कान आयेगी ही।"
"हां, आज गरम ईस्त्री (वुमन) की सारी गरमी जो निकल जायेगी।"
"क्या मतलब, ईस्त्री (आयरन) की गरमी कैसे निकल जायेगी ? यहां पर तो कहीं ईस्त्री नही है।"
"अरे राखी , तुम भी तो ईस्त्री (वुमन) हो, मेरा मतलब ईस्त्री माने औरत से था।"
"चल हट बदमाश, बडा शैतान हो गया है। मुझे क्या पता था की, तु ईस्त्री माने औरत की बात कर रहा है।"
"चलो, अब पता चल गया ना।""हां, चल गया। पर सच में यहां पेड की छांव में कितना अच्छा लग रहा है। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है, और आज तो मैने पुरी हवा खायी है।",
राखी  बोली।
"पुरी हवा खायी है, वो कैसे ?"
"मैं पुरी नन्गी जो हो गई थी।",
फिर बोली,
"हाये, तुझे मुझे ऐसे नही देखना चाहिए था ?"
"क्यों नही देखना चाहिए था ?"
"अरे बेवकूफ, इतना भी नही समजता। एक  बहिन को, उसके भाई के सामने नंगा नही होना चाहिए था।"
"कहां नंगी हुई थी, तुम ? बस एक सेकन्ड के लिये तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गीर गया था।"
(हालांकि, वही एक सेकन्ड मुझे एक घन्टे के बराबर लग रहा था।)
"हां, फिर भी मुझे नंगा नही होना चाहिए था। कोई जानेगा तो क्या कहेगा कि, मैं अपने भाई के सामने नन्गी हो गई थी।"
"कौन जानेगा ?, यहां पर तो कोई था भी नही। तु बेकार में क्यों परेशान हो रही है ?"
"अरे नही, फिर भी कोई जान गया तो।",
फिर कुछ सोचती हुई बोली,
"अगर कोई नही जानेगा तो, क्या तु मुझे नंगा देखेगा ?"
मैं और राखी  दोनो एक दुसरे के आमने-सामने, एक सुखी चादर पर, सुम-सान जगह पर, पेड के नीचे एक-दुसरे की ओर मुंह कर के लेटे हुए थे। और राखी  की साडी उसके छाती पर से ढलक गई थी। राखी  के मुंह से ये बात सुन के मैं खामोश रह गया और मेरी सांसे तेज चलने लगी।राखी  ने मेरी ओर देखाते हुए पुछा,
"क्या हुआ ?'
मैने कोई जवाब नही दिया, और हलके से मुस्कुराते हुए उसकी छातियों की तरफ देखने लगा, जो उसकी तेज चलती सांसो के साथ उपर नीचे हो रही थी। वो मेरी तरफ देखते हुए बोली,
"क्या हुआ ?, मेरी बात का जवाब दे ना। अगर कोई जानेगा नही तो क्या तु मुझे नंगा देख लेगा ?"
इस पर मेरे मुंह से कुछ नही निकला, और मैने अपना सिर नीचे कर लिया. राखी  ने मेरी ठुड्डी पकड के उपर उठाते हुए, मेरी आंखो में झांखते हुए पुछा,
"क्या हुआ रे ?, बोलना, क्या तु मुझे नंगा देख लेगा, जैसे तुने आज देखा है ?"
मैने कहा,

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"हाय राखी , मैं क्या बोलुं ?"
मेरा तो गला सुख रहा था। राखी  ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले लिया और कहा,
"इसका मतलब तु मुझे नंगा नही देख सकता, है ना ?"
मेरे मुंह से निकल गया,
"हाये राखी , छोडो ना।",
मैं हकलाते हुए बोला,
"नही राखी , ऐसा नही है।"
"तो फिर क्या है ? तु अपनी बहिन को नंगा देख लेगा क्या ?"
"हाये, मैं क्या कर सकता था ?, वो तो तुम्हरा पेटिकोट नीचे गीर गया, तब मुझे नंगा दिख गया। नही तो मैं कैसे देख पाता ?"
"वो तो मैं समझ गई, पर उस वक्त तुझे देख के मुझे ऐसा लगा, जैसे की तु मुझे घूर रहा है। ,,,,,,,,,,,,इसलिये पुछा।"
"हाये बहिन, ऐसा नही है। मैने तुम्हे बताया ना। तुम्हे बस ऐसा लगा होगा।"
"इसका मतलब, तुझे अच्छा नही लगा था ना।"
"हाये बहिन, छोडो.",
मैं हाथ छुडाते हुए, अपने चेहरे को छुपाते हुए बोला।
बहिन ने मेरा हाथ नही छोडा और बोली,
"सच-सच बोल, शरमाता क्यों है ?"
मेरे मुंह से निकल गया,
"हां, अच्छा लगा था।"
इस पर राखी  ने मेरे हाथ को पकडा के, सीधे अपनी छाती पर रख दिया, और बोली,
"फिर से देखेगा बहिन को नंगा, बोल देखेगा ?" मेरे मुंह से आवाज नही निकल पा रही थी। मैं बडी मुश्किल से अपने हाथों को उसकी नुकिली, गुदाज छातियों पर स्थिर रख पा रहा था। ऐसे में, मैं भला क्या जवाब देता। मेरे मुंह से एक कराहने की सी आवाज नीकली। राखी  ने मेरी ठुड्डी पकड कर, फिर से मेरे मुंह को उपर उठाया और बोली,
"क्या हुआ ? बोलना, शरमाता क्यों है ? जो बोलना है बोल।"
मैं कुछ नही बोला। थोडी देर तक उसकी चुचियों पर, ब्लाउस के उपर से ही हल्का-सा हाथ फेरा। फिर मैने हाथ खींच लिया। राखी  कुछ नही बोली, गौर से मुझे देखती रही। फिर पता नही, क्या सोच कर वो बोली,
"ठीक है, मैं सोती हुं यहीं पर। बडी अच्छी हवा चल रही है, तु कपडों को देखते रहेना, और जो सुख जाये उन्हे उठा लेना। ठीक है ?"आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। और फिर, मुंह घुमा कर, एक तरफ सो गई। मैं भी चुप-चाप वहीं आंखे खोले लेटा रहा। राखी  की चुचियां धीरे-धीरे उपर-नीचे हो रही थी। उसने अपना एक हाथ मोड कर, अपनी आंखो पर रखा हुआ था, और दुसरा हाथ अपनी बगल में रख कर सो रही थी। मैं चुप-चाप उसे सोता हुआ देखता रहा। थोडी देर में उसकी उठती-गीरती चुचियों का जादु मेरे उपर चल गया, और मेरा लंड खडा होने लगा। मेरा दिल कर रह था कि, काश मैं फिर से उन चुचियों को एक बार छु लुं। मैने अपने आप को गालियां भी नीकाली। क्या उल्लु का पठ्ठा हुं मैं भी। जो चीज आराम से छुने को मिल रही थी, तो उसे छुने की बजाये मैं हाथ हटा लिया। पर अब क्या हो सकता था। मैं चुप-चाप वैसे ही बैठा रहा। कुछ सोच भी नही पा रहा था। फिर मैने सोचा कि, जब उस वक्त राखी  ने खुद मेरा हाथ अपनी चुचियों पर रख दिया था, तो फिर अगर मैं खुद अपने मन से रखुं तो शायद डांटेगी नही, और फिर अगर डांटेगी तो बोल दुन्गा, तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस वक्त पकड कर रखा था, तो अब मैं अपने आप से रख दिया। सोचा, शायद तुम बुरा नही मानोगी। यही सब सोच कर मैने अपने हाथों को धीरे-से उसकी चुचियों पर ले जा के रख दिया, और हल्के-हल्के सहलाने लगा। मुझे गजब का मजा आ रहा था। मैने हल्के-से उसकी साडी को, पुरी तरह से उसके ब्लाउस पर से हटा दिया और फिर उसकी चुचियों को दबाया। ओओह, इतना गजब का मजा आया कि, बता नही सकता। एकदम गुदाज और सख्त चुचियां थी, राखी की इस उमर में भी। मेरा तो लंड खडा हो गया, और मैने अपने एक हाथ को चुचियों पर रखे हुए, दुसरे हाथ से अपने लंड को मसलने लगा। जैसे-जैसे मेरी बेताबी बढ रही थी, वैसे-वैसे मेरे हाथ दोनो जगहों पर तेजी के साथ चल रहे थे। मुझे लगता है कि, मैने राखी  की चुचियों को कुछ ज्यादा ही जोर से दबा दिया था। शायद इसलिये राखी  की आंख खुल गई। और वो एकदम से हडबडाते उठ गई, और अपने आंचल को संभालते हुए, अपनी चुचियों को ढक लिया, और फिर मेरी तरफ देखती हुइ बोली,
"हाये, क्या कर रहा था तु ? हाय, मेरी तो आंख लग गई थी।"
मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लंड पर था, और मेरे चेहरे का रंग उड गया था। राखी  ने मुझे गौर से एक पल के लिये देखा और सारा मांजरा समझ गई, और फिर अपने चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोली,
"हाये, देखो तो सही !! क्या सही काम कर रहा था ये लडका। मेरा भी मसल रहा था, और उधर अपना भी मसल रहा था।"
फिर राखी  उठ कर सीधा खडी हो गई और बोली,
"अभी आती हुं।",
कह कर मुस्कुराते हुए झाडियों कि तरफ बढ गई। झाडियों के पीछे से आ के, फिर अपने चुतडों को जमीन पर सटाये हुए ही, थोडा आगे सरकते हुए मेरे पास आई। उसके सरक कर आगे आने से उसकी साडी थोडी-सी उपर हो गई, और उसका आंचल उसकी गोद में गीर गया। पर उसको इसकी फिकर नही थी। वो अब एकदम से मेरे नजदीक आ गई थी और उसकी गरम सांसे मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी। वो एक पल के लिये ऐसे ही मुझे देखती रही, फिर मेरी ठुड्डी पकड कर मुझे उपर उठाते हुए, हल्के-से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली,
"क्यों रे बदमाश, क्या कर रहा था ?, बोलना, क्या बदमाशी कर रहा था, अपनी बहिन के साथ ?"
फिर मेरे फूले-फूले गाल पकड कर हल्के-से मसल दिये। मेरे मुंह से तो आवाज ही नही नीकल रही थी। फिर उसने हल्के-से अपना एक हाथ मेरी जांघो पर रखा और सहलाते हुए बोली,
"हाये, कैसे खडा कर रख है, मुए ने ?"

फिर सीधा पजामे के उपर से मेरे खडे लंड (जो की बहिन के जगने से थोडा ढीला हो गया था, पर अब उसके हाथों का स्पर्श पा के फिर से खडा होने लगा था) पर उसने अपना हाथ रख दिया,
"उईइ मां, कैसे खडा कर रखा है ?, क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था, क्या ? हाये बेटा, और मेरी इसको भी मसल रहा था ? तु तो अब लगता है, जवान हो गया है। तभी मैं कहुं कि, जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गीरा, ये लडका मुझे घुर-घुर के क्यों देख रहा था ? हाये, इस लडके की तो अपनी बहिन के उपर ही बुरी नजर है।"
"हाये बहिन, गलती हो गई, माफ कर दो।"
"ओहो, अब बोल रहा है गलती हो गई, पर अगर मैं नही जगती तो, तु तो अपना पानी नीकाल के ही मानता ना ! मेरी छातियों को दबा दबा के !! उमम्म्,,,, बोल, नीकालता की नही, पानी ?"
"हाये बहिन, गलती हो गई।"
"वाह रे तेरी गलती, कमाल की गलती है। किसी का मसल दो, दबा दो, फिर बोलो की गलती हो गई। अपना मजा कर लो, दुसरे चाहे कैसे भी रहे।",
कह कर बहिन ने मेरे लंड को कास् के दबाया, उसके कोमल हाथों का स्पर्श पा के मेरा लंड तो लोहा हो गया था, और गरम भी काफी हो गया था। "हाये राखी  छोडो, क्या कर रही हो ?" आभा उसी तरह से मुस्कुराती हुई बोली,
"क्यों प्यारे, तुने मेरा दबाया तब, तो मैने नही बोला कि छोडो। अब क्यों बोल रहा है, तु ?"
मैने कहा,
"हाये, राखी  तु दबायेगी तो सच में मेरा पानी निकल जायेगा। हाये, छोडो ना आभा।" "क्यों, पानी निकालने के लिये ही तो तु दबा रहा था ना मेरी छातियां ? मैं अपने हाथ से निकाल देती हुं, तेरे गन्ने से तेरा रस। चल, जरा अपना गन्ना तो दिखा।"
"हाये राखी , छोडो, मुझे शरम आती है।"
"अच्छा, अभी तो बडी शरम आ रही है, और हर रोज जो लुन्गी और पजामा हटा-हटा के, जब सफाई करता है तब,,,?, तब क्या मुझे दिखाई नही देता क्या ?, अभी बडी एक्टींग कर रहा है।"
"हाय, नही राखी , तब की बात तो और है, फिर मुझे थोडे ही पता होता था की तुम देख रही हो।"
ओह, ओह, मेरे भोले राजा, बडा भोला बन रहा है, चल दिखा ना, देखुं कितना बडा और मोटा है, तेरा गन्ना ? मैं कुछ बोल नही पा रहा था। मेरे मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे। और लग रहा था जैसे, मेरा पानी अब निकला की तब निकला। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। इस बीच राखी  ने मेरे पजामे का नाडा खोल दिया, और अंदर हाथ डाल के मेरे लंड को सीधा पकड लिया। मेरा लंड जो की केवल उसके छु ने के कारण से फुफकारने लगा था, अब उसके पकडने पर अपनी पुरी औकात पर आ गया और किसी मोटे लोहे की रोड की तरह एकदम तन कर उपर की तरफ मुंह उठाये खडा था। राखी  मेरे लंड को अपने हाथों में पकडने की पुरी कोशिश कर रही थी, पर मेरे लंड की मोटाई के कारण से वो उसे अपनी मुठ्ठी में, अच्छी तरह से कैद नही कर पा रही थी। उसने मेरे पजामे को वहीं खुले में, पेड के नीचे, मेरे लंड पर से हटा दिया।
"हाये राखी , छोडो, कोई देख लेगा। ऐसे कपडे मत हटाओ।"
मगर राखी  शायद पुरे जोश में आ चुकी थी।
"चल, कोई नही देखता। फिर सामने बैठी हुं, किसी को नजर भी नही आयेगा। देखुं तो सही, मेरे भाई का गन्ना आखिर, है कितना बडा ?"
और मेरा लंड देखते ही, आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला रह गया। एकदम से चौंकती हुई बोली,
"हाये दैय्या,,,!! ये क्या ,,,,??? इतना मोटा, और इतना लम्बा ! ये कैसे हो गया रे, तेरे जीजा का तो बित्ते भर का भी नही है, और यहां तु बेलन के जैसा ले के घुम रहा है।"
"ओह बहिन, मेरी इसमे क्या गलती है। ये तो शुरु में पहले छोटा-सा था, पर अब अचानक इतना बडा हो गया है, तो मैं क्या करुं ?"
"गलती तो तेरी ही है, जो तुने इतना बडा जुगाड होते हुए भी, अभी तक मुझे पता नही चलने दिया। वैसे जब मैने देखा था नहाते वक्त, तब तो इतना बडा नही दिख रहा था रे,,,,?"
"हाये बहिन, वो,,, वो,,,,"
मैं हकलाते हुए बोला,
"वो इसलिये, क्योंकि उस समय ये उतना खडा नही रहा होगा। अभी ये पुरा खडा हो गया है।"
"ओह, ओह, तो अभी क्यों खडा कर लिया इतना बडा ?, कैसे खडा हो गया अभी तेरा ?अब मैं क्या बोलता कि कैसे खडा हो गया। ये तो बोल नही सकता था कि, बहिन तेरे कारण खडा हो गया है मेरा। मैने सकपकाते हुए कहा,
"अरे, वो ऐसे ही खडा हो गया है। तुम छोडो, अभी ठीक हो जायेगा।"
"ऐसे कैसे खडा हो जाता है तेरा ?",
बहिन ने पुछा, और मेरी आंखो में देख कर, अपने रसीले होठों का एक कोना दबा के मुसकाने लगी ।
"अरे, तुमने पकड रखा है ना, इसलिये खडा हो गया है मेरा। क्या करुं मैं ?, हाये छोड दो ना।"
मैं किसी भी तरह से, बहिन का हाथ अपने लंड पर से हटा देना चाहता था। मुझे ऐसा लग रहा था कि, बहिन के कोमल हाथों का स्पर्श पा के कहीं मेरा पानी निकल ना जाये। फिर बहिन ने केवल पकडा तो हुआ नही था। वो धीरे-धीरे मेरे लंड को सहला भी, और बार-बार अपने अंगुठे से मेरे चिकने सुपाडे को छु भी रही थी।
"अच्छा, अब सारा दोष मेरा हो गया, और खुद जो इतनी देर से मेरी छातियां पकड के मसल रहा था और दबा रहा था, उसका कुछ नही ?""चल मान लिया गलती हो गई, पर सजा तो इसकी तुझे देनी पडेगी, मेरा तुने मसला है, मैं भी तेरा मसल देती हुं।",आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। कह कर बहिन अपने हाथो को थोडा तेज चलाने लगी और मेरे लंड का मुठ मारते हुए, मेरे लंड की मुंडी को अंगुठे से थोडी तेजी के साथ घीसने लगी। मेरी हालत एकदम खराब हो रही थी। गुदगुदाहत और सनसनी के मारे मेरे मुंह से कोई आवाज नही निकल पा रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे कि, मेरा पानी अब निकला की तब निकला। पर बहिन को मैं रोक भी नही पा रहा था। मैने सिसयाते हुए कहा,
"ओह बहिन, हाये निकल जायेगा, मेरा निकल जायेगा।"
इस पर बहिन और जोर से हाथ चलाते हुए अपनी नजर उपर करके, मेरी तरफ देखते हुए बोली,
"क्या निकल जायेगा ?"
"ओह, ओह, छोडोना, तुम जानती हो, क्या निकल जायेगा,,,? क्यों परेशान कर रही हो ?"
"मैं कहां परेशान कर रही हुं ? तु खुद परेशान हो रहा है।"
"क्यों, मैं क्यों भला खुद को परेशान करुन्गा ? तुम तो खुद ही जबरदस्ती, पता नही क्यों मेरा मसले जा रही हो ?"
"अच्छा, जरा ये तो बता, शुरुआत किसने कि थी मसलने की ?",
कह कर बहिन मुस्कुराने लगी।
मुझे तो जैसे सांप सुंघ गया था। मैं भला क्या जवाब देता। कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि क्या करुं, क्या ना करुं ? उपर से मजा इतना आ रहा था कि जान निकली जा रही थी। तभी बहिन ने अचानक मेरा लंड छोड दिया और बोली,
"अभी आती हुं।"
मुझे तो जैसे सांप सुंघ गया था। मैं भला क्या जवाब देता। कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि क्या करुं, क्या ना करुं ? उपर से मजा इतना आ रहा था कि जान निकली जा रही थी। तभी राखी ने अचानक मेरा लंड छोड दिया और बोली,
"अभी आती हुं।"से आगे---------और एक कातिल मुस्कुराहट छोडते हुए उठ कर खडी हो गई, और झाडियों की तरफ चल दी। मैं उसको झाडियों कि ओर जाते हुए देखता हुआ, वहीं पेड के नीचे बैठा रहा। झाडियां, जहां हम बैठे हुए थे, वहां से बस दस कदम की दूरी पर थी। दो-तीन कदम चलने के बाद राखी पिछे कि ओर मुडी और बोली,
"बडी जोर से पेशाब आ रही थी, तुझे आ रही हो तो तु भी चल, तेरा लंड भी थोडा ढीला हो जायेगा। ऐसे बेशरमों की तरह से खडा किये हुए है।"

और फिर अपने निचले होंठ को हल्के-से काटते हुए आगे चल दी। मेरी कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि मैं क्या करुं। मैं कुछ देर तक वैसे ही बैठा रहा। इस बीच राखी झाडियों के पिछे जा चुकी थी। झाडियों की इस तरफ से जो भी झलक मुझे मिल रही, वो देख कर मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि, राखी अब बैठ चुकी है और शायद पेशाब भी कर रही है। मैने फिर थोडी हिम्मत दिखाई और उठ कर झाडियों की तरफ चल दिया। झाडियों के पास पहुंच कर नजारा कुछ साफ दिखने लगा था। राखी आराम से अपनी साडी उठा कर बैठी हुई थी, और मुत रही थी उसके इस अंदाज से बैठने के कारण, पिछे से उसकी गोरी-गोरी झांघे तो साफ दिख ही रही थी, साथ-साथ उसके मख्खन जैसे चुतडों का निचला भाग भी लगभग साफ-साफ दिखाई दे रहा था। ये देख कर तो मेरा लंड और भी बुरी तरह से अकडने लगा था। हालांकि उसकी झांघो और चुतडों की झलक देखने का ये पहला मौका नही था, पर आज, और दिनो से कुछ ज्यादा ही उत्तेजना हो रही थी। उसके पेशाब करने की अवाज तो आग में घी का काम कर रही थी। सु,,,उ,उ,उ,,सु,,,सु,उ,उ,उ, करते हुए, किसी औरत के मुतने की आवाज में पता नही क्या आकर्षण होता है, किशोर उमर के सारे लडकों को अपनी ओर खींच लेती है। मेरा तो बुरा हाल हो रखा था। तभी मैने देखा कि राखी उठ कर खडी हो गई। जब वो पलटी तो मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली,
"अरे, तु भी चला आया ? मैने तो तुझे पहले ही कहा था कि, तु भी हल्का हो ले।"

फिर आराम से अपने हाथों को साडी के उपर बुर पे रख कर, इस तरह से दबाते हुए खुजाने लगी जैसे, बुर पर लगी पेशाब को पोंछ रही हो और, मुस्कुराते हुए चल दी, जैसे कि कुछ हुआ ही नही। मैं एक पल को तो हैरान परेशान सा वहीं पर खडा रहा। फिर मैं भी झाडियों के पिछे चला गया और पेशाब करने लगा। बडी देर तक तो मेरे लंड से पेशाब ही नही निकला, फिर जब लंड कुछ ढीला पडा, तब जा के पेशाब निकलना शुरु हुआ। मैं पेशाब करने के बाद वापस, पेड के निचे चल पडा।

पेड के पास पहुंच कर मैने देखा राखी बैठी हुई थी। मेरे पास आने पर बोली,
"आ बैठ, हल्का हो आया ?",
कह कर मुस्कुराने लगी। मैं भी हल्के-हल्के मुस्कुराते, कुछ शरमाते हुए बोला,
"हां, हल्का हो आया।"
और बैठ गया। मेरे बैठने पर राखी ने मेरी ठुड्डी पकड कर मेरा सिर उठा दिया और सीधा मेरी आंखो में झांकते हुए बोली,
"क्यों रे ?, उस समय जब मैं छु रही थी, तब तो बडा भोला बन रहा था। और जब मैं पेशाब करने गई थी, तो वहां पिछे खडा हो के क्या कर रहा था, शैतान !!"

मैने अपनी ठुड्डी पर से राखी का हाथ हटाते हुए, फिर अपने सिर को निचे झुका लिया और हकलाते हुए बोला,
"ओह राखी, तुम् भी ना,,,,,,"

"मैने क्या किया ?",
राखी ने हल्की-सी चपत मेरे गाल पर लगाई और पुछा।

"राखी, तुमने खुद ही तो कहा था, हल्का होना है तो, आ जाओ।"

इस पर राखी ने मेरे गालों को हल्के-से खींचते हुए कहा,
"अच्छा बेटा, मैने हल्का होने के लिये कहा था, पर तु तो वहां हल्का होने की जगह भारी हो रहा था। मुझे पेशाब करते हुए घुर-घुर कर देखने के लिये तो मैने नही कहा था तुम्हे, फिर तु क्यों घुर-घुर कर मजे लुट रहा था ?"

"हाय, मैं कहां मजा लुट रहा था, कैसी बाते कर रही हो राखी ?'

"ओह हो, शैतान अब तो बडा भोला बन रहा है।',
कह कर हल्के-से मेरी झांटो को दबा दिया।

"हाये, क्या कर रही हो,,,?"

पर उसने छोडा नही और मेरी आंखो में झांखते हुए फिर धीरे-से अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और फुसफुसाते हुए पुछा,
"फिर से दबाउं ?"

मेरी तो हालत उसके हाथ के छुने भर से फिर से खराब होने लगी। मेरी समझ में एकदम नही आ रहा था कि क्या करुं। कुछ जवाब देते हुए भी नही बन रहा था कि क्या जवाब दुं। तभी वो हल्का-सा आगे की ओर सरकी और झुकी। आगे झुकते ही उसका आंचल उसके ब्लाउस पर से सरक गया। पर उसने कोई प्रयास नही किया उसको ठीक करने का। अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी। मेरी आंखो के सामने उसकी नारीयल के जैसी सख्त चुचियां जीनको सपने में देख कर, मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गीराया था, और जीसको दुर से देख कर ही तडपता रहता था, नुमाया थी। भले ही चुचियां अभी भी ब्लाउस में ही कैद थी, परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके उपर से ही लगाया जा सकता था।आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है।  ब्लाउस के उपरी भाग से उसकी चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा-गोरा हिस्सा नजर आ रहा था। हालांकि, चुचियों को बहुत बडा तो नही कहा जा सकता, पर उतनी बडी तो थी ही, जितनी एक स्वस्थ शरीर की मालकिन की हो सकती है। मेरा मतलब है कि इतनी बडी जीतनी कि आप के हाथों में ना आये, पर इतनी बडी भी नही की आप को दो-दो हाथो से पकडनी पडे, और फिर भी आपके हाथ ना आये। एकदम किसी भाले की तरह नुकिली लग रही थी, और सामने की ओर निकली हुई थी। मेरी आंखे तो हटाये नही हट रही थी। तभी राखी ने अपने हाथों को मेरे लंड पर थोडा जोर से दबाते हुए पुछा,
"बोलना, और दबाउं क्या ?"

"हाये,,,,,,राखी, छोडो ना।"

उसने जोर से मेरे लंड को मुठ्ठी में भर लिया।

"हाये राखी, छोडो बहुत गुद-गुदी होती है।"

"तो होने दे ना, तु खाली बोल दबाउं या नही ?"

"हाये दबाओ राखी, मसलो।"

"अब आया ना, रस्ते पर।"

"हाये राखी, तुम्हारे हाथों में तो जादु है।"

"जादु हाथों में है या,,,,,,!!!, या फिर इसमे है,,,,??"
(अपने ब्लाउस की तरफ इशारा कर के पुछा।)

"हाये राखी, तुम तो बस,,,,,?!!"

"शरमाता क्यों है ?,बोलना क्या अच्छा लग रहा है,,?"

"हाय राखी,, मैं क्या बोलुं ?"

"क्यों क्या अच्छा लग रहा है,,,?, अरे, अब बोल भी दे शरमाता क्यों है,,?"

"हाये राखी दोनो अच्छे लग रहे है।"

"क्या, ये दोनो ? "
(अपने ब्लाउस की तरफ इशारा कर के पुछा)

"हां, और तुम्हारा दबाना भी।"

"तो फिर शरमा क्यों रहा था, बोलने में ? ऐसे तो हर रोज घुर-घुर कर मेरे अनारो को देखता रहता है।फिर राखी ने बडे आराम से मेरे पुरे लंड को मुठ्ठी के अंदर कैद कर हल्के-हल्के अपना हाथ चलाना शुरु कर दिया।

"तु तो पुरा जवान हो गया है, रे!"

"हाये राखी,,,,"

"हाये, हाये, क्या कर रहा है। पुरा सांढ की तरह से जवान हो गया है तु तो। अब तो बरदाश्त भी नही होता होगा, कैसे करता है,,,?"

"क्या राखी,,,,?"

"वही बरदाश्त, और क्या ? तुझे तो अब छेद (होल) चाहिये। समझा, छेद मतलब ?"

"नही राखी, नही समझा,,"

"क्या उल्लु लडका है रे, तु ? छेद मतलब नही समझता,,,,?!!"

मैने नाटक करते हुए कहा,
"नही राखी, नही समझता।"

इस पर राखी हल्के-हल्के मुस्कुराने लगी और बोली,
"चल समझ जायेगा, अभी तो ये बता कि कभी इसको (लंड की तरफ इशारा करते हुए) मसल-मसल के माल गीराया है ?"

"माल मतलब,,,!? क्या होता है, राखी,,,?"

"अरे उल्लु, कभी इसमे से पानी गीराया है, या नही ?" "हाय, वो तो मैं हर-रोज गीराता हुं। सुबह-शाम दिनभर में चार-पांच बार। कभी ज्यादा पानी पी लिया तो ज्यादा बार हो जाता है।"

"हाये, दिनभर में चार-पांच बार ? और पानी पीने से तेरा ज्यादा बार निकलता है ? कही तु पेशाब करने की बात तो नही कर रहा ?"

"हां राखी, वही तो मैं तो दिनभर में चार-पांच बार पेशाब करने जाता हुं।"

इस पर राखी ने मेरे लंड को छोड कर, हल्के-से मेरे गाल पर एक झापड लगाई और बोली,
"उल्लु का उल्लु ही रह गया, क्या तु ?"

फिर बोली
"ठहर जा, अभी तुझे दिखाती हुं, माल कैसे निकल जाता है ?"

फिर वो अपने हाथों को तेजी से मेरे लंड पर चलाने लगी। मारे गुद-गुदी और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था। समझ में नही आ रहा था क्या करुं। दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढा कर राखी की दोनो चुचियों को कस के पकड लुं, और खूब जोर-जोर से दबाउं। पर सोच रहा था कि कहीं बुरा ना मान जाये। इस चक्कर में मैने कराहते हुए सहारा लेने के लिये, सामने बैठी राखी के कंधे पर अपने दोनो हाथ रख दिये। वो उस पर तो कुछ नही बोली, पर अपनी नजरे उपर कर के मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोली,
"क्यों मजा आ रहा है की, नही,,,?"

"हाये राखी, मजे की तो बस पुछो मत। बहुत मजा आ रहा है।"

मैं बोला। इस पर राखी ने अपना हाथ और तेजी से चलाना शुरु कर दिया और बोली,
"साले, हरामी कहीं के !!! मैं जब नहाती हुं, तब घुर-घुर के मुझे देखता रहता है। मैं जब सो रही थी, तो मेरे चुंचे दबा रहा था, और अभी मजे से मुठ मरवा रहा है। कमीने, तेरे को शरम नही आती ?" मेरा तो होश ही उड गया। ये राखी क्या बोल रही थी। पर मैने देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाये जा रहा था। तभी राखी, मेरे चेहरे के उडे हुए रंग को देख कर हसने लगी, और हसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पड लगा दिया। मैने कभी भी इस से पहले राखी को, ना तो ऐसे बोलते सुना था, ना ही इस तरह से बर्ताव करते हुए देखा था। इसलिये मुझे बडा आश्चर्य हो रहा था।
पर उसके हसते हुए थप्पड लगाने पर तो मुझे, और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ की, आखिर ये चाहती क्या है। और मैने बोला की,
"माफ कर दो राखी, अगर कोई गलती हो गई हो तो।"

इस पर राखी ने मेरे गालों को हल्के सहलाते हुए कहा की,
"गलती तो तु कर बैठा है, बेटे। अब केवल गलती की सजा मिलेगी तुझे।"

मैने कहा,
"क्या गलती हो गई मेरे से, राखी ?"

"सबसे बडी गलती तो ये है कि, तु खाली घुर-घुर के देखता है बस, करता-धरता तो कुछ है नही। खाली घुर-घुर के कितने दिन देखता रहेगा ?'

"क्या करुं राखी ? मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा।'

"साले, बेवकूफ की औलाद, अरे करने के लिये इतना कुछ है, और तुझे समझ में ही नही आ रहा है।"

"क्या राखी, बताओ ना ?"

"देख, अभी जैसे कि तेरा मन कर रहा है की, तु मेरे अनारो से खेले, उन्हे दबाये, मगर तु वो काम ना करके केवल मुझे घुरे जा रहा है। बोल तेरा मन कर रहा है, की नही, बोलना ?"

"हाये राखी, मन तो मेरा बहुत कर रहा है।'

"तो फिर दबा ना। मैं जैसे तेरे औजार से खेल रही हुं, वैसे ही तु मेरे सामान से खेल। दबा,  दबा।"

बस फिर क्या था मेरी तो बांछे खिल गई। मैने दोनो हथेलियों में दोनो चुंचो को थाम लिया, और हल्के-हल्के उन्हे दबाने लगा।, राखी बोली,
"शाबाश,,,!!!! ऐसे ही दबा ले। जीतना दबाने का मन करे उतना दबा ले, कर ले मजे।"
फिर मैं पुरे जोश के साथ, हल्के हाथों से उसकी चुचियों को दबाने लगा। ऐसी मस्त-मस्त चुचियां पहली बार किसी ऐसे के हाथ लग जाये, जीसने पहले किसी चुंची को दबाना तो दूर, छुआ तक ना हो तो बंदा तो जन्नत में पहुंच ही जायेगा ना। मेरा भी वही हाल था, मैने हल्के हाथों से संभल-संभल के चुचियों को दबाये जा रहा था। उधर राखी के हाथ तेजी से मेरे लंड पर चल रहे थे। तभी राखी ने, जो अब तक काफी उत्तेजित हो चुकी थी, मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा,
"क्यों, मजा आ रहा है ना। जोर से दबा मेरी चुचियों को भाई, तभी पुरा मजा मिलेगा। मसलता जा,,,,देख अभी तेरा माल मैं कैसे निकालती हुं।"

मैने जोर से चुचियों को दबाना शुरु कर दिया था, मेरा मन कर रहा था की मैं राखी का ब्लाउस खोल के चुचियों को नंगा करके उनको देखते हुए दबाउं। इसलिये मैने राखी से पुछा,
"हाये राखी, तेरा ब्लाउस खोल दुं ?"

इस पर वो मुस्कुराते हुए बोली,
"नही, अभी रहने दे। मैं जानती हुं की तेरा बहुत मन कर रहा होगा की तु मेरी नंगी चुचियों को देखे। मगर, अभी रहने दे।"

मैं बोला,
"ठीक है राखी, पर मुझे लग रहा है की मेरे औजार से खुछ निकलने वाला है।"

इस पर राखी बोली,
"कोई बात नही भाई निकलने दे, तुझे मजा आ रहा है ना ?"

"हां राखी, मजा तो बहुत आ रहा है।"

"अभी क्या मजा आया है भाई,,,? अभी तो और आयेगा, अभी तेरा माल निकाल ले फिर देख, मैं तुझे कैसे जन्नत की सैर कराती हुं,,,!!"

"हाये राखी , ऐसा लगता है, जैसे मेरे में से कुछ निकलने वाला है।"

"हाय, निकल जायेगा।"

"तो निकलने दे, निकल जाने दे अपने माल को।",
कह कर राखी  ने अपना हाथ और ज्यादा तेजी के साथ चलाना शुरु कर दिया।
मेरा पानी अब बस निकलने वाला ही था। मैने भी अपना हाथ अब तेजी के साथ राखी  के अनारो पर चलाना शुरु कर दिया था। मेरा दिल कर रह था उन प्यारी-प्यारी चुचियों को अपने मुंह में भर के चुसुं। लेकिन वो अभी संभव नही था। मुझे केवल चुचियों को दबा-दबा के ही संतोष करना था। ऐसा लग रहा था, जैसे कि मैं अभी सातवें आसमान पर उड रहा था। मैं भी खूब जोर-जोर सिसयाते हुए बोलने लगा,
"ओह राखी , हां राखी , और जोर से मसलो, और जोर से मुठ मारो, निकाल दो मेरा सारा पानी।"

पर तभी मुझे ऐसा लगा, जैसे कि राखी  ने लंड पर अपनी पकड ढीली कर दी है। लंड को छोड कर, मेरे अंडो को अपने हाथ से पकड के सहलाते हुए राखी  बोली,
"अब तुझे एक नया मजा चखाती हुं, ठहर जा।"

और फिर धीरे-धीरे मेरे लंड पर झुकने लगी। लंड को एक हाथ से पकडे हुए, वो पुरी तरह से मेरे लंड पर झुक गई, और अपने होंठो को खोल कर, मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया। मेरे मुंह से एक आह निकल गई। मुझे विश्वास नही हो रहा था की वो ये क्या कर रही है। मैं बोला,
"ओह राखी , ये क्या कर रही हो ? हाय छोडना, बहुत गुद-गुदी हो रही है।"

मगर वो बोली,
"तो फिर मजे ले इस गुद-गुदी के। करने दे, तुझे अच्छा लगेगा।"

"हाये राखी , क्या इसको मुंह में भी लिया जाता,,,,,,,,?"

"हां, मुंह में भी लिया जाता है, और दुसरी जगहो पर भी। अभी तु मुंह में डालने का मजा लुट।",
कह कर तेजी के साथ मेरे लंड को चुसने लगी। री तो कुछ समझ में नही आ रहा था। गुद-गुदी और सनसनी के कारण मैं मजे के सातवें आसमान पर झुल रहा था। राखी ने पहले मेरे लंड के सुपाडे को अपने मुंह में भरा और धीरे-धीरे चुसने लगी, और मेरी ओर बडे सेक्षी अंदाज में अपनी नजरों को उठा के बोली,
"कैसा लाल-लाल सुपाडा है रे, तेरा ?! एकदम पहाडी आलु के जैसा। लगता है अभी फट जायेगा। इतना लाल-लाल सुपाडा कुंवारे लडको का ही होता है।"

फिर वो और कस-कस के मेरे सुपाडे को अपने होंठो में भर-भर के चुसने लगी। नदी के किनारे, पेड की छांव में, मुझे ऐसा मजा मिल रहा था, जीसकी मैने आज-तक कल्पना तक नही की थी। राखी , अब मेरे आधे-से अधिक लौडे को अपने मुंह में भर चुकी थी, और अपने होंठो को कस के मेरे लंड के चारो तरफ से दबाये हुए, धीरे-धीरे उपर सुपाडे तक लाती थी। फिर उसी तरह से सरकते हुए नीचे की तरफ ले जाती थी। उसको शायद इस बात का अच्छी तरह से एहसास था की, ये मेरा किसी औरत के साथ पहला संबंध है, और मैने आज तक किसी औरत के हाथो का स्पर्श अपने लंड पर नही महसुस किया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, वो मेरे लंड को बीच-बीच में ढीला भी छोड देती थी, और मेरे अंडो को दबाने लगती थी। वो इस बात का पुरा ध्यान रखे हुए थी की, मैं जल्दी ना झडुं। मुझे भी गजब का मजा आ रहा था, और ऐसा लग रहा था, जैसे कि मेरा लंड फट जायेगा। मगर मुझसे अब रहा नही जा रहा था। मैने राखी  से कहा,
"हाये राखी अब निकल जायेगा। राखी , मेरा माल अब लगता है, नही रुकेगा।"

उसने मेरी बातों की ओर कोई ध्यान नही दिया, और अपनी चुसाई जारी रखी। मैने कहा,
"राखी तेरे मुंह में ही निकल जायेगा। जल्दी से अपना मुंह हटा लो।"

इस पर राखी  ने अपना मुंह थोडी देर के लिये हटाते हुए कहा की,
"कोई बात नही, मेरे मुंह में ही निकाल। मैं देखना चाहती हुं की कुंवारे लडके के पानी का स्वाद कैसा होता है।"

और फिर अपने मुंह में मेरे लंड को कस के जकडते हुए, उसने अब अपना पुरा ध्यान केवल, मेरे सुपाडे पर लगा दिया, और मेरे सुपाडे को कस-कस के चुसने लगी, उसकी जीभ मेरे सुपाडे के कटाव पर बार-बार फिरा रही थी। मैं सिसयाते हुए बोलने लगा,
"ओह राखी , पी जाओ तो फिर। चख लो मेरे लंड का सारा पानी। ले लो अपने मुंह में। ओह, ले लो, कितना मजा आ रहा है। हाय, मुझे नही पता था की इतना मजा आता है। हाये निकल गया,,,,, निकल गया, हाये राखी निकलाआआ,,,,,,!!!"तभी मेरे लंड का फौवारा छुट पडा, और तेजी के साथ भलभला कर मेरे लंड से पानी गीरने लगा। मेरे लंड का सारा का सारा पानी, सीधे राखी  के मुंह में गीरता जा रहा था। और वो मजे से मेरे लंड को चुसे जा रही थी। कुछ देर तक लगातार वो मेरे लंड को चुसती रही। मेरा लौडा अब पुरी तरह से उसके थुक से भीग कर गीला हो गया था, और धीरे-धीरे सीकुड रहा था। पर उसने अब भी मेरे लंड को अपने मुंह से नही निकाला था और धीरे-धीरे मेरे सीक&##2369;डे हुए लंड को अपने मुंह में किसी चोकलेट की तरह घुमा रही थी। कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद, जब मेरी सांसे भी कुछ शांत हो गई, तब राखी  ने अपना चेहरा मेरे लंड पर से उठा लिया और अपने मुंह में जमा, मेरे विर्य को अपना मुंह खोल कर दिखाया और हल्के से हस दी। फिर उसने मेरे सारे पानी को गटक लिया और अपनी साडी के पल्लु से अपने होंठो को पोंछती हुई बोली,आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। "हाये, मजा आ गया। सच में कुंवारे लंड का पानी बडा मिठा होता है। मुझे नही पता था की, तेरा पानी इतना मजेदार होगा ?!!"

फिर मेरे से पुछा,
"मजा आया की नही ?"

मैं क्या जवाब देता। जोश ठंडा हो जाने के बाद, मैने अपने सिर को नीचे झुका लिया था, पर गुद-गुदी और सनसनी तो अब भी कायम थी। तभी राखी  ने मेरे लटके हुए लौडे को अपने हाथों में पकडा और धीरे से अपनी साडी के पल्लु से पोंछते हुए पुछा,
"बोलना, मजा आया की नहि ?" मैने शरमाते हुए जवाब दिया,
"हाय राखी , बहुत मजा आया। इतना मजा कभी नही आया था।"

तब राखी  ने पुछा,
"क्यों, अपने हाथ से भी करता था, क्या ?"

"कभी कभी मांराखी , पर उतना मजा नही आता था जीतना आज आया है।"
"औरत के हाथ से करवाने पर तो ज्यादा मजा अयेगा ही, पर इस बात का ध्यान रखियो की, किसी को पता ना चले।"

"हां राखी , किसी को पता नही चलगा।"

"हां, मैं वही कह रही हुं की, किसी को अगर पता चलेगा तो लोग क्या, क्या सोचेन्गे और हमारी-तुम्हारी बदनामी हो जायेगी। क्योंकि हमारे समाज में एक बहिन   और  भाई के बीच इस तरह का संबंध उचित नही माना जाता है, समझा ?"

मैने भी अब अपनी शर्म के बंधन को छोड कर जवाब दिया,
"हां बहिन , मैं समझता हुं। हम दोनो ने जो कुछ भी किया है, उसका मैं किसी को पता नही चलने दुन्गा।"

तब बहिन  उठ कर खडी हो गई। अपनी साडी के पल्लु को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउस को ठीक किया और मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए, अपनी बुर को अपनी साडी से हल्के-से दबाया और साडी को चुत के उपर ऐसे रगडा जैसे की पानी पोंछ रही हो। मैं उसकी इस क्रिया को बडे गौर से देख रहा था। मेरे ध्यान से देखने पर वो हसते हुए बोली,
"मैं जरा पेशाब कर के आती हुं। तुझे भी अगर करना है तो चल, अब तो कोई शरम नही है।"

मैने हल्के-से शरमाते हुए, मुस्कुरा दिया तो बोली,
"क्यों, अब भी शरमा रहा है, क्या ?"मैने इस पर कुछ नही कहा, और चुप-चाप उठ कर खडा हो गया। वो आगे चल दी और मैं उसके पिछे-पिछे चल दिया। झाडियों तक की दस कदम की ये दुरी, मैने बहिन  के पिछे-पिछे चलते हुए उसके गोल-मटोल गदराये हुए चुतडों पर नजरे गडाये हुए तय की। उसके चलने का अंदाज इतना मदहोश कर देने वाला था। आज मेरे देखने का अंदाज भी बदला हुआ था। शायद इसलिये मुझे उसके चलने का अंदाज गजब का लग रहा था। चलते वक्त उसके दोनो चुतड बडे नशिले अंदाज में हिल रहे थे, और उसकी साडी उसके दोनो चुतडों के बीच में फंस गई थी, जिसको उसने अपने हाथ पिछे ले जा कर निकाला। जब हम झाडियों के पास पहुंच गये तो बहिन  ने एक बार पिछे मुड कर मेरी ओर देखा और मुस्कुराई। फिर झाडियों के पिछे पहुंच कर बिना कुछ बोले, अपनी साडी उठा के पेशाब करने बैठ गई। उसकी दोनो गोरी-गोरी जांघे उपर तक नंगी हो चुकी थी, और उसने शायद अपनी साडी को थोडा जान-बुझ कर पिछे से उपर उठा दिया था। जीस के कारण, उसके दोनो चुतड भी नुमाया हो रहे थे। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। ये सीन देख कर मेरा लंड फिर से फुफकारने लगा। उसके गोरे-गोरे चुतड बडे कमाल के लग रहे थे। बहिन  ने अपने चुतडों को थोडा-सा उंचकाया हुआ था, जीस के कारण उसकी गांड की खाई भी दिख रही थी। हल्के-भुरे रंग की गांड की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा के उस गांड की खाई में धीरे-धीरे उन्गली चलाउं और गांड के भुरे रंग के छेद को अपनी उन्गली से छेडु और देखु की कैसे पक-पकाता है। तभी बहिन  पेशाब कर के उठ खडी हुई और मेरी तरफ घुम गई। उसने अभी तक साडी को अपनी झांघो तक उठा रखा था। मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए, उसने अपनी साडी को छोड दिया और नीचे गीरने दिया। फिर एक हाथ को अपनी चुत पर साडी के उपर से ले जा के रगडने लगी, जैसे कि पेशाब पोंछ रही हो, और बोली,
"चल, तु भी पेशाब कर ले, खडा-खडा मुंह क्या ताक रहा है ?"

मैं जो की अभी तक इस सुंदर नजारे में खोया हुआ था, थोडा-सा चौंक गया।फिर हकलाते हुए बोला,
"हां, हां, अभी करता हुं,,,,,, मैने सोचा पहले तुम कर लो इसलिये रुका था।" फिर मैने अपने पजामे के नाडे को खोला, और सीधे खडे-खडे ही मुतने की कोशिश करने लगा। मेरा लंड तो फिर से खडा हो चुका था, और खडे लंड से पेशाब ही नही निकल रहा था। मैने अपनी गांड तक का जोर लगा दिया, पेशाब करने के चक्कर में।बहिन  वहीं बगल में खडी हो कर मुझे देखे जा रही थी। मेरे खडे लंड को देख कर, वो हसते हुए बोली,
"चल जल्दी से कर ले पेशाब, देर हो रही है। घर भी जाना है।"

मैं क्या बोलता। पेशाब तो निकल नही रहा था। तभी बहिन ने आगे बढ कर मेरे लंड को अपने हाथों में पकड लिया और बोली,
"फिर से खडा कर लिया, अब पेशाब कैसे उतरेगा ?",
कह कर लंड को हल्के-हल्के सहलाने लगी।

अब तो लंड और टाईट हो गया, पर मेरे जोर लगाने पर पेशाब की एक-आध बुंद नीचे गीर गई। मैने बहिन  से कहा,
"अरे, तुम छोडोना इसको, तुम्हारे पकडने से तो ये और खडा हो जायेगा। हाये छोडो,,,,!"

और बहिन   का हाथ अपने लंड पर से झटकने की कोशिश करने लगा। इस पर राखी  ने हसते हुए कहा,
"मैं तो छोड देती हुं, पर पहले ये तो बता कि खडा क्यों किया था ? अभी दो मिनट पहले ही तो तेरा पानी निकाला था मैने, और तुने फिर से खडा कर लिया। कमाल का लडका है, तु तो।"

मैं खुछ नही बोला अब लंड थोडा ढीला पड गया था, और मैने पेशाब कर लिया। मुतने के बाद जल्दी से पजामे के नाडे को बांध कर, मैं राखी के साथ झाडियों के पिछे से निकल आया। राखी के चेहरे पर अब भी मंद-मंद मुस्कान आ रही थी। मैं जल्दी-जल्दी चलते हुए आगे बढा और कपडे के गठर को उठा कर, अपने माथे पर रख लिया। राखी ने भी एक गठर को उठा लिया और अब हम दोनो   भाई- बहिन  जल्दी-जल्दी गांव के पगदंडी वाले रास्ते पर चलने लगे। गरमी के दिन थे, अभी भी सुरज चमक रहा था। थोडी दूर चलने के बाद ही मेरे माथे से पसिना छलकने लगा। मैं जान-बुझ कर राखी के पिछे-पिछे चल रह था, ताकि राखी के मटकते हुए चुतडों का आनंद लुट सकुं, और मटकते हुए चुतडों के पिछे चलने का एक अपना ही आनंद है। आप सोचते रहते हो कि, ये, कैसे दिखते होंगे, ये चुतड बिना कपडों के, या फिर आपका दिल करता है कि, आप चुपके से पिछे से जाओ और उन चुतडों को अपनी हथेलियों में दबा लो और हल्के मसलो और सहलाओ। फिर हल्के-से उन चुतडों के बीच की खाई, यानीकि गांड के गढ्ढे पर अपना लंड सीधा खडा कर के सटा दो, और हल्के-से रगडते हुए प्यारी-सी गरदन पर चुम्मियां लो। ये सोच आपको इतना उत्तेजित कर देती है, जितना शायद अगर आपको सही में चुतड मिले भी अगर मसलने और सहलाने को तो शायद उतना उत्तेजित ना कर पये।
चलो बहुत बकवास हो गई। आगे की कहानी लिखते है। तो मैं अपना लंड पजामे में खडा किये हुए, अपनी लालची नजरों को राखी के चुतडों पर टिकाये हुए चल रह था। राखी ने मुठ मार कर मेरा पानी तो निकाल ही दिया था, इस कारण अब उतनी बेचैनी नही थी, बल्कि एक मिठी-मिठी-सी कसक उठ रही थी, और दिमाग बस एक ही जगह पर अटका पडा था। तभी राखी पिछे मुड कर देखते हुए बोली,
"क्यों रे, पिछे-पिछे क्यों चल रहा है ? हर रोज तो तु घोडे की तरह आगे-आगे भगता फिरता रहता था ?"

मैने शरमिन्दगी में अपने सिर को नीचे झुका लिया, हालांकि अब शर्म आने जैसी कोई बात तो थी नही। सब-कुछ खुल्लम-खुल्ला हो चुका था, मगर फिर भी मेरे दिल में अब भी थोडी बहुत हिचक तो बाकी थी ही। राखी ने फिर कुरेदते हुए पुछा,
"क्यों, क्या बात है, थक गया है क्या ?"

मैने कहा,
"नही राखी, ऐसी कोई बात तो है नही। बस ऐसे ही पिछे चल रह हुं।"

तभी राखी ने अपनी चाल धीमी कर दी, और अब वो मेरे साथ-साथ चल रही थी। मेरी ओर अपनी तिरछी नजरों से देखते हुए बोली,
"मैं भी अब तेरे को थोडा बहुत समझ्ने लगी हुं। तु कहां अपनी नजरें गडाये हुए है, ये मेरी समझ में आ रह है। पर अब साथ-साथ चल, मेरे पिछे-पिछे मत चल। क्योंकि गांव नजदीक आ गया है। कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा ?",
कह कर मुस्कुरने लगी।

मैने भी समझदार बच्चे की तरह अपना सिर हिला दिया और साथ-साथ चलने लगा। राखी धीरे-से फुसफुसाते हुए बोलने लगी,
"घर चल, तेरा जीजा  तो आज घर पर है नही। फिर आराम से जो भी देखना है, देखते रहना।"

मैने हल्के-से विरोध किया,
"क्या राखी, मैं कहां कुछ देख रहा था ? तुम तो ऐसे ही बस, तभी से मेरे पिछे पडी हो।"

इस पर राखी बोली,
"लल्लु, मैं पिछे पडी हुं, या तु पिछे पडा है ? इसका फैसला तो घर चल के कर लेना।"

फिर सिर पर रखे कपडों के गठर को एक हाथ उठा कर सीधा किया तो उसकी कांख दिखने लगी। ब्लाउस उसने आधी-बांह का पहन रखा था। गरमी के कारण उसकी कांख में पसिना आ गया था, और पसिने से भीगी उसकी कांखे देखने में बडी मदमस्त लग रही थी। मेरा मन उन कांखो को चुम लेने का करने लगा था। एक हाथ को उपर रखने से उसकी साडी भी उसकी चुचियों पर से थोडी-सी हट गई थी और थोडा बहुत उसका गोरा-गोरा पेट भी दिख रहा था। इसलिये चलने की ये स्थिति भी मेरे लिये बहुत अच्छी थी और मैं आराम से वासना में डुबा हुआ अपनी बहिन  के साथ चलने लगा। शाम होते-होते हम अपने घर पहुंच चुके थे। कपडों के गठर को ईस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद, हमने हाथ-मुंह धोये और फिर बहिन  ने कहा कि  भाई चल कुछ खा-पी ले। भूख तो वैसे मुझे कुछ खास लगी नही थी (दिमाग में जब सेक्ष का भूत सवार हो तो, भूख तो वैसे भी मर जाती है), पर फिर भी मैने अपना सिर सहमती में हिला दिया। राखी ने अब तक अपने कपडों को बदल लिया था, मैने भी अपने पजामे को खोल कर उसकी जगह पर लुंगी पहन ली। क्योंकि गरमी के दिनो में लुंगी ज्यादा आरामदायक होती है। राखी रसोई घर में चली गई, और मैं कोयले कि अंगिठी को जलाने के लिये, ईस्त्री करने वाले कमरे में चला, गया ताकि ईस्त्री का काम भी कर सकु। अंगिठी जला कर मैं रसोई में घुसा तो देख राखी वहीं, एक मोढे पर बैठ कर ताजी रोटियां सेक रही थी। मुझे देखते ही बोली,
"जल्दी से आ, दो रोटी खा ले। फिर रात का खाना भी बना दुन्गी।"

मैं जल्दी से वहीं मोढे (वुडन प्लेन्क) पर बैठ गया। सामने राखी ने थोडी सी सब्जी और दो रोटियां दे दी। मैं चुप-चाप खाने लगा। राखी ने भी अपने लिये थोडी सी सब्जी और रोटी निकाल ली और खाने लगी। रसोई घर में गरमी काफि थी। इस कारण उसके माथे पर पसिने कि बुंदे चुहचुहाने लगी। मैं भी पसिने से नहा गया था। राखी ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा,
"बहुत गरमी है।"

मैने कहा, "हां।"
और अपने पैरों को उठा के, अपनी लुंगी को उठा के, पुरा जांघो के बीच में कर लिया। राखी मेरे इस हरकत पर मुस्कुराने लगी पर बोली कुछ नही। वो चुंकि घुटने मोड कर बैठी थी, इसलिये उसने पेटिकोट को उठा कर, घुटनो तक कर दिया और आराम से खाने लगी। उसकी गोरी पिन्डलियों और घुटनो का नजारा करते हुए, मैं भी खाना खाने लगा। लंड की तो ये हालत थी अभी की, राखी  को देख लेने भर से उसमे सुरसुरी होने लगती थी। यहां राखी मस्ती में दोनो पैर फैला कर घुटनो से थोडा उपर तक साडी उठा कर, दिखा रही थी। मैने राखी से कहा
"एक रोटी और दे।"

"नही, अब और नही। फिर रात में भी खाना तो खाना है, ना। अच्छी सब्जी बना देती हुं, अभी हल्का खा ले।"

"क्या राखी, तुम तो पुरा खाने भी नही देती। अभी खा लुन्गा तो, क्या हो जायेगा ?"

"जब, जिस चीज का टाईम हो, तभी वो करना चाहिए। अभी तु हल्क-फुल्का खा ले, रात में पुरा खाना।"

मैं इस पर बडबडाते हुए बोला,
"सुबह से तो खाली हल्का-फुल्का ही खाये जा रहा हुं। पुरा खाना तो पता नही, कब खाने को मिलेगा ?"

ये बात बोलते हुए मेरी नजरें, उसकी दोनो जांघो के बीच में गडी हुई थी। हम दोनो बहन  भाई को, शायद द्विअर्थी बातें करने में महारत हांसिल हो गई थी। हर बात में दो-दो अर्थ निकल आते थे। राखी भी इसको अच्छी तरह से समझती थी इसलिये मुस्कुराते हुए बोली,
"एकबार में पुरा पेट भर के खा लेगा, तो फिर चला भी न जायेगा। आराम से धीरे-धीरे खा।"

मैं इस पर गहरी सांस लेते हुए बोला,
"हां, अब तो इसी आशा में रात का इन्तेजार करुन्गा कि शायद, तब पेट भर खाने को मिल जाये।"

राखी मेरी तडप का मजा लेते हुए बोली,
"उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। जब इतनी देर तक इन्तेजार किया तो, थोडा और कर ले। आराम से खाना, अपने  जीजा की तरह जल्दी क्यों करता है ?"

मैं ने तब तक खाना खतम कर लिया था, और उठ कर लुंगी में हाथ पोंछ कर, रसोई से बाहर निकाल गया। राखी ने भी खाना खतम कर लिया था। मैं ईस्त्री वाले कमरे आ गया, और देखा कि अंगीठी पुरी लाल हो चुकी है। मैं ईस्त्री गरम करने को डाल दी और अपनी लुंगी को मोड कर, घुटनो के उपर तक कर लिया। बनियान भी मैने उतार दी, और ईस्त्री करने के काम में लग गया। हालांकि, मेरा मन अभी भी रसोई-घर में ही अटका पर था, और जी कर रह था मैं  राखी के आस पास ही मंडराता रहुं। मगर, क्या कर सकता था काम तो करना ही था। थोडी देर तक रसोई-घर में खट-पट की आवाजे आती रही। मेरा ध्यान अभी भी रसोई-घर की तरफ ही था। पूरे वातावरण में ऐसा लगता था कि एक अजीब सी खुश्बु समाई हुई है। आंखो के आगे बार-बार, वही राखी की चुचियों को मसलने वाला द्रश्य तैर रहा था। हाथों में अभी भी उसका अहसास बाकि था। हाथ तो मेरे कपडों को ईस्त्री कर रहे थे, परंतु दिमाग में दिनभर की घटनाये घुम रही थी। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। मेरा मन तो काम करने में नही लग रह था, पर क्या करता। तभी  राखी के कदमो की आहट सुनाई दी। मैने मुड कर देखा तो पाया की,  राखी मेरे पास ही आ रही थी। उसके हाथ में हांसिया (सब्जी काटने के लिये गांव में इस्तेमाल होने वाली चीज) और सब्जी का टोकरा था। मैने  राखी की ओर देखा, वो मेरी ओर देख के मुस्कुराते हुए वहीं पर बैठ गई। फिर उसने पुछा,
"कौन-सी सब्जी खायेगा ?"

मैने कहा,
"जो सब्जी तुम बना दोगी, वही खा लुन्गा।"

इस पर  राखी ने फिर जोर दे के पुछा,
"अरे बता तो, आज सारी चीज तेरी पसंद की बनाती हुं। तेरा  जीजा तो आज है नही, तेरी ही पसंद का तो ख्याल रखना है।"

तब मैने कहा,
"जब जीजा नही है तो, फिर आज केले या बैगन की सब्जी बना ले। हम दोनो वही खा लेन्गे। तुझे भी तो पसंद है, इसकी सब्जी।"

राखी    ने मुस्कुराते हुए कहा,
"चल ठीक है, वही बना देती हुं।"

और वहीं बैठ के सब्जीयां काटने लगी। सब्जी काटने के लिये, जब वो बैठी थी, तब उसने अपना एक पैर मोड कर, जमीन पर रख दिया था और दुसरा पैर मोड कर, अपनी छाती से टीका रखा था। और गरदन झुकाये सब्जीयां काट रही थी। उसके इस तरह से बैठने के कारण उसकी एक चुंची, जो की उसके एक घुटने से दब रही थी, ब्लाउस के बाहर निकलने लगी और उपर से झांखने लगी। गोरी-गोरी चुंची और उस पर की नीली-नीली रेखायें, सब नुमाया हो रहा था । मेरी नजर तो वहीं पर जा के ठहर गई थी। राखी    ने मुझे देखा, हम दोनो की नजरें आपस में मिली, और मैने झेंप कर अपनी नजर नीचे कर ली और ईस्त्री करने लगा। इस पर राखी ने हसते हुए कहा,
"चोरी-चोरी देखने की आदत गई नही। दिन में इतना सब-कुछ हो गया, अब भी,,,,,,,,,,,???" मैने कुछ नही कहा और अपने काम में लगा रह। तभी राखी ने सब्जी काटना बंध कर दिया, और उठ कर खडी हो गई और बोली,
"खाना बना देती हुं, तु तब तक छत पर बिछावन लगा दे। बडी गरमी है आज तो, ईस्त्री छोड कल सुबह उठ के कर लेना।"

मैने ने कहा,
"बस थोडा-सा और करदुं, फिर बाकी तो कल ही करुन्गा।"

मैं ईस्त्री करने में लग गया और, रसोई घर से फिर खट-पट की आवाजें आने लगी। यानी की राखी ने खाना बनाना शुरु कर दिया था। मैने जल्दी-से कुछ कपडों को ईस्त्री की, फिर अंगीठी बुझाई और अपने तौलिये से पसिना पोंछता हुआ बाहर निकाल आया। हेन्डपम्प के ठंडे पानी से अपने मुंह-हाथो को धोने के बाद, मैने बिछावन लिया और छत पर चल गया। और दिन तो तीन लोगो का बिछावन लगता था, पर आज तो दो का ही लगाना था। मैने वहीं जमीन पर पहले चटाई बिछाई, और फिर दो लोगो के लिये बिछावन लगा कर निचे आ गया। राखी, अभी भी रसोई में ही थी। मैं भी रसोई-घर में घुस गया। राखी ने साडी उतार दी थी, और अब वो केवल पेटिकोट और ब्लाउस में ही खाना बना रही थी। उसने अपने कंधे पर एक छोटा-सा तौलिया रख लिया था और उसी से अपने माथे का पसिना पोंछ रही थी। मैं जब वहां पहुंचा, तो राखी सब्जी को कलछी से चला रही थी और दुसरी तरफ रोटियां भी सेक रही थी।

मैने कहा,
"कौन-सी सब्जी बना रही हो, केले या बैगन की ?"

राखी ने कहा,
"खुद ही देख ले, कौन-सी है ?"

"खूश्बु तो बडी अच्छी आ रही है। ओह, लगता है दो-दो सब्जी बनी है।"

"खा के बताना, कैसी बनी है ?"

"ठीक है राखी, बता और कुछ तो नही करना ?"
कहते-कहते मैं एकदम राखी के पास आ के बैठ गया था। राखी मोढे पर अपने पैरों को मोड के और अपने पेटिकोट को जांघो के बीच समेट कर बैठी थी। उसके बदन से पसिने की अजीब-सी खूश्बु आ रही थी। मेरा पुरा ध्यान उसकी जांघो पर ही चला गया था। राखी ने मेरी ओर देखते हुए कहा,
"जरा खीरा काट के सलाड भी बना ले।"

"वाह राखी, आज तो लगता है, तु सारी ठंडी चीजे ही खायेगी ?"

"हां, आज सारी गरमी उतार दुन्गी, मैं।"

"ठीक है राखी, जल्दी-से खाना खा के छत पर चलते है, बडी अच्छी हवा चल रही है।"

राखी ने जल्दी-से थाली निकली, सब्जीवाले चुल्हे को बंध कर दिया। अब बस एक-या दो रोटियां ही बची थी, उसने जल्दी-जल्दी हाथ चलाना शुरु कर दिया। मैने भी खीरा और टमाटर काट के सलाड बना लिया। राखी ने रोटी बनाना खतम कर के कहा,
"चल, खाना निकाल देती हुं। बाहर आंगन में मोढे पर बैठ के खायेन्गे। "
मैने दोनो परोसी हुई थालीयां उठाई, और आंगन में आ गया । राखी वहीं आंगन में, एक कोने पर अपना हाथ-मुंह धोने लगी। फिर अपने छोटे तौलिये से पोंछते हुए, मेरे सामने रखे मोढे पर आ के बैठ गई। हम दोनो ने खाना सुरु कर दिया। मेरी नजरें राखी को उपर से नीचे तक घुर रही थी।राखी ने फिर से अपने पेटिकोट को अपने घुटनो के बीच में समेट लिया था और इस बार शायद पेटिकोट कुछ ज्यादा ही उपर उठा दिया था। चुचियां, एकदम मेरे सामने तन के खडी-खडी दिख रही थी। बिना ब्रा के भी राखी की चुचियां ऐसी तनी रहती थी, जैसे की दोनो तरफ दो नारियल लगा दिये गये हो। इतनी उमर बीत जाने के बाद भी थोडा-सा भी ढलकाव नही था। जांघे, बिना किसी रोयें के, एकदम चिकनी, गोरी और मांसल थी। पेट पर उमर के साथ थोडा-सा मोटापा आ गया था। जिसके कारण पेट में एक-दो फोल्ड पडने लगे थे, जो देखने में और ज्यादा सुंदर लगते थे। आज पेटिकोट भी नाभी के नीचे बांधा गया था। इस कारण से उसकी गहरी गोल नाभी भी नजार आ रही थी। थोडी देर बैठने के बाद ही राखी को पसिना आने लगा, और उसकी गरदन से पसिना लुढक कर उसके ब्लाउस के बीचवाली घाटी में उतरता जा रह था। वहां से, वो पसिना लुढक कर उसके पेट पर भी एक लकीर बना रहा था, और धीरे-धीरे उसकी गहरी नाभी में जमा हो रहा था। मैं इन सब चीजो को बडे गौर से देख रहा था। राखी ने जब मुझे ऐसे घुरते हुए देखा तो हसते हुए बोली,
"चुप-चाप ध्यान लगा के खाना खा, समझा !!!!"

और फिर अपने छोटेवाले तौलिये से अपना पसिना पोंछने लगी। मैं खाना खाने लगा और बोला,
"राखी, सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी है।"

"चल तुझे पसंद आयी, यही बहुत बडी बात है मेरे लिये। नही तो आज-कल के लडको को घर का कुछ भी पसंद ही नही आता।"

"नही राखी ऐसी बात नही है। मुझे तो घर का 'माल' ही पसंद है।"
ये, माल शब्द मैने बडे धीमे स्वर में कहा था कि, कहीं राखी ना सुन ले। राखी को लगा की शायद मैने बोला है, घर की दाल। इसलिये वो बोली,
"मैं जानती हुं, मेरा भाई बहुत समझदार है, और वो घर के दाल-चावल से काम चला सकता है। उसको बाहर के 'मालपुए' (एक प्रकार की खानेवाली चीज, जोकि मैदे और चीनी की सहायता से बनाई जाती है, और फुली हुए पांव की तरह से दिखती है।) से कोई मतलब नही है।"

राखी ने मालपुआ शब्द पर शायद ज्यादा ही जोर दिया था, और मैने इस शब्द को पकड लिया। मैने कहा,
"पर राखी, तुझे मालपुआ बनाये काफि दिन हो गये। कल मालपुआ बना, ना ?"

"मालपुआ तुझे बहुत अच्छा लगता है, मुझे पता है। मगर इधर इतना टाईम कहां मिलता था, जो मालपुआ बना सकु ? पर अब मुझे लगता है, तुझे मालपुआ खिलाना ही पडेगा।"

मैने ने कहा,
"जल्दी खिलाना, राखी।"
और हाथ धोने के लिये उठ गया।

राखी भी हाथ धोने के लिये उठ गई। हाथ-मुंहा धोने के बाद, राखी फिर रसोई में चली गई, और बिखरे पडे सामानो को संभालने लगी। मैने कहा,
"छोडोना राखी, चलो सोने जल्दी से। यहां बहुत गरमी लग रही है।"

"तु जा ना, मैं अभी आती। रसोई-घर गंदा छोडना अच्छी बात नही है।"

मुझे तो जल्दी से राखी के साथ सोने की हडबडी थी कि, कैसे राखी से चिपक के उसके मांसल बदन का रस ले सकु। पर राखी रसोई साफ करने में जुटी हुई थी। मैने भी रसोई का सामान संभालने में उसकी मदद करनी शुरु कर दी। कुछ ही देर में सारा सामान, जब ठीक-ठाक हो गया तो हम दोनो रसोई से बाहर आ गये। राखी ने कहा,
"जा, दरवाजा बंध कर दे।"

मैं दौड कर गया और दरवाजा बंध कर आया। अभी ज्यादा देर तो नही हुई थी, रात क&#237#2375; ९:३० ही बजे थे। पर गांव में तो ऐसे भी लोग जल्दी ही सो जाया करते है। हम दोनो  बहिन -भाई   छत पर आके बिछावन पर लेट गये। बिछावन पर राखी भी, मेरे पास ही आ के लेट गई थी। राखी के इतने पास लेटने भर से मेरे शरीर में, एक गुद-गुदी सी दौड गई। उसके बदन से उठनेवाली खूश्बु, मेरी सांसो में भरने लगी, और मैं बेकाबु होने लगा था। मेरा लंड धीरे-धीरे अपना सिर उठाने लगा था। तभी राखी मेरी ओर करवट ले के घुमी और पुछा,
"बहुत थक गये होना ?"

"हां राखी, जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज्यादा हो ही जाती है।"

"हां, बडी थकावट लग रही है, जैसे पुरा बदन टूट रह हो।"

"मैं दबा दुं, थोडी थकान दूर हो जायेगी।"

"नही रे, रहने दे तु, तु भी तो थक गया होगा।""नही राखी उतना तो नही थका, कि तेरी सेवा ना कर सकु।"

राखी के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई, और वो हसते हुए बोली,
"दिन में इतना कुछ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ गई होगी।"

"हाये, दिन में थकान बढने वाला तो कुछ नही हुआ था।"

इस पर राखी थोडा-सा और मेरे पास सरक कर आई। राखी के सरकने पर मैं भी थोडा-सा उसकी ओर सरका। हम दोनो की सांसे, अब आपस में टकराने लगी थी। राखी ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जांघो को सहलाने लगी। राखी की इस हरकत पर मेरे दिल की धडकन बढ गई, और लंड अब फुफकारने लगा था। राखी ने हल्के-से मेरी जांघो को दबाया। मैने हिम्मत कर के हल्के-से अपने कांपते हुए हाथो को बढा के राखी की कमर पर रख दिया। राखी कुछ नही बोली, बस हल्का-सा मुस्कुरा भर दी। मेरी हिम्मत बढ गई और मैं अपने हाथो से राखी की नंगी कमर को सहलाने लगा। राखी ने केवल पेटिकोट और ब्लाउस पहन रखा था। उसके ब्लाउस के उपर के दो बटन खुले हुए थे। इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नजर आ रही थी और मन कर रह था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकड लुं। पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था। राखी ने जब मुझे चुचियों को घुरते हुए देखा तो मुस्कुरातेहाये, राखी तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहां घुर रह था ?"

"चल झुठे, मुझे क्या पता नही चलता ? रात में भी वही करेगा, क्या ?"

"क्या राखी ?"

"वही, जब मैं सो जाउन्गी तो अपना भी मसलेगा, और मेरी छातियों को भी दबायेगा।"

"हाय राखी।"

"तुझे देख के तो यही लग रहा है कि, तु फिर से वही हरकत करने वाला है।"

"नही, राखी।"

मेरे हाथ अब राखी कि जांघो को सहला रहे थे।

"वैसे दिन में मजा आया था ?",
पुछ कर, राखी ने हल्के-से अपने हाथो को मेरी लुन्गी के उपर लंड पर रख दिया। मैने कहा,
"हाये राखी, बहुत अच्छा लगा था।"

"फिर करने का मन कर रह है, क्या ?"

"हाये, राखी।"

इस पर राखी ने अपने हाथो का दबाव जरा-सा, मेरे लंड पर बढा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी। राखी के हाथो का स्पर्श पा के, मेरी तो हालत खराब होने लगी थी। ऐसा लगा रह था कि, अभी के अभी पानी निकल जायेगा। तभी राखी बोली,
"जो काम, तु मेरे सोने के बाद करने वाला है, वो काम अभी कर ले। चोरी-चोरी करने से तो अच्छा है कि, तु मेरे सामने ही कर ले।"

मैं कुछ नही बोला और अपने कांपते हाथो को, हल्के-से राखी की चुचियों पर रख दिया। राखी ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकड कर, अपनी छातियों पर कस के दबाया और मेरी लुन्गी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकड लिया। मैने भी अपने हाथो का दबाव उसकी चुचियों पर बढा दिया। हुए बोली,
"क्या इरादा है तेरा ? शाम से ही घुरे जा रह है, खा जायेगा क्या ?" मेरे अंदर की आग एकदम भडक उठी थी, और अब तो ऐसा लगा रह था कि, जैसे इन चुचियों को मुंह में ले कर चुस लुं। मैने हल्के-से अपनी गरदन को और आगे की ओर बढाया और अपने होठों को ठीक चुचियों के पास ले गया । आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। राखी शायद मेरे इरादे को समझ गई थी। उसने मेरे सिर के पिछे हाथ डाला और अपनी चुचियों को मेरे चेहरे से सटा दिया। हम दोनो अब एक-दुसरे की तेज चलती हुई सांसो को महसुस कर रहे थे। मैने अपने होठों से ब्लाउस के उपर से ही, राखी की चुचियों को अपने मुंह में भर लिया और चुसने लगा। मेरा दुसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रह था, कभी उसके मोटे-मोटे चुतडों को।राखी ने भी अपना हाथ तेजी के साथ चलना शुरु कर दिया था, और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठीया रही थी। मेरा मजा बढता जा रहा था, तभी मैने सोचा ऐसे करते-करते तो राखी फिर मेरा निकाल देगी, और शायद फिर कुछ देखने भी न दे। जबकि मैं आज तो राखी को पुरा नंगा करके, जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था। इसलिये मैने राखी के हाथो को पकड लिया और कहा,
"राखी, रुको।"

"क्यों, मजा नही आ रह है, क्या ? जो रोक रहा है।"

" राखी, मजा तो बहुत आ रह है, मगर ?"

"फिर क्या हुआ ?"

"फिर राखी, मैं कुछ और करना चाहता हुं। ये तो दिन के जैसे ही हो जायेगा।"

इस पर राखी मुस्कुराते हुए पुछा,
"तो तु और क्या करना चाहता है ? तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना, और कैसे निकलेगा ?"

" नही राखी, पानी नही निकालना मुझे।"

"तो फिर क्या करना है ?"

"राखी, देखना है।"

"क्या देखना है, रे ?" " राखी, ये देखना है।",
कह कर, मैने एक हाथ सीधा राखी की बुर पर रख दिया।

" बदमाश, ये कैसी तमन्ना पाल ली, तुने ?"

"राखी, बस एक बार दिखा दो, ना।"

"नही, ऐसा नही करते। मैने तुम्हे थोडी छुट क्या दे दी, तुम तो उसका फायदा उठाने लगे।"

"राखी, ऐसे क्यों कर रही हो तुम ? दिन में तो कितना अच्छे से बातें कर रही थी।"

"नही, मैं तेरी  बहिन हुं,भाई ।"

"राखी, दिन में तो तुमने कितना अच्छा दिखाया भी था, थोडा बहुत ?"

"मैने कब दिखाया ? झुठ क्यों बोल रहा है ?"

"राखी, तुम जब पेशाब करने गई थी, तब तो दिखा रही थी।"

"हाये राम, कितना बदमाश है रे, तु ? मुझे पता भी नही लगा, और तु देख रहा था। हाय दैया, आज कल के लौंडो का सच में कोई भरोसा नही। कब अपनी बहिन पर बुरी नजर रखने लगे, पता ही नही चलता ?"

"राखी, ऐसा क्यों कह रही हो ? मुझे ऐसा लगा जैसे, तुम मुझे दिखा रही हो, इसलिये मैने देखा।"

"चल हट, मैं क्यों दिखाउन्गी ? कोई बहिन ऐसा करती है, क्या ?"

"हाय, मैने तो सोचा था कि, रात में पुरा देखुन्गा। "

"ऐसी उल्टी-सीधी बातें मत सोचा कर, दिमाग खराब हो जायेगा।"

" ओह बहिन, दिखा दो ना, बस एक बार। खाली देख कर सो जाउन्गा।"पर बहिन ने मेरे हाथो को झटक दिया, और उठकर खडी हो गई। अपने ब्लाउस को ठीक करने के बाद, छत के कोने की तरफ चल दी। छत का वो कोना घर के पिछवाडे की तरफ पडता था, और वहां पर एक नाली (मोरी) जैसा बना हुआ था, जिस से पानी बह कर सीधे नीचे बहनेवाली नाली में जा गीरता था। बहिन उसी नाली पर जा के बैठ गई। अपने पेटिकोट को उठा के पेशाब करने लगी। मेरी नजरें तो बहिन का पिछा कर ही रही थी। ये नजारा देख के तो मेरा मन और बहक गया । दिल में आ रहा था कि जल्दी से जाके, राखी के पास बैठ के आगे झांख लुं, और उसकी पेशाब करती हुई चुत को कम से कम देख भर लुं। पर ऐसा ना हो सका। राखी ने पेशाब कर लिया, फिर वो वैसे ही पेटिकोट को जांघो तक, एक हाथ से उठाये हुए मेरी तरफ घुम गई और अपनी बुर पर हाथ चलाने लगी, जैसे कि पेशाब पोंछ रही हो और फिर मेरे पास आ के बैठ गई। मैने राखी के बैठने पर उसका हाथ पकड लिया और प्यार से सहलाते हुए बोला,
"राखी, बस एक बार दिखा दो ना, फिर कभी नही बोलुन्गा दिखने के लिये।"

"एक बार ना कह दिया तो तेरे को समझ में नही आता है, क्या ?"

"आता तो है, मगर बस एक बार में क्या हो जायेगा ? "

"देख, दिन में जो हो गया सो हो गया। मैने दिन में तेरा लंड भी मुठीया दिया था, कोई बहिन  ऐसा नही करती। बस इससे आगे नही बढने दुन्गी।"

बहिन  ने पहली बार गंदे शब्द का उपयोग किया था। उसके मुंह से लंड सुन के ऐसा लगा, जैसे अभी झड के गीर जायेगा। मैने फिर धीरे से हिम्मत कर के कहा,
" बहिन क्या हो जायेगा अगर एक बार मुझे दिखा देगी तो ? तुमने मेरा भी तो देखा है, अब अपना दिखा दो ना ।"

"तेरा देखा है, इसका क्या मतलब है ? तेरा तो मैं बचपन से देखते आ रही हुं। और रही बात चुंची दिखाने और पकडाने की, वो तो मैने तुझे करने ही दिया है ना, क्योंकि बचपन में तो तु इसे पकडता-चुसता ही था। पर चुत की बात और है, वो तो तुने होश में कभी नही देखी ना, फिर उसको क्यों दिखाउं ?"

राखी अब खुल्लम-खुल्ला गन्दे शब्दो का उपयोग कर रही थी। " जब इतना कुछ दिखा दिया है तो, उसे भी दिखा दो ना। ऐसा, कौन-सा काम हो जायेगा ?"

 राखी ने अब तक अपना पेटिकोट समेट कर जांघो के बीच रख लिया था और सोने के लिये लेट गई थी। मैने इस बार अपना हाथ उसकी जांघो पर रख दिया। मोटी-मोटी गुदाज जांघो का स्पर्श जानलेवा था। जांघो को हल्के-हल्के सहलाते हुए, मैं जैसे ही हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगा, राखी ने मेरा हाथ पकड लिया और बोली,
"ठहर, अगर तुझसे बरदास्त नही होता है तो ला, मैं फिर से तेरा लंड मुठीया देती हुं।",
कह कर मेरे लंड को फिर से पकड कर मुठीयाने लगी, पर मैं नही माना और ‘एक बार, केवल एक बार’, बोल के जिद करता रहा। राखी ने कहा"बडा जिद्दी हो गया रे, तु तो। तुझे जरा भी शरम नही आती, अपनी  बहिन   को चुत दिखाने को बोल रहा है। अब यहां छत पर कैसे दिखाउं ? अगल-बगल के लोग कहीं देख लेन्गे तो ? कल देख लियो।"
" कल नही अभी दिखा दे। चारो तरफ तो सब-कुछ सुम-सान है, फिर अभी भला कौन हमारी छत पर झांकेगा ?"

"छत पर नही, कल दिन में घर में दिखा दुन्गी, आराम से।"

तभी बारीश की बुंदे तेजी के साथ गीरने लगी। ऐसा लगा रहा था, मेरी तरह आसमान भी बुर नही दिखाये जाने पर रो पडा है।  बहिन ने कहा,
"ओह, बारीश शुरु हो गई। चल, जल्दी से बिस्तर समेट ले। नीचे चल के सोयेन्गे।"

मैं भी झट-पट बिस्तर समेटने लगा, और हम दोनो जल्दी से नीचे की ओर भागे। नीचे पहुंच कर राखी, अपने कमरे में घुस गई। मैं भी उसके के पिछे-पिछे उसके कमरे में पहुंच गया । राखी ने खिडकी खोल दी, और लाईट जला दी। खिडकी से बडी अच्छी, ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी। राखी जैसे ही पलंग पर बैठी, मैं भी बैठ गया । और राखी से बोला,
" अब दिखा दो ना। अब तो घर में आ गये है, हम लोग।" इस पर राखी मुस्कुराते हुए बोली,
"लगता है, आज तेरी किसमत बडी अच्छी है। आज तुझे मालपुआ खाने को तो नही, पर देखने को जुरुर मिल जायेगा।"

फिर राखी ने अपना सिर पलंग पे टीका के, अपने दोनो पैर सामने फैला दिये और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली,
"इधर आ, मेरे पैरो के बीच में, अभी तुझे दिखाती हुं। पर एक बात जान ले, तु। पहली बार देख रहा है, देखते ही तेरा पानी निकल जायेगा, समझा।"

फिर राखी ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पकडा और धीरे-धीरे उपर उठाने लगी। मेरी हिम्मत तो बढ ही चुकी थी, मैने धीरे-से राखी से कहा,
"राखी, ऐसे नही।"


"तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा ?"

"राखी, पुरा खोल के दिखाओ ना ?"

"पुरा खोल के से, तेरा क्या मतलब है ?"

"हाय, पुरे कपडे खोल के। मेरी बडी तमन्ना है कि, मैं तुम्हारे पुरे बदन को नंगा देखुं, बस एक बार।"

इतना सुनते ही राखी ने आगे बढ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हसते हुए बोली,
"वाह बेटा, अंगुली पकड के पुरा हाथ पकडने की सोच रहे हो, क्या ?"

"राखी छोडो ना ये सब बात, बस एक बार दिखा दो। दिन में तुम कितने अच्छे से बातें कर रही थी, और अभी पता नही क्या हो गया है तुम्हे ? सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं कि, आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो कि,,,,,,,,,,,"

"अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भुल गया। दिन में तो बडा भोला बन रहा था, और ऐसे दिखा रहा था, जैसे कुछ जानता ही नही। पहले कभी किसी को किया है, क्या? या फिर दिन में झुठ बोल रहा था ?"

"हाये कसम से राखी, कभी किसी को नही किया। करना तो दूर की बात है, कभी देखा या छुआ तक नही।"

"चल झुठे, दिन में तो देखा भी था और छुआ भी था।"

"कहां राखी, कहां देखा था ?"

"क्यों, दिन में मेरा तुने देखा नही था, क्या ? और छुआ भी था तुमने तो।"

, हां देखा था, पर पहली बार देखा था। इससे पहले किसी का नही देखा था। तुम पहली हो जिसका मैने देखा था।"
"अच्छा, इससे पहले तुझे कुछ पता नही था, क्या ?"

"नही राखी थोडा बहुत मालुम था।"

"क्या मालुम था ? जरा मैं भी तो सुनु।",
कह कर राखी ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथो में पकड लिया और मुठीयाने लगी। इस पर मैं बोला,
"ओह छोड दो राखी, ज्यादा करोगी तो अभी निकल जायेगा।"

"कोई बात नही, अभी निकाल ले। अगर पुरा खोल के दिखा दुन्गी, तो फिर तो तेरा देखते ही निकल जायेगा। पुरा खोलके देखना है ना, अभी ?"

इतना सुनए ही मेरा दिल तो बल्लीयों उछलने लगा। अभी तक तो राखी नखरें कर रही थी, और अभी उसने अचानक ही, जो दिखाने की बात कर दी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे लंड से पानी निकल जायेगा।

"राखी, सच में दिखाओगी, ना ?"

"हां दिखाउन्गी मेरे राजा  भाई , जुरुर दिखाउन्गी। अब तो तु पुरा जवान हो गया है और, काम करने लायक भी हो गया है। अब तो तुझे ही दिखाना है, सब कुछ। और तेरे से अपना सारा काम करवाना है, मुझे।"

राखी और तेजी के साथ मेरे लंड को मुठीया रही थी, और बार-बार मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंगुठे से दबा भी रही थी। राखी बोली,
"अभी जल्दी से तेरा निकाल देती हुं, फिर देख तुझे कितना मजा आयेगा। अभी तो तेरी ये हालत है कि, देखते ही झड जायेगा। एक पानी निकाल दे, फिर देख तुझे कितना मजा आता है।"
ठीक है राखी, निकाल दो एक पानी। मैं तुम्हारा दबाउं ?"

"पुछता क्या है, दबाना ? पर क्या दबायेगा, ये भी तो बता दे ?"
ये बोलते वक्त राखी के चेहरे पर, एक शैतानी भरी कातिल मुस्कुराहट खेल गई।

" वो तुम्हारी छातियां राखी, हाय।"

"छातियां, ये क्या होती है ? ये तो मर्दो की भी होती है, औरतो का तो कुछ और होता है। बता तो सही, नाम तो जानता ही होगाना।"

"चु,,,,,,चु,,,,,, मेरे से नही बोला जायेगा, छोडो नाम को।"

"बोलना, शरमाता क्यों है ? बहिन को खोल के दिखाने के लिये बोलने में नही शरमाता है, पर अंगो के नाम लेने में शरमाता है।"

" तुम्हारी,,,,,,,"

"हां हां, मेरी क्या,,,,,,,,बोल ?"

"तुम्हारी चु उ उ उंची।"
ये शब्द बोल के ही इतना मजा आ गया कि, लगा जैसे लौडा पानी फेंक देगा।

"हां, अब आयाना लाईन पर। दबा मेरी चुचियों को, इससे तेरा पानी जल्दी निकलेगा। हाय, क्या भयंकर लौडा है ? पता नही जब इस उमर में ये हाल है इस छोकरे के लंड का, तो पुरा जवान होगा तो क्या होगा ?"

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मैने अपनी दोनो हथेलियों में बहिन की चुचियां भर ली और, उन्हे खूब कस-कस के दबाने लगा। गजब का मजा आ रहा था। ऐसा लगा रहा था, जैसे कि मैं पागल हो जाउन्गा। दोनो चुचियां किसी अनार की तरह सख्त और गुदाज थी। उसके मोटे-मोटे निप्पल भी ब्लाउस के उपर से पकड में आ रहे थे। मैं दोनो निप्पल के साथ-साथ पुरी चुंची को ब्लाउस के उपर से पकड कर दबाये जा रहा था। बहिन के मुंह से अब सिसकारियां निकलने लगी थी, और वो मेरा उत्साह बढाते जा रही थी शाबाश ! ऐसे ही दबा, मेरी चुचियों को। हाय क्या लौडा है ? पता नही, घोडे का है, या सांढ का है ? ठहर जा, अभी इसे चुस के तेरा पानी निकालती हुं।"
कह कर, वो नीचे की ओर झुक गई। जल्दी से मेरा लंड, अपने होंठो के बीच कैद कर लिया और सुपाडे को होंठो के बीच दबा के खूब कस-कस के चुसने लगी। जैसे कि पाईप लगा के, कोई कोका-कोला पीता है। मैं उसकी चुचियों को अब और ज्यादा जोर से दबा रह था। मेरी भी सिसकारीयां निकलने लगी थी, मेरा पानी अब छुटने वाला ही था।

"हाये रे, निकाल रे निकाल मेरा,,,,, निकल गया,,, ओह बहिन,,,, सारा,,,, सारा का सारा पानी, तेरे मुंह में ही निकल गया रे।"
राखी का हाथ, अब और तेज गती से चलने लगा। ऐसा लगा रहा था, जैसे वो मेरे पानी को गटा-गट पीते जा रही है। मेरे लंड के सुपाडे से निकली एक-एक बुंद चुस जाने के बाद राखी ने अपने होंठो को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई, मुझे देखने लगी और बोली,
"कैसा लगा ?"

मैने कहा,
"बहुत अच्छा।"

और बिस्तर पर एक तरफ लुढक गया । मेरे साथ-साथ राखी भी लुढक के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोडी देर तक चुमती रही।

थोडी देर तक आंख बंध कर के पडे रहने के बाद, जब मैं उठा तो देखा की राखी ने अपनी आंखे बंध कर रखी है और अपने हाथो से अपनी चुचियों को हल्के-हल्के सहला रही थी। मैं उठ कर बैठ गया और धीरे-से राखी के पैरो के पास चला गया । राखी ने अपना एक पैर मोडे रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ था। उसका पेटिकोट उसकी झांघो तक उठा हुआ था। पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गेप सा बन गया था। उस गेप से उसकी झांघ, अंदर तक नजर आ रही थी। उसकी गुदाज झांघो के उपर हाथ रख के, मैं हल्का-सा झुक गया अंदर तक देखने के लिये। हांलाकि अंदर रोशनी बहुत कम थी, परंतु फिर भी मुझे उसके काले-काले झांठो के दर्शन हो गये। झांठो के कारण चुत तो नही दिखी, परंतु चुत की खुश्बु जुरुर मिल गई। तभी राखी ने अपनी आंखे खोल दी और मुझे अपनी झांघो के बीच झांखते हुए देख कर बोली,
"हाये दैया, उठ भी गया तु ? मैं तो सोच रही थी, अभी कम से कम आधा घंटा शांत पडा रहेगा, और मेरी झांघो के बीच क्या कर रहा है ? देखो इस लडके को,चूत  देखने के लिये दिवाना हुआ बैठा है।"

फिर मुझे अपनी बांहो में भर कर, मेरे गाल पर चुम्मी काट कर बोली,
"मेरे भाई को अपनी  बहिन  की चूत देखनी है ना, अभी दिखाती हुं मेरे छोरे। हाय मुझे नही पता था कि, तेरे अंदर इतनी बेकरारी है,चूत देखने की।"

मेरी भी हिम्मत बढ गई थी।
" जल्दी से खोलो और दिखा दो।"

"अभी दिखाती हुं, कैसे देखेगा, बताना ?"

"कैसे क्या, खोलोना बस जल्दी से।"

"तो ले, ये है मेरे पेटिकोट का नाडा। खुद ही खोल के  बहिन  को नंगा कर दे, और देख ले।"

" मेरे से नही होगा, तुम खोलोना।"

"क्यों नही होगा ? जब तु पेटिकोट ही नही खोल पायेगा, तो आगे का काम कैसे करेगा ?"

" आगे का भी काम करने दोगी क्या ?"मेरे इस सवाल पर,  बहिन ने मेरे गालो को मसलते हुए पुछा,
"क्यों, आगे का काम नही करेगा क्या ? अपनी बहिन  को ऐसे ही प्यासा छोड देगा ? तु तो कहता था कि तुझे ठंडा कर दुन्गा, पर तु तो मुझे गरम कर के छोडने की बात कर रह है।"

" मेरा ये मतलब नही था। मुझे तो अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा की, तुम मुझे और आगे बढने दोगी।"

"गधे के जैसा लंड होने के साथ-साथ, तेरा तो दिमाग भी गधे के जैसा ही हो गया है। लगता है, सीधा खोल के ही पुछना पडेगा, 'बोल चोदेगा मुझे, चोदेगा अपनी  बहिन को,  बहिन  की  चूत  चाटेगा, और फिर उसमे अपना लौडा डालेगा', बोलना।"

" सब करुन्गा, सब करुन्गा। जो तु कहेगी वो सब करुन्गा। हाये, मुझे तो विश्वाश ही नही हो रहा है कि, मेरा सपना सच होने जा रहा है। ओह, मेरे सपनो में आनेवाली परी के साथ सब कुछ करने जा रहा हुं।"

"क्यों, सपनो में तुझे और कोई नही, मैं ही दिखती थी, क्या ?"

"तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी। पुरे गांव में तुमसे सुंदर कोई नही।"

"हाये, मेरे १६ साल के जवान छोकरे को, उसकी   बहिन इतनी सुंदर लगती है, क्या ?"

"हां   बहिन, सुच में तुम बहुत सुंदर हो, और मैं तुम्हे बहुत दिनो से चोओ,,,,,,,,,"

"हां हां, बोलना क्या करना चाहता था ? अब तो खुल के बात कर बेटे, शरमा मत अपनी  बहिन से। अब तो हमने शर्म की हर वो दिवार गीरा दी है, जो जमाने ने हमारे लिये बनाई है।"

" मैं कब से तुम्हे चोदना चाहता था, पर कह नही पता था।"कोई बात नही भाई, अभी भी कुछ नही बिगडा है। वो भला हुआ कि, आज मैने खुद ही पहल कर दी। चल आ, देख अपनी  बहिन को नंगा, और आज से बन जा उसका सैयां।",
कह कर  बहिन बिस्तर से नीचे उतर गई, और मेरे सामने आ के खडी हो गई। फिर धीरे-धीरे करके अपने ब्लाउस के एक-एक बटन को खोलने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे चांद बादल में से निकल रहा है। धीरे-धीरे उसकी गोरी-गोरी चुचियां दिखने लगी। ओह गजब की चुचियां थी, देखने से लग रहा था जैसे कि, दो बडे नारियल दोनो तरफ लटक रहे हो। एकदम गोल और आगे से नुकिले तीर के जैसे। चुचियों पर नसो की नीली रेखायें स्पष्ट दिख रही थी। निप्पल थोडे मोटे और एकदम खडे थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलाबीपन लिये हुए, गोल-गोल घेरा था। निप्पल भुरे रंगे के थे।  बहिन अपने हाथो से अपनी चुचियों को नीचे से पकड कर मुझे दिखाती हुई बोली,आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। पसंद आई अपनी बहिन की चुंची, कैसी लगी बेटा बोलना, फिर आगे का दिखाउन्गी।"

"तुम सच में बहुत सुंदर हो। ओह, कितनी सुंदर चु उ उ,,,चियां है। ओह,,,,,"

  बहिन ने अपनी चुचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुए हल्का-सा हिलाया और बोली,
"खूब सेवा करनी होगी, इसकी तुझे। देख कैसे शान से सिर उठाये खडी है, इस उमर में भी। तेरे जीजा के बस का तो है नही, अब तु ही इन्हे सम्भालना।",
कह कर वो फिर अपने हाथो को अपने पेटिकोट के नाडे पर ले गई और बोली,
"अब देख भाई  , तेरे को जन्नत का दरवाजा दिखाती हुं। अपनी   बहिन का स्पेशियल मालपुआ देख, जिसके लिये तु इतना तरस रहा था।",
कह कर  बहिन ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया।

पेटिकोट उसकी कमर से सरसराते हुए सीधा नीचे गीर गया, और   बहिन ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उछाल कर फेंक दिया और बिस्तर के और नजदिक आ गई, फिर बोली,
" तुने तो मुझे एकदम बेशरम बना दिया।"फिर मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर के बोली,
"ओह, तेरे इस सांढ जैसे लंड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी बहिन को जी भर के।"

मेरी नजरें बहिन की झांघो के बीच में टीकी हुई थी।   बहिन की गोरी-गोरी चिकनी रानो के बीच में काली-काली झांठो का एक त्रिकोण बना हुआ था। झांठें बहुत ज्यादा बडी नही थी। झांठो के बीच में से, उसकी गुलाबी चुत की हल्की झलक मिल रही थी। मैने अपने हाथो को बहिन की झांघो पर रखा, और थोडा नीचे झुक कर ठीक चुत के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगा। राखी  ने अपने दोनो हाथ को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालो से खेलने लगी, फिर बोली,
"रुक जा, ऐसे नही दिखेगा। तुझे आराम से बिस्तर पर लेट के दिखाती हुं।"

"ठीक है, आ जाओ बिस्तर पर। राखी  एक बार जरा पिछे घुमोना।"

"ओह, मेरा राजा मेरा पिछवाडा भी देखना चाहता है, क्या ? चल, पिछवाडा तो मैं तुझे खडे-खडे ही दिखा देती हुं। ले, देख अपनी बहिन के चुतड और गांड को।",
इतना कह कर राखी  पिछे घुम गई।

ओह, कितना सुंदर द्रश्य था, वो। इसे मैं अपनी पुरी जिन्दगी में कभी नही भुल सकता। बहिन के चुतड सच में बडे खुबसुरत थे, एकदम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गुदाज, मांसल। और उस चुतड के बीच में एक गहरी लकिर-सी बन रही थी, जोकि उसकी गांड की खाई थी। मैने बहिन को थोडा झुकने को कहा तो बहिन झुक गई, और आराम से दोनो मख्खन जैसे चुतडों को पकड के अपने हाथो से मसलते हुए, उनके बीच की खाई को देखने लगा। दोनो चुतड के बीच में गांड का भुरे रंग का छेद फकफका रहा था, एकदम छोटा-सा गोल छेद। मैने हल्के-से अपने हाथ को उस छेद पर रख दिया और हल्के-हल्के उसे सहलाने लगा। साथ में, मैं चुतडों को भी मसल रहा था। पर तभी राखी आगे घुम गई। "चल मैं थक गई खडे खडे, अब जो करना है बिस्तर पर करेन्गे।"आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। और वो बिस्तर पर चढ गई। पलन्ग कि पुश्त से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरो को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली,
"अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता तु देखने के बाद क्या करेगा ? कुछ मालुम भी है, तुझे या नही है ?"

"राखी, चो,,,,,,दुन्गाआआ।"

"अच्छा, चोदेगा,,,? पर कैसे, जरा बता तो सही, कैसे चोदेगा ?"

"हाये, मैं पहले तुम्हारी चुं,,,ची चुससस,,,,ना चाहता हुं।"

"चल ठीक है, चुस लेना। और क्या करेगा ?"

"ओह और !!??, औररररर,,,,,,, चुत देखुन्गा और फिरर,,,,,,, ,,, मुझे पता नही।"

"पता नही !! ये क्या जवाब हुआ, पता नही ? जब कुछ पता नही, तो  बहिन पर डोरे क्यों डाल रहा था ?"

"ओह राखी, मैने पहले किसी को किया नही हैना, इसलिये मुझे पता नही है। मुझे बस थोडा बहुत पता है, जोकि मैने गांव के लडको के साथ सिखा था।"

"तो गांव के छोकरो ने ये नही सिखाया कि, कैसे किया जाता है। खाली यही सिखाया कि, बहिन पर डोरे डालो।"

"ओह बहिन, तु तो समझती ही नही। अरे, वो लोग मुझे क्यों सिखाने लगे कि, तुम पर डोरे डालो। वो तो,,,,,,, वो तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो, इसलिये मैं तुम्हे देखता था।"

"ठीक है। चल तेरी बात समझ गई भाई , कि मैं तुझे सुंदर लगती हुं। पर मेरी इस सुंदरता का तु फायदा कैसे उठायेगा, उल्लु ये भी तो बता देना, कि खाली देख के मुठ मार लेगा ?"

" नही, मैं तुम्हे चोदना चाहता हुं।  राखी तुम सिखा देना, सिखा दोगीना ?"
कह कर मैने बुरा-सा मुंह बना लिया।

"हाये मेरा भाई,देखो तो बहिन  की लेने के लिये कैसे तडप रहा है? आजा मेरे प्यारे, मैं तुझे सब सिखा दुन्गी। तेरे जैसे लंडवाले भाई  को तो, कोई भी बहिन सिखाना चाहेगी। तुझे तो मैं सिखा-पढा के चुदाई का बादशाह बना दुन्गी। आजा, पहले अपनी बहिन  की चुचियों से खेल ले, जी भरा के। फिर तुझे चुत से खेलना सिखाती हुं, भाई ।"
मैं राखी की कमर के पास बैठ गया।राखी पुरी नंगी तो पहले से ही थी, मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरे हाथ में शायद दुनिया की सबसे खूबसुरत चुचियां थी। ऐसी चुचियां, जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाये। मैं दोनो चुचियों की पुरी गोलाई पर हाथ फेर रह था। चुचियां मेरी हथेली में नही समा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं जन्नत में घुम रहा हुं। राखी की चुचियों का स्पर्श गजब का था। मुलायम, गुदाज, और सख्त गठीलापन, ये सब एहसास शायद अच्छी गोल-मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है। मुझे इन सारी चीजो का एक साथ आनंद मिल रह था। ऐसी चुंची दबाने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है। इस बात का पता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला, जब मैने दुसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया।आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। राखी के मुंह से हल्की हल्की आवाजे आनी शुरु हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खींच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनुठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया। हम दोनो के होंठ एक दुसरे से मिल गये और मैं राखी कि दोनो चुचियों को पकडे हुए, उसके होंठो का रस ले रह था। कुछ ही सेकन्ड में हमारी जीभ आपस में टकरा रही थी। मेरे जीवन का ये पहला चुम्बन करीब दो-तीन मिनट तक चला होगा। राखी के पतले होंठो को अपने मुंह में भर कर मैने चुस-चुस कर और लाल कर दिया। जब हम दोनो एक दुसरे से अलग हुए तो दोनो हांफ रहे थे। मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचियां पर थे और मैं अब उनको जोर जोर से मसल रह था।

राखी के मुंह से अब और ज्यादा तेज सिसकारियां निकलने लगी थी। राखी ने सिसयाते हुए मुझसे कहा,
"ओह,,,, ओह,,,,, सिस,,सिस,,सि,सि,,,,,,,,,,शाबाश, ऐसे ही प्यार करो मेरी चुचियों से। हल्के-हल्के आराम से मसलो बेटा, ज्यादा जोर से नही, नही तो तेरी बहिन को मजा नही आयेगा। धीरे-धीरे मसलो।" मेरे हाथ अब बहिन कि चुचियों के निप्पल से खेल रहे थे। उसके निप्पल अब एकदम सख्त हो चुके थे। हल्का कालापन लिये हुए गुलाबी रंग के निप्पल खडे होने के बाद ऐसे लग रहे थे, जैसे दो गोरी, गुलाबी पहाडियों पर बादाम की गीरी रख दी गई हो। निप्पल के चारो ओर उसी रंग का घेरा था। ध्यान से देखने पर मैने पाया कि, उस घेरे पर छोटे-छोटे दाने से उगे हुए थे। मैं निप्पलों को अपनी दो उन्गलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था, और प्यार से उनको खींच रहा था। जब भी मैं ऐसा करता तो बहिन की सिसकीयां और तेज हो जाती थी। बहिन की आंखे एकदम नशिली हो चुकी थी और वो सिसकारीयां लेते हुए बडबडाने लगी,आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। ओह,  भाई  ऐसे ही,,,,,, ऐसे ही,,,,, तुझे तो सिखाने की भी जुरुरत नही है, रे। ओह क्या खूब मसल रहा है, मेरे प्यारे। ऐसे ही कितने दिन हो गये, जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या प्यार किया है। कैसे तरसती थी मैं कि, काश कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे, प्यार से सहला दे, पर आखिर में अपना  भाई  ही काम आया। आजा मेरे लाल।"कहते हुए उसने मेरे सिर को पकड कर अपनी चुचियों पर झुका लिया। मैं राखी का इशारा समझ गया और मैने अपने होंठ राखी की चुचियों से भर लिये। मेरे एक हाथ में उसकी एक चुंची थी और दुसरी चुंची पर मेरे होंठ चिपके हुए थे। मैने धीरे-धीरे उसकी चुचियों को चुसना शुरु कर दिया था। मैं ज्यादा से ज्यादा चुंची को अपने राखी में भर के चुस रहा था। मेरे अंदर का खून इतना उबाल मारने लगा था कि, एक-दो बार मैने अपने दांत भी चुचियों पर गडा दिये थे। जिस से राखी के मुंह से अचानक से चीख निकल गई थी। पर फिर भी उसने मुझे रोका नही। वो अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे ले जा कर, मुझे बालो से पकड के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और जोर-जोर से दबा रही थी, और दांत से काटने पर एकदम से घुटी-घुटी आवाज में चीखते हुए बोली,
"ओह, धीरे भाई, धीरे-से चुसो चुंची को। ऐसे जोर से नही काटते है।"

फिर उसने अपनी चुंची को अपने हाथ से पकडा और उसको मेरे मुंह में घुसाने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे वो अपनी चुंची को पुरी की पुरी मेरे मुंह में घुसा देना चाहती हो, और सिसयाई,
"ओह राजा मेरे निप्पल को चुसो जरा, पुरे निप्पल को मुंह में भर लो और कस-कस के चुसो राजा।
मैने अब अपना ध्यान निप्पल पे कर दिया और निप्पल को मुंह में भर कर अपनी जीभ, उसकी चारो तरफ गोल-गोल घुमाते हुए चुसने लगा। मैं अपनी जीभ को निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था। निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए, निप्पल को चुसने पर  राखी  एकदम मस्त हुए जा रही थी और उसके मुंह से निकलनेवाली सिसकीयां इसकी गवाही दे रही थी।मैं उसकी चीखे और सिसकीयां सुन कर पहले-पहल तो डर गया था। पर  राखी  के द्वारा ये समझाये जाने पर कि, ऐसी चीखे और सिसकीयां, इस बात को बता रही है कि, उसे मजा आ रहा है। तो फिर मैं दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था। जिस चुंची को मैं चुस रहा था, वो अब पुरी तरह से मेरी लार और थुक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी थी। फिर भी मैं उसे चुसे जा रहा था, तब  राखी  ने मेरे सिर को वहां से हटा के अपनी दुसरी चुंची की तरफ करते हुए कहा,आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। "हाये, खाली इसी चुंची को चुसता रहेगा, दुसरी को भी चुस, उसमे भी वही स्वाद है।"फिर अपनी दुसरी चुंची को मेरे मुंह में घुसाते हुए बोली,
"इसको भी चुस चुस के लाल कर दे मेरे लाल, दुध निकल दे मेरे सैंया। एकदम आम के जैसे चुस और सारा रस निकाल दे, अपनी बहिन की चुचियों का। किसी काम की नही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आयेगी।"मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहलीवाली चुंची दबाते हुए, दुसरी को पुरे मनोयोग से चुसने लगा। बहिन सिसकीयां ले रही थी और चुसवा रही थी। कभी-कभी अपना हाथ मेरी कमर के पास ले जा के, मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड के मरोड रही थी। कभी अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी। इस तरह काफि देर तक मैं उसकी चुचियों को चुसता रहा। फिर बहिन ने खुद अपने हाथों से मेर सिर पकड के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी। मेरे होंठ मेरे खुद के थुक से भीगे हुए थे।बहिन  की बांयी चुंची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी, जबकि दाहिनी चुंची पर लगा थुक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचियां लाल हो चुकी थी, और निप्पलों का रंग हल्के काले से पुरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चुसने पर खून का दौर भर जाने के कारण हुआ था)।

राखी ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खींच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुम्बन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेंकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली,
"खाली दुध ही पीयेगा या मालपुआ भी खायेगा ? देख तेरा मालपुआ तेरा इन्तजार कर रह है, राजा।"

मैने भी राखी के होंठो का चुम्बन लिया और फिर उसके भरे-भरे गालो को, अपने मुंह में भर कर चुसने लगा और फिर उसके नाक को चुम और फिर धीरे से बोला,
"ओह राखी, तुम सच में बहुत सुंदर हो।"

इस पर राखी ने पुछा,
"क्यों, मजा आया ना, चुसने में ?"

"हां राखी, गजब का मजा आया, मुझे आजतक ऐसा मजा कभी नही आया था।"

तब राखी ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा,
"नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है। आजा , आज तुझे असली मालपुआ खिलाती हुं।" मैं धीरे से खिसक कर राखी के पैरो पास आ गया। राखी ने अपने पैरो को घुटनो के पास से मोडे कर फैला दिया और बोली,
"यहां बीच में। दोनो पैरो के बीच में आ के बैठ। तब ठीक से देख पायेगा, अपनी राखी का खजाना।"

मैं उठ कर राखी के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका। मेरे सामने वो चीज थी, जिसको देखने के लिये मैं मरा जा रहा था। मां ने अपनी दोनो जांघे फैला दी, और अपने हाथों को अपनी चूत के उपर रख कर बोली,
"ले देख ले, अपना मालपुआ। अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा।"

मेरी खुशी का तो ठीकाना नही था। सामने बहिन की खुली जांघो के बीच झांठो का एक त्रिकोण सा बन हुआ था। इस त्रिकोणिय झांठो के जंगल के बीच में से, बहिन की फुली हुए गुलाबी बुर का छेद झांख रहा था, जैसे बादलों के झरमट में से चांद झांखता है। मैने अपने कांपते हाथों को बहिन की चिकनी जांघो पर रख दिया और थोडा सा झुक गया। उसकी  चूत के बाल बहुत बडे-बडे नही थे। छोटे-छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकिर से चीरी हुई थी। मैने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा,
"राखी, मैं इसे छु,,,,,लुं,,,,,?"

"छु ले, तेरे छुने के लिये ही तो खोल के बैठी हुं।"

मैने अपने हाथों को राखी की चुत को उपर रख दिया। झांठ के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे। हालांकि आम तौर पर झांठ के बाल थोडे मोटे होते है, और उसके झांठ के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे। हल्के-हल्के मैं उन बालों पर हाथ फिराते हुए, उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रह था। अब चुत की दरार और उसकी मोटी-मोटी फांके स्पष्ट रुप से दिख रही थी। राखी की चूत एक फुली हुई और गद्देदार लगती थी। चुत की मोटी-मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी। मेरे से रहा नही गया और मैं बोल पडा,
" ये तो सच-मुच में मालपुए के जैसी फुली हुई है। "

"हां भाई, यही तो तेरा असली मालपुआ है। आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे, यही खाना।"

"हां बहिन, मैं तो हंमेशा यही मालपुआ खाउन्गा। ओह बहिन, देखोना इस से तो रस भी निकल रहा है।"
(चुत से रिसते हुए पानी को देख कर मैने कहा।)

"भाई, यही तो असली माल है, हम औरतो का। ये रस, मैं तुझे अपनी चूत  की थाली में सजा कर खिलाउन्गी। दोनो फांको को खोल के देख कैसी दिखती है ? हाथ से दोनो फांक पकड कर, खींच कर चूत  को चिरोड कर देख।" सच बताता हुं दोनो फांको को चीर कर, मैने जब चुत के गुलाबी रस से भीगे छेद को देखा, तो मुझे यही लगा कि मेरा तो जनम सफल हो गया है। चुत के अंदर का भाग एकदम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था जब मैने उस छेद को छुआ तो मेरे हाथों में चिप-चिपा-सा रस लग गया । मैने उस रस को वहीं बिस्तर की चद्दर पर पोंछ दिया और अपने सिर को आगे बढा कर राखी की चूत को चुम लिया। राखी ने इस पर मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाते हुए हल्के-से सिसकाते हुए कहा,
"बिस्तर पर क्यों पोंछ दिया, उल्लु ? यही बहिन  का असली प्यार है, जोकि तेरे लंड को देख के चुत के रस्ते छलक कर बाहर आ रहा है। इसको चख के देख, चुस ले इसको।"

"हाये बहिन , चुसु मैं तेरी बुर को ?  चाटु इसको ?"

"हां  भाई  चाट ना, चुस ले अपनी बहिन  की चुत के सारे रस को। दोनो फांको को खोल के उसमे अपनी जीभ डाल दे, और चुस। और ध्यान से देख, तु तो बुर की केवल फांको को देख रहा है। देख मैं तुझे दिखाती हुं।"

और  राखी  ने अपनी चुत को पुरा चिरोड दिया और अंगुली रख कर बताने लगी,
"देख, ये जो छोटा वाला छेद है ना, वो मेरे पेशाब करने वाला छेद है। बुर में दो-दो छेद होते है। उपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचेवाला जो ये बडा छेद है, वो चुदवाने के काम आता है। इसी छेद में से रस निकलता है, ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चुत को चोद सके। और भाई  ये जो पेशाब वाले छेद के ठीक उपर जो ये नुकिला सा निकला हुआ है, वो क्लीट कहलाता है। ये औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है। इसको छुते ही औरत एकदम गरम हो जाती है, समझ में आया ?"

"आ गया समझ में। हाय, कितनी सुंदर है, ये तुम्हारी चूत। मैं चाटु इसे बहिन   ?"

"हां भाई, अब तु चाटना शुरु कर दे। पहले पुरी बुर के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाट, फिर मैं आगे बताती जाती हुं, कैसे करना है ?"

मैने अपनी जीभ निकाल ली, और राखी की बुर पर अपनी जुबान को फिराना शुरु कर दिया। पुरी चुत के उपर मेरी जीभ चल रही थी। मैं फुली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी जुबान से, उपर से नीचे तक चाट रहा था। अपनी जीभ को दोनो फांको के उपर फेरते हुए, मैने ठीक बुर की दरार पर अपनी जीभ रखी और मैं धीरे-धीरे उपर से नीचे तक चुत की पुरी दरार पर जीभ को फिराने लगा। बुर से रिस-रिस कर निकलता हुआ रस, जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मुझे मिल रहा था। जीभ जब चुत के उपरी भाग में पहुंच कर क्लीट से टकराती थी, तो राखी की सिसकीयां और भी तेज हो जाती थी। राखी ने अपने दोनो हाथों को शुरु में तो कुछ देर तक अपनी चुचियों पर रख था, और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही। मगर बाद में उसने अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे लगा दिया और मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाने लगी।मेरी चुत चुसाई बादस्तुर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज हो गया था कि,राखी  को सबसे ज्यादा मजा अपनी क्लीट की चुसाई में आ रहा है।आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है।  इसलिये मैने इस बार अपनी जीभ को नुकिला कर के, क्लीट से भिडा दिया और केवल क्लीट पर अपनी जीभ को तेजी से चलाने लगा। मैं बहुत तेजी के साथ क्लीट के उपर जीभ चला रहा था और फिर पुरी क्लीट को अपने होंठो के बीच दबा कर, जोर-जोर से चुसने लगा। राखी ने उत्तेजना में अपने चुतडों को उपर उछाल दिया और जोर से सिसकीयां लेते हुए बोली,हाये दैया, उईई मां,,,,,,, शी शी,,,,, चुस ले, ओह,,,,,, चुस ले,,,, मेरे भगनशे को। ओह, शीश,,,, क्या खुब चुस रहा है रे तु ???? ओह म,,मैने तो सोचा भी नही थाआआआ,,,, कि तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी। हाये रे,,,,,  भाईआ,,,,, तु तो कमाल का निकला,,,,,,,, आह, ओओओह,,,,, ऐसे ही चुस,,, अपने होंठो के बीच में भगनशे को भर के,,,, इसी तरह से चुस ले, ओह  भाई चुसो, चुसो  भाई,,,,,,,"

राखी  के उत्साह बढाने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी। मैं दुगुने जोश के साथ, एक कुत्ते की तरह से लप-लप करते हुए, पुरी बुर को चाटे जा रहा था। अब मैं चुत के भगनशे के साथ-साथ पुरी चुत के मंस (गुद्दे) को अपने मुंह में भर कर चुस रहा था, और राखी  की मोटी फुली हुई चुत अपने झांठो समेत मेरे मुंह में थी। पुरी राखी  को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुंह में भर कर चुसने के बाद, मैने अपने होंठो को खोल कर चुत के चोदनेवाले छेद के सामने टिका दिया, और बुर के होंठो से अपने होंठो को मिला कर मैने खूब जोर-जोर से चुसना सुरु कर दिया। बुर का नशिला रस रिस-रिस कर निकल रहा था, और सीधा मेरे मुंह में जा रहा था। मैने कभी सोचा भी नही था कि, मैं चुत को ऐसे चुसुन्गा, या फिर चुत की चुसाई ऐसे कि जाती है। पर शायद चुत सामने देख कर चुसने की कला अपने आप आ जाती है। फुद्दी और जीभ की लडाई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है कि, इसे सिखने और सिखाने की जुरुरत नही पडती। बस जीभ को फुद्दी दिखा दो, बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है। राखी  की सिसकीयां और शाबाशी और तेज हो चुकी थी। मैने अपने सिर को हल्का-सा उठा के राखी  को देखते हुए, अपने बुर के रस से भीगे होंठो से राखी  से पुछा,
"कैसा लग रहा है राखी , तुझे अच्छा लग रहा है ना ?"

राखी  ने सिसकाते हुए कहा,
"हाये,भाई मत पुछ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे  भाई । इसी मजे के लिये तो तेरी बहिन  तरस रही थी। चुस ले मेरी बुर कोओओओओओओ,,,,, और जोर से चुस्स्स्स्स्स्स्,,,,, सारा रस पी लेएएएएए मेरे सैंया, तु तो जादुगर है रेएएएएएएएए, तुझे तो कुछ बताने की भी जुरुरत नही। हाये मेरी बुर की फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चुस भाई , और उसमे अपनी जीभ को लबलबाते हुए अपनी जीभ को मेरी चुत के अंदर तक घुमा दे। हाये घुमा दे, राजा  भाई  घुमा दे,,,,,,,"
बहिन के बताये हुए रास्ते पर चलना तो  भाई  का फर्ज बनता है, और उस फर्ज को निभाते हुए, मैने बुर की दोनो फांको को फैला दिया और अपनी जीभ को उसकी चुत में पेल दिया। बुर के अंदर जीभ घुसा कर, पहले तो मैने अपनी जीभ और उपरी होंठ के सहारे बुर की एक फांक को पकड के खूब चुसा। फिर दुसरी फांक के साथ भी ऐसा ही किया। फिर चुत को जितना चिरोड सकता था उतना चिरोड कर, अपनी जीभ को बुर के बीच में डाल कर उसके रस को चटकारे ले कर चाटने लगा। चुत का रस बहुत नशीला था और राखी की चुत कामोत्तेजना के कारण खूब रस छोड रही थी। रंगहीन, हल्का चिप-चिपा रस चाट कर खाने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था। राखी घुटी-घुटी आवाज में चीखते हुए बोल पडी,आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। ओह, चाट ऐसे हि चाट मेरे राजा, चाट चाट के मेरे सारे रस को खा जाओ। हाये रे मेरा भाई, देखो कैसे कुत्ते की तरह से अपनी  बहिन  की बुर को चाट रह है। ओह चाट ना, ऐसे ही चाट मेरे कुत्ते भाई, अपनी कुतिया बहिन  की बुर को चाट, और उसकी बुर के अंदर अपनी जीभ को हिलाते हुए मुझे अपनी जीभ से चोद डाल।"

मुझे बडा आश्चर्य हुआ कि एक तो बहिन मुझे कुत्ता कह रही है, फिर खुद को भी कुतिया कह रही है। पर मेरे दिलो-दिमाग में तो अभी केवल बहिन  की रसीली बुर की चटाई घुसी हुई थी। इसलिये मैने इस तरफ ध्यान नही दिया। बहिन  की आज्ञा का पालन किया, और जैसे उसने बताया था उसी तरह से, अपनी जीभ से ही उसकी चुत को चोदना शुरु कर दिया। मैं अपनी जीभ को तेजी के साथ बुर में से अंदर-बाहर कर रहा था, और साथ ही साथ चुत में जीभ को घुमाते हुए चुत के गुलाबी छेद से अपने होंठो को मिला के अपने मुंह को चुत पर रगड भी रहा था। मेरी नाक बार-बार चुत के भगनशे से टकरा रही थी और शायद वो भी बहिन  के आनंद का एक कारण बन रही थी। मेरे दोनो हाथ बहिन  की मोटी, गुदाज जांघो से खेल रहे थे। तभी बहिन ने तेजी के साथ अपने चुतडों को हिलाना शुरु कर और जोर-जोर से हांफते हुए बोलने लगी,
"ओह निकल जायेगा, ऐसे ही बुर में जीभ चलाते रहना भाई ,,,,, ओह, सी,,,,सीइ शीइशिशि, साली बहुत खुजली करती थी। आज निकाल दे, इसका सारा पानी।"

और अब  राखी दांत पीस कर लगभग चीखते हुए बोलने लगी,
"ओह होओओओओ,,,, शीईईई साले कुत्ते, मेरे प्यारे  भाई, मेरे लाल,,,, हाये रे,,,, चुस और जोर-से चुस अपनी बहिन की चूत  को,,,,, जीभ से चोद देएएएएए अभी,,,,,,, सीईईइ ईई चोदनाआआ कुत्ते,,,, हरामजादे और जोर-से चोद सालेएएएएएएएए, ,,,,,,,, चोद डाल अपनी बहिन को,,,, हाय निकला रे,,, मेरा तो निकल गया। ओह,,,, मेरे चुदक्कड भाई ,,, निकाल दिया रे तुने तो,,,,, अपनी बहिन को अपनी जीभ से चोद डाला।"

कहते हुए बहिन ने अपने चुतडों को पहले तो खूब जोर-जोर से उपर् की तरफ उछाला, फिर अपनी आंखो को बंध कर के चुतडों को धीरे-धीरे फुदकाते हुए झडने लगी,
"ओह,,, गईईईई मैं,,,, मेरे राजाआआ,,,, मेरा निकल गया, मेरे सैंयाआआ। हाये तुने मुझे जन्नत की सैर करवा दी रे। हाय मेरे भाई ,,, ओह,,,, ओह,,, मैं गई,,,, बहिन  ,,"  की बुर मेरे मुंह पर खुल-बंद हो रही थी। बुर की दोनो फांको से रस, अब भी रिस रहा था। पर  बहिन अब थोडी ठंडी पड चुकी थी, और उसकी आंखे बंध थी। उसने दोनो पैर फैला दिये थे, और सुस्त-सी होकर लंबी-लंबी सांसे छोडती हुई लेट गई। मैने अपनी जीभ से चोद-चोद कर, अपनी बहिन   को झाड दिया था। मैने बुर पर से अपने मुंह को हटा दिया, और अपने सिर को  बहिन   की जांघो पर रख कर लेट गया। कुछ देर तक ऐसे हि लेटे रहने के बाद, मैने जब सिर उठा के देख तो पाया की बहिन    अब भी अपने आंखो को बंध किये बेशुध होकर लेटी हुई है।

मैं चुप-चाप उसके पैरो के बीच से उठा और उसकी बगल में जा कर लेट गया । मेरा लंड फिर से खडा हो चुका था, पर मैने चुप-चाप लेटना ही बेहतर समझा और बहिन   की ओर करवट ले कर, मैने अपने सिर को उसकी चुचियों से सटा दिया और एक हाथ पेट पर रख कर लेट गया । मैं भी थोडी बहुत थकावट महसुस कर रहा था, हालांकि लंड पुरा खडा था और चोदने की ईच्छा बाकी थी। मैं अपने हाथों से  बहिन   के पेट, नाभी और जांघो को सहला रहा था। मैं धिरे-धिरे ये सारा काम कर रहा था, और कोशिश कर रहा था कि, राखी   ना जागे। मुझे लग रहा था कि, अब तो राखी   सो गई है और मुझे शायद मुठ मार कर ही संतोष करना पडेगा। इसलिये मैं चाह रहा था कि, सोते हुए थोडा सा राखी   के बदन से खेल लुं, और फिर मुठ मार लुन्गा। मुझे राखी   की जांघ बडी अच्छी लगी और मेरा दिल कर रहा था कि, मैं उन्हे चुमु और चाटु। इसलिये मैं चुप-चाप धीरे से उठा, और फिर राखी   के पैरो के पास बैठ गया । राखी   ने अपना एक पैर फैला रखा था, और दुसरे पैर को घुटनो के पास से मोड कर रख हुआ था। इस अवस्था में वो बडी खूबसुरत लग रही थी। उसके बाल थोडे बिखरे हुए थे। एक हाथ आंखो पर और दुसरा बगल में था। पैरों के इस तरह से फैले होने से उसकी बुर और गांड, दोनो का छेद स्पष्ट रुप से दिख रहा था। धीरे-धीरे मैं अपने होंठो को उसकी जांघो पर फेरने लगा, आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। और हल्की-हल्की चुम्मियां उसकी रानो से शुरु कर के उसके घुटनो तक देने लगा। एकदम मख्खन जैसी गोरी, चीकनी जांघो को अपने हाथों से पकड कर हल्के-हल्के मसल भी रहा था। मेरा ये काम थोडी देर तक चलता रहा, तभी राखी   ने अपनी आंखे खोली और मुझे अपनी जांघो के पास देख कर वो एकदम से चौंक कर उठ गई, और प्यार से मुझे अपनी जांघो के पास से उठाते हुए बोली,
"क्या कर रहा है  भाई  ????,,,, जरा आंख लग गई थी। देख ना इतने दिनो के बाद, इतने अच्छे-से पहली बार मैने वासना का आनंद उठाया है। इस तरह पिछली बार कब झडी थी, मुझे तो ये भी याद नही। इसलिये शायद संत्रुष्टी और थकान के कारण आंख लग गई।"

"कोई बात नही  बहिन  , तुम सो जाओ।"

तभी  बहिन   की नजर मेरे ८.५ ईंच के लौडे की तरफ गई और वो चौंक के बोली,
"अरे, ऐसे कैसे सो जाउं ?"

(और मेरा लौडा अपने हाथ में पकड लिया।)
"मेरे भाई का लंड खडा हो के, बार-बार मुझे पुकार रहा है, और मैं सो जाउं।"

", इसको तो मैं हाथ से ढीला कर लुन्गा, तुम सो जाओ।"

"नही मेरे भाई, आजा जरा-सा बहिन के पास लेट जा। थोडा दम ले लुं, फिर तुझे असली चीज का मजा दुन्गी।"

मैं उठ कर बहिन के बगल में लेट गया । अब हम दोनो बहिन-भाई एक-दुसरे की ओर करवट लेते हुए, एक-दुसरे से बाते करने लगे। बहिन ने अपना एक पैर उठाया ,और अपनी मोटी जांघो को मेरी कमर पर डाल दिया। फिर एक हाथ से मेरे खडे लौडे को पकड के उसके सुपाडे के साथ धीरे-धीरे खेलने लगी। मैं भी  राखी की एक चुंची को अपने हाथों में पकड कर धीरे-धीरे सहलाने लगा, और अपने होंठो को  राखी के होंठो के पास ले जा कर एक चुंबन लिया।  राखी ने अपने होंठो को खोल दिया। चुम्मा-चाटी खतम होने के बाद  राखी ने पुछा,
"और   भाई, कैसा लगा बहिन की चूत  का स्वाद ? अच्छा लगा, या नही ?" "हाये  राखी, बहुत स्वादिष्ट था, सच में मजा आ गया।"

"अच्छा, चलो मेरे भाई को अच्छा लगा, इससे बढ कर मेरे लिये कोई बात नही।"

" राखी , तुम सच में बहुत सुंदर हो। तुम्हारी चुचियां कितनी खूबसुरत है। मैं,,,,, मैं क्या बोलुं ?  राखी , तुम्हारा तो पुरा बदन खूबसुरत है।"

"कितनी बार बोलेगा ये बात तु, मेरे से ? मैं तेरी आंखे नही पढ सकती क्या ? जिनमे मेरे लिये इतना प्यार छलकता है।"

मैं  राखी  से फीर पुरा चिपक गया । उसकी चुचियां मेरी छाती में चुभ रही थी, और मेरा लौडा अब सीधा उसकी चुत पर ठोकर मार रहा था। हम दोनो एक-दुसरे की आगोश में कुछ देर तक ऐसे ही खोये रहे। फिर मैने अपने आप को अलग किया और बोला,
" राखी , एक सवाल करुं ?"

"हां पुछ, क्या पुछना है ?"

" राखी , जब मैं तुम्हारी चुत चाट रह था, तब तुमने गालियां क्यों निकाली ?"

"गालियां और मैं, मैं भला क्यों गालियां निकालने लगी ?"

"नही  राखी , तुम गालियां निकाल रही थी। तुमने मुझे कुत्ता कहा, और,,, और खुद को कुतिया कहा, फिर तुमने मुझे हरामी भी कहा।"

"मुझे तो याद नही भाई कि, ऐसा कुछ मैने तुम्हे कहा था। मैं तो केवल थोडा-सा जोश में आ गई थी, और तुम्हे बता रही थी कि कैसे क्या करना है। मुझे तो एकदम याद नही कि मैने ये शब्द कहे "नही  राखी , तुम ठीक से याद करने की कोशिश करो। तुमने मुझे हरामी या हरामजादा कहा था, और खूब जोर से झड गई थी।"

"मुझे तो ऐसा कुछ भी याद नही है, फिर भी अगर मैने कुछ कहा भी था तो मैं अपनी ओर से माफी मांगती हुं। आगे से इन बातों का ख्याल रखुन्गी।"

" इसमे माफी मांगने जैसी कोई बात नही है। मैने तो जो तुम्हारे मुंह से सुना, उसे ही तुम्हे बता दिया। खैर, जाने दो तुम्हारा भाई हुं, अगर तुम मुझे दस-बीस गालियां दे भी दोगी तो क्या हो जायेगा ?"

" ऐसी बात नही है। अगर मैं तुझे गालियां दुन्गी तो, हो सकता है तु भी कल को मेरे लिये गालियां निकाले, और मेरे प्रति तेरा नजरीया बदल जाये। तु मुझे वो सम्मान ना दे, जो आजतक मुझे दे रहा है।"

"नही ऐसा कभी नही होगा। मैं तुम्हे हमेशा प्यार करता रहुन्गा और वही सम्मान दुन्गा, जो आजतक दिया है। मेरी नजरों में तुम्हारा स्थान हमेशा उंचा रहेगा।"

"ठीक है , अब तो हमारे बीच एक, दुसरे तरह का संबंध स्थापित हो गया है। इसके बाद जो कुछ होता है, वो हम दोनो की आपसी समझदारी पर निर्भर करता है।"

"हां  तुमने ठीक कहा, पर अब इन बातों को छोड कर, क्यों ना असली काम किया जाये ? मेरी बहुत इच्छा हो रही है कि, मैं तुम्हे चोदुं। देखोना , मेरा डण्डा कैसा खडा हो गया है ?"

"हां  भाई, वो तो मैं देख ही रही हुं कि, मेरे  भाई का हथियार कैसा तडप रहा है, बहिन का मालपुआ खाने को ? पर उसके लिये तो पहले बहिन को एक बार फिर से थोडा गरम करना पडेगा  भाई।" "हाये बहिन, तो क्या अभी तुम्हारा मन चुदवाने का नही है ?"

"ऐसी बात नही है,  चुदवाने का मन तो है, पर किसी भी औरत को चोदने से पहले थोडा गरम करना पडता है। इसलिये बुर चाटना, चुंची चुसना, चुम्मा चाटी करना और दुसरे तरह के काम किये जाते है।"

"इसका मतलब है कि, तुम अभी गरम नही हो और तुम्हे गरम करना पडेगा। ये सब कर के,,,,,"

"हां, इसका यही मतलब है।"

"पर  तुम तो कहती थी, तुम बहुत गरम हो और अभी कह रही हो कि गरम करना पडेगा ?"

"अबे उल्लु, गरम तो मैं बहुत हुं। पर इतने दिनो के बाद, इतनी जबरदस्त चुत चटाई के बाद, तुने मेरा पानी निकाल दिया है, तो मेरी गरमी थोडी देर के लिये शांत हो गई है। अब तुरन्त चुदवाने के लिये तो गरम तो करना ही पडेगा ना। नही तो अभी छोड दे, कल तक मेरी गरमी फिर चढ जायेगी और तब तु मुझे चोद लेना।"

"ओह नही , मुझे तो अभी करना है, इसी वक्त।"

"तो अपनी बहिन को जरा गरम कर दे, और फिर मजे ले चुदाई का।मैने फिर से बहिन की दोनो चुचियां पकड ली और उन्हे दबाते हुए, उसके होंठो से अपने होंठ भीडा दिये। बहिन ने भी अपने गुलाबी होंठो को खोल कर मेरा स्वागत किया, और अपनी जीभ को मेरे मुंह में पेल दिया। बहिन के मुंह के रस में गजब का स्वाद था। हम दोनो एक-दुसरे के होंठो को मुंह में भर कर चुसते हुं, आपस में जीभ से जीभ लडा रहे थे। बहिन की चुचियों को अब मैं जोर-जोर से दबाने लगा था और अपने हाथों से उसके मांसल पेट को भी सहला रह था। उसने भी अपने हाथों के बीच में मेरे लंड को दबोच लिया था और कस-कस के मरोडते हुए, उसे दबा रही थी। बहिन ने अपना एक पैर मेरी कमर के उपर रख दिया था और, अपनी जांघो के बीच मुझे बार-बार दबोच रही थी।आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। अब हम दोनो की सांसे तेज चलने लगी थी। मेरा हाथ अब बहिन की पीठ पर चल रहा था, और वहां से फिसलते हुए सीधा उसके चुतडों पर चल गया । अभी तक तो मैने बहिन के मक्खन जैसे गुदाज चुतडों पर उतना ध्यान नही दिया था, परन्तु अब मेरे हाथ वहीं पर जा के चिपक गये थे। ओह चुतडों को हाथों से मसलने का आनंद ही कुछ और है। मोटे-मोटे चुतडों के मांस को अपने हाथों में पकड कर कभी धीरे, कभी जोर से मसलने का अलग ही मजा है। चुतडों को दबाते हुए मैने अपनी उन्गलियों को चुतडों के बीच की दरार में डाल दिया, और अपनी उन्गलियों से उसके चुतडों के बीच की खाई को धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरी उन्गलियां राखी की गांड के छेद पर धीरे-धीरे तैर रही थी। राखी की गांड का छेद एकदम गरम लग रहा था। राखी, जो कि मेरे गालो को चुस रही थी, अपना मुंह हटा के बोल उठी,
"ये क्या कर रह है रे, गांड को क्यों सहला रहा है ? "

  तुम्हारी ये देखने में बहुत सुंदर लगती है, सहलाने दो ना,,,,,,,"

"चुत का मजा लिया नही, और चला है गांड का मजा लुटने।",
कह कर राखी हसने लगी।

मेरी समझ में तो कुछ आया नही, पर जब राखी   ने मेरे हाथों को नही हटाया तो मैने राखी की गांड के पकपकाते छेद में अपनी उन्गलिआं चलाने की अपने दिल की हसरत पुरी कर ली। और बडे आराम से धीरे-धीरे कर के अपनी एक उन्गली को हल्के हल्के उसकी गांड के गोल सिकुडे हुए छेद पर धीरे-धीरे चल रह था। मेरी उन्गली का थोडा सा हिस्स भी शायद गांड में चला गया था, पर राखी  ने इस पर कोई ध्यान नही दिया था। कुछ देर तक ऐसे ही गांड के छेद को सहलाता और चुतडों को मसलता रहा। मेरा मन ही नही भर रहा था। तभी राखी ने मुझे अपनी जांघो के बीच और कस के दबोच कर मेरे गालो पर एक प्यार भरी थपकी लगाई और मुंह बिचकाते हुए बोली,
"चुतीये, कितनी देर तक चुतड और गांड से ही खेलता रहेगा, कुछ आगे भी करेगा या नही ? चल आ जा, और जरा फिर से चुंची को चुस तो।"

मैं राखी की इस प्यार भरी झिडकी को सुन कर, अपने हाथों को राखी के चुतडों पर से हटा लिया और मुस्कुराते हुए राखी के चेहरे को देख और प्यार से उसके गालो पर चुम्बन डाल कर बोला,
"जैसी मेरी राखी की इच्छा।" और उसकी एक चुंची को अपने हाथों से पकड कर, दुसरी चुंची से अपना मुंह सटा दिया और निप्पलों को मुंह में भर के चुसने का काम शुरु कर दिया।राखी की मस्तानी चुचियों के निप्पल फिर से खडे हो गये और उसके मुंह से सिसकारीयां निकलने लगी। मैं अपने हाथों को उसकी एक चुंची पर से हटा के नीचे उसकी जांघो के बीच ले गया और उसकी बुर को अपने मुठ्ठी में भर के जोर से दबाने लगा। बुर से पानी निकलना शुरु हो गया था। मेरी उन्गलियों में बुर का चिपचिपा रस लग गया । मैने अपनी बीच वाली उन्गली को हल्के से चुत के छेद पर धकेला। मेरी उन्गली सरसराती हुई बुर के अंदर घुस गई। आधी उन्गली बहन की चुत में पेल कर मैने अंदर-बाहर करना शुरु कर दिया। बहन की आंखे एकदम से नशिली होती जा रही थी और उसकी सिसकारियां भी तेज हो गई थी। मैं उसकी एक चुंची को चुसते हुए चुत के अंदर अपनी आधी उन्गली को गचा-गच पेले जा रह था। राखी  ने मेरे सिर को दोनो हाथों से पकड कर अपनी चुचियों पर दबा दिया और खूब जोर-जोर से सिसकाते हुए बोलने लगी,ओह, सीई,,,,,स्स्स्स्स्स्स्स्, एए,,,, चुस, जोर से निप्पल को काट ले, हरामी। जोर से काट ले मेरी इन चुचियों को हाये,,,,,"आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। और मेरी उन्गली को अपनी बुर में लेने के लिये अपने चुतडों को उछालने लगी थी। राखी के मुंह से फिर से हरामी शब्द सुन कर मुझे थोडा बुरा लगा। मैने अपने मुंह को उसकी चुचियों पर से हटा दिया, और उसके पेट को चुमते हुए उसकी बुर की तरफ बढ गया। चुत से उन्गलीयां निकाल कर मैने चुत की दोनो फांको को पकड के फैलाया और जहां कुछ सेकंड पहले तक मेरी उन्गलीयां थी, उसी जगह पर अपनी जीभ को नुकिला कर के डाल दिया। जीभ को बुर के अंदर लिबलिबाते हुए, मैं भगनशे को अपनी नाक से रगडने लगा। राखी की उत्तेजना बढती जा रही थी। अब उसने अपने पैरो को पुरा खोल दिया था और मेरे सिर को अपनी बुर पर दबाती हुई चिल्लाई,
"चाट साले, मेरी बुर को चाट। ऐसे ही चाट कर खा जा। एक बार फिर से मेरा पानी निकाल दे, हरामी। बुर चाटने में तो तु पुरा उस्ताद निकला रे। चाट ना अपनी बहिन की बुर को, मैं तुझे चुदाई का बादशाह बना दुन्गी, मेरे चुत-चाटु राजाआआ साले।कैसी लगी मेरी सेक्स कहानी , अच्छा लगी तो जरूर रेट करें और शेयर भी करे ,अगर कोई मेरी बहन की चुदाई करना चाहते हैं तो उसे अब जोड़ना चुदाई की प्यासी बहन



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